प्रवीण दुबे
व्यक्ति की भक्ति या संगठन में शक्ति

राजनीति में व्यक्तिनिष्ठा कोई नई बात नहीं लेकिन पूरी की पूरी पार्टी व्यक्तिमय हो जाए और वह व्यक्ति इतना बड़ा ब्रांड बन जाए कि उसके नाम की गारंटी के जयकारे लगने लगें तो इसे राजनीति में व्यक्तिवाद की शानदार जीत कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए, लेकिन ऐसे व्यक्तिवादी माहौल में व्यक्ति के स्थान पर संगठन की जोरदार चर्चा दिखाई दे तो इसे व्यक्तिवाद पर संगठन में शक्ति के बोध वाक्य की बात करने वालों की मजबूती का प्रमाण कहा जा सकता है। समझने वाले तो समझ ही गए होंगे कि हमारा इशारा आखिर किस ओर है क्यों कि आजकल सदस्यता अभियान का बड़ा शोर है जहां नमो नमो नहीं सिर्फ कमल ही कमल के फोटो हैं और इससे पता चलता है राजनीति में आज भी व्यक्ति नहीं संगठन ही सर्वोपरि है।
अमरूद और भुट्टों के सहारे झांझ बजाते बेचारे

कोई गाड़ी रोककर भुट्टे भुंजवा रहा है तो कोई मीठे मीठे अमरूदों को कटवाकर नमक लगवा रहा है। एक नेताजी तो जमीन पर उतरकर झांझ और ढोल बजा बजाकर मुस्कराते नजर आए यही तो खुबसूरती है आजकल के मोबाइल युग की पहले जमाने में खुद को जनहितेशी या जनता के बीच का साबित करने नेताजी की आधी उम्र निकल जाया करती थी ,आजकल रास्ते चलते कभी कभी तो पूर्ण सुनियोजित ढंग से हमारे नेताजी चंद मिनटों में ही गाड़ी रुकवाकर अपने सहज, सरल ,जन हितैषी और उदारवादी, जमीनी व्यक्तित्व होने का प्रमाण पूरे देश में प्रसारित कर देते हैं,इस काम को अंजाम देने वाले मोबाइल देवता का जितना वंदन अभिनंदन किया जाए कम है।
जूता वंदन की दरकार

लाडली बहना के प्रति लाड़ दुलार और सत्कार के चर्चे पूरे देश में सुनाई दे रहे हैं लेकिन गुंडा भाइयों के प्रति लताड़ और उनके प्रति जूतम पैजार में इतनी तत्परता क्यों नहीं दिखती, आखिर इन गुंडों की गंदी और ओछी हरकतों का शिकार बन रही हमारी बहन बेटियों की पीढ़ा कब समाप्त होगी ? कितना अच्छा होता कि इन गुंडा भाइयों के लिए भी जूता वंदन का कोई दिन तय किया जाता और इनके सत्कार में जूतों की माला पहनाकर पूरे शहर को इनके कारनामों से अवगत कराने की कोई योजना शुरू की जाती। जितनी जल्दी इस जूता वंदन दिवस योजना की घोषणा होगी हमारी बहनों को सच्चे अर्थों में तभी राहत मिलेगी।
साहफियों की सीजनल बीमारी

दूसरों की समस्याओं और परेशानियों को जनता के सामने उजागर करने वाले खबरनवीस एक बार फिर चिंता में घिर गए हैं, वैसे उनकी जिस चिंता का हम जिक्र करने वाले हैं उसे सीजनल एनवल प्रॉब्लम कहा जाए तो ज्यादा अच्छा है जिस प्रकार मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों के मच्छर सालभर में एकबार सबके लिए परेशानी का सबब बन जाते हैं उसी प्रकार अपने साहफियों के लिए एक सरकारी महकमा हर साल सितंबर के सीजन में हेल्थ के नाम पर टेंशन लेकर आता है, जिस प्रकार डेंगू मलेरिया जनित बीमारियों के मच्छरों पर फॉगिंग की जाती उसी प्रकार खबरनवीसों को भी संगठन की शक्ति के सहारे सितंबर माह की वार्षिक बीमारी का इलाज करना होता है। खबर है कि साहफिओ ने इसके प्रयास शुरू कर दिए हैं देखना होगा पत्रकारों की हेल्थ सुरक्षा के नाम पर टेंशन से हेल्थ का सत्यानाश करने वाली बीमारी को इस वर्ष समाप्त होने में कितना समय लगेगा या फिर साहफियाें को हैल्थ के लिए मोटी रकम से समझौता करना होगा।