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अयोध्या विवाद पर मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक सुप्रीम कोर्ट में गैर-विवादित जमीन मूल मालिकों को वापस लौटाने की अर्जी दी

हाइलाइट्स

  • सरकार ने अयोध्या मेंगैर-विवादित जमीन मूल मालिकों को वापस लौटाने की अर्जी दी है
  • 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गैर-विवादित जमीन को अलग से नहीं देखा जा सकता
  • अयोध्या विवाद में पक्षकार निर्मोही अखाड़े, हिंदू संगठनों ने सरकार के फैसले का स्वागत किया
  • इसे गैर-विवादित जमीन पर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करने की कोशिश माना जा रहा है

नई दिल्ली/प्रयागराज 
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की अयोध्या मामले में गैर-विवादित जमीन मूल मालिकों को लौटाने के मामले पर हलचल तेज है। अयोध्या विवादपर सुप्रीम कोर्ट में हो रही देरी पर संघ और हिंदू संगठनों के दबाव के बाद क्या यह सरकार का चुनाव से पहले नया ‘मंदिर प्लान’ है, इसको लेकर अटकलें लगने लगी हैं। प्रयागराज कुंभ में कैबिनेट की बैठक कर रहे योगी आदित्यनाथ ने केंद्र के इस कदम को सद्भाव के लिए जरूरी करार दिया। खबर है कि अयोध्या विवाद में पक्षकार निर्मोही अखाड़े ने सरकार के इस कदम का विरोध किया है। 

क्या यह सरकार का ‘मंदिर 2.0’ प्लान है? 

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दी गई अर्जी में 1993 में अधिग्रहीत 67 एकड़ जमीन को गैर-विवादित बताते हुए इसे इसके मालिकों को लौटाने की अपील की है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 में 2.77 एकड़ जमीन को विवादित बताते हुए 3 हिस्सों में बांट दिया था। अब केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में जो अर्जी दी है, उसमें उसने 0.313 एकड़ जमीन को ही विवादित बताते हुए संबंधित पक्षों को वापस सौंपने की अपील की है। इस 67 एकड़ में राम जन्मभूमि न्यास की 42 एकड़ जमीन शामिल है। सरकार के इस कदम को बिना अध्यादेश लाए गैर-विवादित जमीन पर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। 

क्या गैर-विवादित जमीन वापस मिल सकती है?

सरकार के इस मूव के बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट गैर-विवादित जमीन को संबंधित मालिकों को लौटा सकता है। 2003 में असलम भूरे फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता। अधिग्रहित जमीन को उनके मालिकों को वापस लौटाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए जमीन मालिकों को कोर्ट में अर्जी दायर करनी होगी। इसके बाद राम जन्मभूमि न्यास ने अपनी गैर-विवादित जमीन 42 एकड़ पर अपना मालिकाना हक हासिल करने के लिए सरकार से गुहार लगाई। 2019 में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अर्जी में कहा है कि राम जन्मभूमि न्यास ने अपने हिस्से की गैर विवादित जमीन की मांग की है। 

मोदी सरकार नेयाचिका में क्या दावा किया है

सुप्रीम कोर्ट में दी गई केंद्र की अर्जी में कहा गया है , ‘आवेदक (केंद्र) अयोध्या अधिनियम, 1993 के कुछ क्षेत्रों के अधिग्रहण के तहत अधिग्रहीत भूमि को वापस करने/ बहाल करने/सौंपने के अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए आवेदक ने न्यायालय की अनुमति के लिए यह आवेदन दाखिल कर रहा है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के इस्माइल फारुकी मामले में फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत ने माना था कि अगर केंद्र अधिग्रहीत की गई संपत्ति को उनके मूल मालिकों को लौटाना चाहे तो वह ऐसा कर सकता है। याचिका में केंद्र ने कहा, ‘इस अदालत की संविधान पीठ ने माना है कि 0.313 एकड़ के विवादित क्षेत्र के अलावा अतिरिक्त क्षेत्र अपने मूल मालिकों को वापस कर दिया जाए।’ याचिका में कहा गया कि राम जन्मभूमि न्यास (राम मंदिर निर्माण को प्रोत्साहन देने वाला ट्रस्ट) ने 1991 में अधिग्रहीत अतिरिक्त भूमि को मूल मालिकों को वापस दिए जाने की मांग की थी। उसने कहा, ‘एक पार्टी ‘राम जन्मभूमि न्यास’ (जिसकी लगभग 42 एकड़ जमीन अधिग्रहीत की गई है) ने इस अदालत के संविधान पीठ के फैसले पर भरोसा करते हुए एक आवेदन दायर किया है।’ 

जमीन की पूरी कहानी

1993 में 67 एकड़ जमीन का सरकार ने अधिग्रहण किया था। विवादित जमीन के आसपास की जमीन का अधिग्रहण इसलिए किया गया था ताकि विवाद के निपटारे के बाद उस विवादित जमीन पर कब्जे या उपयोग में कोई बाधा नहीं हो। इसमे करीब 42 एकड़ की जमीन रामजन्म भूमि न्यास की है 

-1994 में इस्माइल फारूकी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि विवादित जमीन पर कोर्ट का फैसला आने के बाद गैर विवादित जमीन को उनके मूल मालिकों को वापिस लौटाने पर विचार कर सकती है 

-1996 में सरकार ने रामजन्म भूमि न्यास की मांग ठुकरा दी। इसके बाद न्यास ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसे कोर्ट ने 1997 में खारिज कर दिया। 

-2002 में जब गैर-विवादित जमीन पर पूजा शुरू हो गई तो असलम भूरे ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस याचिका पर सुनवाई के बाद 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने 67 एकड़ पूरी जमीन पर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया। 

-2003 में असलम भूरे फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता। कोर्ट ने अधिग्रहित जमीन वापसी पर पक्षकारों से अर्जी मांगी। राम जन्मभूमि न्यास ने अपनी गैरविवादित जमीन 42 एकड़ पर अपना मालिकाना हक हासिल करने के लिए सरकार से गुहार लगाई। 

-2019 में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अर्जी में कहा है कि राम जन्मभूमि न्यास ने अपने हिस्से की गैर विवादित जमीन की मांग की है। 

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