प्रवीण दुबे
निःसंदेह वह दृश्य बेहद भावुक कर देने वाला होता है जब अपनी आजीविका के लिए संघर्ष करने वाला कोई व्यक्ति किसी नेक कार्य के लिए कुछ दान करता दिखाई देता है। आजकल इस तरह के प्रसंग नित ही मीडिया और सोशल मीडिया पर देखने को मिल रहे हैं। उद्देश्य है हमारे आराध्य भगवान श्री राम के अयोध्या में निर्माणाधीन मंदिर में हमारा भी कुछ सहयोग हो बच्चे अपनी गुल्लक तोड़कर समर्पित कर रहे हैं तो सब्जी बेचकर चार पैसे कमाने वाला भी भगवान राम के लिए समर्पण करता दीख रहा है। जमीन पर बैठकर जूते बनाने वाला शिल्पी हो या फिर दो जून की रोटी के लिए
बोझा ढोने वाला मजदूर सब आगे आ रहे हैं। हाल ही में देश के सबसे बेशकीमती महल जयविलास के स्वामी और ग्वालियर के प्रसिद्ध सिंधिया राजवंश के वारिस ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इसी कतार का हिस्सा बनते दिखाई दिए। साफ है राजा हो या रंक अपने प्रभु श्री राम के भव्य मंदिर निर्माण में सहयोग के लिए कोई पीछे नहीं है। यही वो बात है जो भगवान राम को राष्ट्र पुरुष का दर्जा प्रदान करती है। यही वो वजह है की 500 वर्ष पूर्व जब मुगल आक्रांता बाबर ने भारत पर आक्रमण किया तो उसने उसी अयोध्या को सबसे पहले
निशाना बनाया जहां भगवान राम ने जन्म लिया उसने प्रभु राम की जन्मभूमि पर खड़े विशाल मंदिर पर इस कारण प्रहार किया क्योकि वह करोड़ों हिंदुओं की आस्था विश्वास और श्रध्दा का केंद्र था। उसने भगवान राम का मंदिर तोड़ा और अपने नाम का कथित ढांचा इस कारण खड़ा किया ताकि हिंदुओं को अपमानित करने का केंद्र बन सके। 500 वर्षों के तमाम संघर्षों और अनेक बलिदानों के बाद कारसेवकों ने अपमान के प्रतीक उस ढांचे को धराशायी किया और अब वहां भव्य राममंदिर बनाने का काम चल रहा है। इसे विडम्बना ही कहना चाहिए की विवादित ढांचा गिराए जाने के
बावजूद इस देश में विराजित बाबरी मानसिकता के लोगों ने 28 वर्षों तक भव्य राममंदिर निर्माण में रोड़ा अटकाए रखा और भगवान श्री राम को टाट के खुले चबूतरे के ऊपर टेंट में विराजित रहना पड़ा। अब भव्य राममंदिर निर्माण के सभी रास्ते साफ हो चुके हैं यह काम द्रुतगति से जारी है। ऐसे समय मन्दिर निर्माण के लिए धनसंग्रह का जो अभियान विश्व हिंदू परिषद व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वारा संचालित किया जा रहा है सम्भवतः उसका उद्देश्य केवल धनसंग्रह करना नहीं है इस कार्य के लिए तो देश के चंद दानदाता ही काफी थे। जो समझ आता है इस अभियान के पीछे मूल उद्देश्य 500 वर्षों के इतिहास से अवगत कराना है जिसे नई पीढ़ी कदापि नहीं जानती। धन्य है हम और हमारी पीढ़ी जो अयोध्या में भव्य राममंदिर
निर्माण का स्वप्न अपने नेत्रों के सामने साकार होते देख रही है रामजन्म भूमि पर मन्दिर निर्माण का यह संघर्ष 500 वर्षों से भी अधिक पुराना है कई पीढ़ियां आईं और चली गई लेकिन मंदिर निर्माण की बात अधूरी ही बनी रही। 6 दिसम्बर 1992 को जब कारसेवकों ने बाबरी ढांचे को नेस्तनाबूद किया तब से लेकर वर्तमान में भव्य राममंदिर निर्माण की शुरुआत तक की ही बात करें तो ढांचा ढहाए जाने से अब तक एक नई पीढ़ी 28 वर्ष की हो चली,उसे लुटेरे मुगल आक्रांता बाबर के अयोध्या में मन्दिर तोड़े जाने फिर उसके लिए हिंदुओं द्वारा 500 वर्ष तक किये संघर्षों उसके बाद 1992 को लुटेरे बाबर के नाम पर अयोध्या में बनाये ढांचे के विध्वंस की गौरवशाली इतिहास के बारे में कुछ नहीं पता। आज आवश्यकता है इस गौरवशाली इतिहास से इस नई पीढ़ी को अवगत कराने की। यह इतिहास प्रतीक है उन मुगल लुटेरों की दुर्दान्तता व हिन्दू विरोधी मानसिकता का जिन्हें कथित भारतीय इतिहासकारों ने न केवल महान बताया बल्कि आज भी तमाम लोग भारत में ऐसे है जो इन लुटेरे मुगलों को अपना आदर्श मानकर अपनी औलादों के नाम इनके नामों पर रखते हैं। मन्दिर निर्माण की संघर्ष गाथा इस बात का भी प्रतीक है की स्वतंत्रता के बाद हमारे देश पर लम्बे समय तक राज करने वालों ने कैसे हिंदुओं के आराध्यों को काल्पनिक निरूपित करके सनातन धर्म को ही झुठलाने का प्रयास किया ,यह इतिहास है उन बलिदानियों की संघर्ष गाथा का जिन्होंने भगवान राम के लिए हंसते हंसते गोलियां खाने के लिए अपने सीने खोल दिए लेकिन जय श्री राम कहना बन्द नहीं किया,यह इतिहास है धर्म के लिए दिए कोठारी बंधुओं के उस महान बलिदान का जिसकी मिसाल दुनिया में बहुत कम देखने को मिलती है,यह इतिहास है कारसेवकों के अनुशासन का जिन्होंने लाखों की संख्या में अयोध्या पहुंचने के बाद केवल अपने लक्ष्य को ही दृष्टिगत रखा देश मे अन्य कहीं भी किसी को छति नहीं पहुंचाई, यह इतिहास राममंदिर आंदोलन को सम्पूर्ण देश से मिले जबरदस्त जनसमर्थन का जिसकी मिसाल पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलती,यह इतिहास है भारत की सुदृढ़ पुरातन समरसता भाव का जिसमें न कोई बड़ा था न कोई छोटा न कोई ऊंच था न नीच न कोई जाति थी न कोई छुआछूत सब एक थे और सबके मुंह पर जय श्री राम का ही उदघोष था। अतः राममंदिर निर्माण के इस पावन अवसर पर न केवल अपने समर्पण को व्यक्त करने का समय है साथ ही नई पीढ़ी को इससे जुड़े गौरवशाली इतिहास को अवगत कराने का भी यही समय है। इसके लिए में धन्यवाद देना चाहूंगा चाणक्य जैसे प्रेरणादायक सीरियल बनाने वाले प्रसिद्ध अभिनेता निर्माता श्री चन्द्रप्रकाश द्वीवेदी जी का जिन्होंने इस अवसर पर रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण आंदोलन और लुटेरे मुगलों के इतिहास को सबके सामने लाने के लिए एक डॉक्युमेंट्री फ़िल्म का निर्माण किया यह फ़िल्म हमारी नई पीढ़ी को जरूर देखना चाहिये साथ ही लेखकों, साहित्यकारों कलाकारों बुद्धिजीवियों व आमजनों को रामजन्मभूमि के 500 वर्ष के इतिहास से जुड़े तमाम प्रसंगों को भी प्रस्तुत करना चाहिए।