प्रवीण दुबे
मध्य प्रदेश के ग्वालियर चंबल चंबल सहित लोकसभा चुनाव म प्रचार जोरों पर है. दो चरणों की वोटिंग के बाद अब तीसरे चरण में 7 मई को ग्वालियर भिंड दतिया मुरैना और गुना संसदीय सीट सहित तीसरे चरण में प्रदेश की 9 लोकसभा सीटों पर मतदान होना है इसमें भिंड, मुरैना, ग्वालियर, गुना, सागर, राजगढ़, विदिशा, भोपाल और बैतूल लोकसभा क्षेत्र शामिल हैं। लेकिन मध्य प्रदेश के कुछ चर्चित चेहरे प्रचार करते नजर नहीं आ रहे हैं. सवाल उठ रहा है कि क्या इन नेताओं ने अपने को प्रचार से दूर रखा है या बीजेपी उनसे प्रचार कराने में इंटरेस्ट नहीं दिखा रही है. एमपी में लोकसभा की 29 सीटें हैं, जहां चार चरणों में मतदान हो रहा है.
मध्य प्रदेश में ग्वालियर चंबल सहित बुंदेलखंड की सियासत पर गौर करें तो बीते लगभग ढाई दशक में शायद यह पहला ऐसा चुनाव है जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, पूर्व मंत्री और सिंधिया राजघराने से नाता रखने वाली यशोधरा राजे सिंधिया,पूर्व सांसद जयभान सिंह पवैया,पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा पूर्व सांसद माया सिंह और भोपाल से सांसद प्रज्ञा ठाकुर प्रचार करते नजर नहीं आ रही हैं. महिला नेताओं के सियासी सफर पर गौर करें तो उमा भारती और प्रज्ञा ठाकुर की पहचान कट्टर हिंदूवादी नेता की रही है, वहीं यशोधरा राजे सिंधिया और माया सिंह का नाता सिंधिया राजघराने से हैं.
उमा भारती की बात करें तो वो केंद्रीय मंत्री रही हैं और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की भी जिम्मेदारी निभा चुकी हैं. उनकी पिछड़े वर्ग में गहरी पैठ है और वह खुद लोधी हैं. राम मंदिर के आंदोलन में उनकी बड़ी भूमिका रही, वहीं वे हिंदूवादी राजनीति का बड़ा चेहरा भी हैं.
इसी तरह भोपाल की सांसद प्रज्ञा ठाकुर भी हिंदूवादी चेहरा हैं और वह हमेशा अपने बयानों के कारण चर्चा में रहती हैं. यही स्थिति ग्वालियर के चर्चित हिंदूवादी नेता बजरंगदल के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष जयभान सिंह पवैया की है वे पहले ग्वालियर से टिकिट की दौड़ में शामिल थे अब वे ज्यादा सक्रीय नजर नहीं आ रहे हैं ।
उधर, पूर्व मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया का असर ग्वालियर और चंबल के कई क्षेत्रों में माना जाता है। ग्वालियर से निकले पार्टी के बड़े संगठनात्मक चेहरे के रूप में स्थापित पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा भी चुनावी मैदान से तौबा किए हुए हैं।
एक तरफ बीजेपी ने चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंके हुए है और नेशनल लेवल से लेकर स्टेट लेवल तक के नेताओं को अलग-अलग इलाकों में प्रचार की कमान सौंपी है. लेकिन दूसरी ओर बीजेपी के ये कई बड़े चेहरे चुनाव प्रचार में नजर नहीं आ रहे हैं. सवाल उठ रहा है कि क्या इन नेताओं की उम्मीदवारों की ओर से मांग नहीं आई या पार्टी इनका इस्तेमाल नहीं करना चाहती. इन नेताओं ने भी अपनी तरफ से प्रचार में दिलचस्पी नहीं दिखाई है.