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इसराणीजी के जन्मशती समारोह में उनके जीवन पर केंद्रित पुस्तक ‘एक राष्ट्रभक्त समाजसेवी’ का विमोचन

भोपाल। राष्ट्र का अहित चाहने वालों द्वारा हमारे समाज के अंदर की व्यवस्थाओं को नष्ट करने के प्रयास किये जा रहे हैं। कुटुंब व्यवस्था और भारतीय मूल्यों पर लगातार हमले हो रहे हैं। हमें इनसे बचने के लिए मिलकर कार्य करना आवश्यक है। इसराणी जी राष्ट्रहित के लिए कार्य करने वाले अग्रणी व्यक्तियों में से एक थे। उनका पूरा जीवन सूर्य के समान था। वे समाज के हर सुख-दुख में खड़े होकर हिन्दू गौरव के लिए कार्य करते रहे। यह विचार सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत मुक्ति बोध ने रविन्द्र भवन के अंजनी सभागार में आयोजित समाजसेवी दादा उत्तमचंद इसराणी जी का जन्मशती समारोह में मुख्यवक्ता के रूप में व्यक्त किये।

श्री मुक्तिबोध ने कहा कि सिन्धी समाज को अपनी नयी पीढ़ी को विभाजन की त्रासदी और सिन्धी समुदाय के संघर्ष को बताना चाहिए। दादा इसराणी जी ने सिन्धी पहचान को सहेजते हुए हिंदुत्व के लिए काम किया क्योंकि हम सबकी बड़ी पहचान हिन्दू है। हम सभी को सिंधी हित के साथ ही हिन्दू हित के लिए परस्पर कार्य करना है। उन्होंने सिन्धुत्व और हिंदुत्व की एकता के विषय पर विभिन्न उदाहरण प्रस्तुत करते हुए एकजुट होकर राष्ट्र को आगे बढ़ाने के लिए कार्य करने का आव्हान किया।

*करुणा और संवेदनशीलता से भरा था इसराणी जी का जीवन :*
श्री हेमंत मुक्तिबोध ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अंदर अपेक्षाविहीन कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं की उपस्थिति रही है। संघ अपने 100 वर्ष पूर्ण करने जा रहा है लेकिन फिर भी ये रस सूखा नहीं है। दादा उत्तमचंद इसराणी जी का जीवन संघ को समर्पित था। वकील साहब बड़े ही ध्येयनिष्ठ थे, वो राष्ट्रहित की बिंदु थे जो अपने आप में सिंधु धारण करके चलते थे। इसराणी जी का जीवन करुणा और संवेदनशीलता से भरा हुआ था। वे उपकरणों के अभाव में कार्य करने वाले कार्यकर्ता थे। श्री मुक्तिबोध ने उपस्तिथ जनों से इसराणी जी के जीवन से सीख लेकर बिना किसी अपेक्षा और स्वार्थ के राष्ट्र के हित में कार्य करने की बात कही ।

*’लोकहित मम करनीयं’ को आत्मसात करने वाला था दादा इसराणी का जीवन : श्री मोघे*
वरिष्ठ प्रचारक अरविंद मोघे जी ने उत्तमचंद इसराणी की स्मृतियों को साझा करते हुए कहा कि उनका जीवन बड़ा ही सरल व नियमित था। वे ‘लोकहित मम करणीयम’ गीत को अपने जीवन में आत्मसात करने वाले व्यक्ति थे। वे प्रतिदिन शाखा जाते थे। शाखा के बाद शाखा न आने वाले स्वयंसेवकों के घर उनके हालचाल जानने जाया करते थे। उनके साथ होना हमारा सौभाग्य था, वे बड़े ही प्रेम से हमें समझाते थे।

*स्थिरप्रज्ञ व्यक्ति थे इसराणी जी : आहूजा*
इस अवसर पर अर्चना प्रकाशन न्यास के अध्यक्ष लाजपत आहूजा द्वारा संपादित पुस्तक ‘दादा उत्तमचंद इसराणी: एक राष्ट्रभक्त समाजसेवी’ का विमोचन हुआ। श्री आहूजा ने कहा कि इसराणी जी स्थिरप्रज्ञ व्यक्ति थे। मातृभाषाओं को प्राथमिकता देने का कार्य इसराणी जी द्वारा भलीभांति किया जाता रहा। संत हृदयाराम जी उत्तमचंद जी के बारे में कहते थे कि उनके लिए मेरे घर के द्वार हमेशा खुले हैं। श्री इसराणी संघ का प्रशिक्षण लेने वाले पहले स्वयंसेवकों में से एक थे।

*हम दादा के विचारों को अपने जीवन में आत्मसात करें :*
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश विष्णु प्रताप सिंह चौहान ने दादा के साथ अपनी स्मृति साझा करते हुए कहा कि उनका जन्म सिंधु घाटी सभ्यता के केंद्र स्थल पर हुआ तो ऐसा व्यक्तित्व उनमें भी दिखता है। वे जब समाजसेवा में आये तो उन्होंने समर्पित भाव से सभी की सेवा की, इसलिए लोगों में उनके लिए आदर का भाव आया। वहीं मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष मनोहर ममतानी ने कहा कि जब मैं भोपाल में रहा तो उनके साथ मेरे आत्मीय संबंध थे। उनके वचनों ने हमारे जीवन को बढ़ाने में सहयोग दिया। दादा निर्विवादित रूप से अभिवाजित भारत से उभरे नायक थे। भोपाल में उन्हें सभी वर्गों के लोगों से सम्मान मिलता था। विधि के क्षेत्र में उनकी काफी प्रतिष्ठा थी। सभी उनसे सलाह लेते थे। वे बिना किसी भेदभाव के न्याय दिलाते थे। इसराणी जी कहते थे कि मतभिन्नता हो सकती है लेकिन मनभिन्नता नहीं होनी चाहिए। उनके जीवन से हमें एकता के साथ बने रहने का संदेश मिला। हमें उनके विचारों को अपने जीवन में आत्मसात करने की आवश्यकता है। इस कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त संघचालक अशोक पाण्डेय के साथ नगर के प्रबुद्ध लोग एवं दादा इसराणी जी की पत्नी व उनका परिवार उपस्थित रहा।

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