डॉ. मयंक चतुर्वेदी
कर्नाटक चुनाव में जिस टीपू को कांग्रेस ने बनाया हीरो, उसके अत्याचारों की लिस्ट बहुत लम्बी है
जिस टीपू सुल्तान ने हिन्दुओं का कराया था नरसंहार, वह भी झुकाता था इस मंदिर के सामने अपना सिर
कर्नाटक चुनाव अपने अंतिम दौर में है। यहां इस समय जो बड़े मुद्दे हैं वे मुस्लिमों को पहले से अधिक आरक्षण देना, कांग्रेस का सत्ता में आते ही बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान और टीपू सुल्तान । जहां मीडिया में तमाम विषयों पर कर्नाटक चुनाव को लेकर चर्चा जारी है, वहीं यहां हम बात टीपू सुल्तान की करते हैं। कांग्रेस को कर्नाटक की सत्ता में आने के लिए टीपू सुल्तान के प्रति हमदर्दी रखनेवालों का साथ चाहिए। इसके लिए वह मुसलमानों के आरक्षण को भी सत्ता में आते ही बढ़ा देने की वकालत कर रही है। इसीलिए ही उसने विधानसभा चुनाव 2023 के दौरान टीपू को एक हीरो के रूप में प्रस्तुत करने का कार्य भी किया, तो दूसरी ओर टीपू सुल्तान का वह जिहादी चेहरा है जिसे आज दुनिया जानती है और कांग्रेस उसे चाहकर भी नहीं छिपा सकती।
कई बार के हिन्दू नरसंहार से रंगे हैं टीपू सुल्तान के हाथ
दरअसल, इस्लामिक सत्ता को सर्वोच्च मानकर उसका व्यापक प्रचार-प्रसार और उसके लिए किसी भी हद तक चले जाने की जिद्द ने टीपू सुल्तान के हाथ कई बार हिन्दुओं के सामूहिक नरसंहार से रंग दिए थे। बात सिर्फ इतनी भर थी कि ये सभी हिन्दू अपने सनातन धर्म से दूर होना नहीं चाहते थे और इनका इस्लाम पर कोई विश्वास नहीं आ रहा था। इसके लिए उसने न जाने कितने हिन्दू उपासना स्थलों को तोड़ा। लेकिन वह भी एक हनुमान और भगवान विष्णु के संयुक्त मंदिर से भय खाता था, जिसका कि जिक्र परम्परा से आज भी गाहे बगाहे हो जाता है।
वैसे तो टीपू के अत्याचार की लिस्ट बहुत लम्बी है। वह अपने राज्य के सीमावर्ती क्षेत्र में सबसे अधिक हिन्दुओं को प्रताड़ित करता, उनका नरसंहार करता और उन्हें भय दिखाकर तलवार के बल पर इस्लाम में लेकर आता था। कोई पूछ सकता है कि आप कैसे उस टीपू पर आरोप लगा सकते हैं जोकि अंग्रेजों से लड़ा था, लेकिन आज मौजूद टीपू के लिखे तमाम पत्र हैं, जिनमें उसने स्वयं बताया है कि कैसे-कैसे जिहाद के रास्ते पर चलकर उसने लाखों हिन्दुओं का कत्लेआम किया और लाखों को इस्लाम में आने के लिए इतना मजबूर कर दिया कि उनके सामने इस्लाम स्वीकारने के अलावा कोई मार्ग शेष ही नहीं बचा था।
टीपू सुल्तान ऐसे करवाता था धर्मांतरण, कई पत्र दे रहे गवाही
इतिहासकार राकेश सिन्हा इस बात पर जोर देकर बताते हैं कि एक पत्र में टीपू सुल्तान ने खुद कहा है कि ‘मैंने चार लाख हिंदुओं का धर्मांतरण कर लिया है। इसका एक दूसरा पत्र भी है जिसमें टीपू यह लिखता है कि अल्लाह के रहम-ओ-करम से कालीकट में अनेक हिंदुओं का धर्मांतरण करा दिया गया है। वस्तुत: आज टीपू सुल्तान के ऐसे सैकड़ों पत्र मौजूद हैं, जो यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि उसकी मानसिकता क्या थी।
इस बात के पुख्ता प्रमाण कर्नाटक में निवास कर रहे इतिहासकार डॉ. चिदानंद मूर्ति अपनी कन्नड़ भाषा में टीपू पर लिखी
पुस्तक में देते हैं । प्रोफेसर चिदानंद टीपू की तुलना हिटलर से करते हैं और कहते हैं कि दस्तावेज़ों के रूप में यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि वह एक क्रूर धर्मांध था, जिसने कई हज़ार हिंदुओं और ईसाइयों को बेरहमी से मार डाला और परिवर्तित कर दिया, जो उसकी नजर में काफिर थे।
मेलुकोटे के ब्राह्मण अभी भी नहीं बनाते दिवाली, किया था सामूहिक नरसंहार
प्रसिद्ध लेखक और इतिहासकार मूर्ति बताते हैं कि मांड्या जिले के मेलुकोटे के ब्राह्मण अभी भी दिवाली नहीं मनाते, क्योंकि लगभग तीन शताब्दी पहले टीपू ने दिवाली के एक दिन पहले बड़ी संख्या में उनका नरसंहार किया था। इतिहासकार और डिपार्टमेंट ऑफ कन्नड़ एंड कल्चर के थिएटर इंस्टीट्यूट रंगायना के निदेशक अदांदा सी करियप्पा का कहना है कि टीपू ने मेलुकोटे और कोडागु में बड़ा रक्तपात किया। टीपू ने मेलुकोटे के 1700 अयंगर ब्राह्मणों को जहर देकर मार दिया था। नरक चतुर्दशी के दिन ब्राह्मणों को मारकर उसने पेड़ पर लटकवाया था।
वे कहते हैं कि वास्तव में टीपू सुल्तान एक इस्लामिक फंडामेंटलिस्ट था न कि सेक्युलर । वह कुरान के मुताबिक ही फैसले लेता था। वह मानता था कि कुरान में जो लिखा है, उसने वही किया और हिंदुओं को इस्लाम धर्म में मत परिवर्तन करवाने से जन्नत मिलेगी। इस संदर्भ में रिसर्च स्कॉलर प्रो. एमए जयश्री और प्रो. एमए नरसिम्हन का एक शोध आलेख मेलुकोटे नरसंहार पर पब्लिश हुआ है। इस एतिहासिक अनुसंधान में ब्रिटिश सेना में मद्रास के कमांडर रहे जॉर्ज हैरिस की डायरी का उल्लेख किया गया है। इसमें हैरिस ने मेलुकोटे में टीपू सुल्तान की सेना के इकठ्ठा होने और नरसंहार करने के बारे में विस्तार से बताया है।
सनातन हिन्दू धर्म में मेलुकोटे का है व्यापक महत्व
अब यह जान लेते हैं कि हिन्दू सनातन धर्म में मेलुकोटे का महत्व क्या है। वास्तव में अयंगर ब्राह्मणों का कहना है कि 14 वर्ष के वनवास के समय में भगवान श्रीराम मेलुकोटे से गुजरे थे। जब सीता माता को प्यास लगी तो उन्होंने अपने बाण को धरती में मारा और वहां पानी की तेज धारा फूट पड़ी, तभी से उस जगह को धुनषकोटि कहा जाने लगा, यहां तब त्रेतायुग से लेकर आज तक ये जल की धारा भूमि से निकलना कभी बंद नहीं हुई और न कभी यहां सूखा पड़ता है ।
पुस्तक ‘लाइफ ऑफ टीपू सुल्तान’ और ‘मालाबार मैनुअल’ भी बहुत कुछ कहती हैं
1964 में प्रकाशित केट ब्रिटलबैंक की किताब ‘लाइफ ऑफ टीपू सुल्तान’ भी यही बता रही है कि टीपू ने कैसे मालाबार क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा हिंदुओं और सत्तर हजार से अधिक ईसाइयों को अपने अत्याचार के बूते इस्लाम कबूल करवाया । ब्रिटिश गवर्मेंट में 19वीं शताब्दी के दौरान अधिकारी रहे लेखक ‘विलियम लोगान’ अपनी पुस्तक ‘मालाबार मैनुअल’ में लिखते हैं कि टीपू सुल्तान ने अपने 30,000 सैनिकों के दल के साथ कालीकट में तबाही मचाई थी। टीपू सुल्तान ने पुरुषों और महिलाओं को सरेआम फांसी दी और इस दौरान उनके बच्चों को उन्हीं के गले में बांध कर लटकाया गया। विलियम ने अपनी इस पुस्तक में टीपू पर मंदिर, चर्च तोड़ने के साथ ही जबरन शादी जैसे कई गंभीर आरोप भी लगाए हैं।
लेखक और स्तंभकार संदीप बालकृष्ण अपनी किताब Tipu Sultan–The Tyrant of Mysore में बहुत विस्तार से टीपू के बारे में बताते हैं, वे लिखते हैं कि टीपू सुल्तान क्रूर और पक्षपाती शासक था, वह जिहादी था। उन्होंने हज़ारों हिंदुओं को ज़बदरदस्ती मुस्लिम बना दिया, वे अपनी धार्मिक पुस्तक का पालन करता था जिसमें लिखा था मूर्तिपूजकों का वध करो। इसी प्रकार से इतिहासकार रवि वर्मा ने टीपू सुल्तान के बारे में एतिहासिक साक्ष्यों के साथ विस्तार से लिखा है। रवि वर्मा ने सैंकड़ों मंदिरों की एक सूची भी प्रस्तुत की है जो उनके अनुसार टीपू सुल्तान द्वारा तत्कालीन समय में नष्ट किए गए हैं।
कोडागु में 600 से अधिक मंदिरों को नष्ट किया था टीपू ने
यह भी एक एतिहासिक तथ्य है कि वर्ष 1760 -1790 के कालखंड में जिहादी मानसिकता रखने वाले क्रूर आक्रांता टीपू सुल्तान ने कोडागु में 600 से अधिक मंदिरों को नष्ट कर दिया था। उसने कोडागु समाज पर विदेशी हथियारों से आक्रमण किया। जिसका प्रतिकार करते हुए कोडागु समाज के कंदांडा दोददाया और अपचचिरा मंडन्ना वीर हिन्दू कोड़ावा योद्धाओं ने अपने सैनिकों के साथ क्रूर व बर्बरता का अभिप्राय बन चुके टीपू को अपनी कुशल गोरिल्ला युद्ध नीति से एक बार नहीं अपितु इकत्तीस बार पराजित किया था। यह सिलसिला लगभग 25 वर्ष तक चलता रहा, फिर जब टीपू को जीत का कोई उपाय नहीं सूझा तो उसने कोडवों को शांतिवार्ता के लिए कावेरी नदी के तट पर आमंत्रित किया।
कोडवा हिन्दुओं के रक्त से लाल हो गई थी कावेरी नदी
13 दिसंबर 1785 के दिन जब कोडवा अपने पूरे परिवार के साथ बड़ी संख्या में देवतिपरंबू के कावेरी तट पर पहुंचे तभी टीपू की सेना ने जंगल में छुपकर कोडवों के पुरे परिवार पर घात लगाकर छल से हमला कर उनका नरसंहार किया। जिसमें लगभग 75,000 से अधिक कोडवा जनजाति के लोगों की हत्या की गयी और 92,000 कोडावों को बंदी बनाया गया था। बंदी बनायी गयीं हिन्दू महिलाओं के साथ बड़ी अमानवीयता से सामूहिक रूप से दुराचार और बच्चों का उत्पीड़न किया गया । यह हिन्दू नरसंहार इतना भयावह था की कावेरी नदी का रंग भी कई दिनों तक कोडवा हिन्दुओं के रक्त से लाल रहा। ऐसा प्रतीत हो रहा था, कावेरी नदी में जल का नहीं अपितु रक्त का प्रवाह हो रहा हो।
टीपू का सिर झुकता था चामराजपेट में कोटे वेंकटरमण मंदिर के सामने
इस सब के बाद भी कहना होगा कि इतिहास में दर्ज अनेकों हिन्दू मंदिरों को तोड़नेवाला टीपू सुल्तान चामराजपेट में कोटे वेंकटरमण मंदिर के सामने झुकता था, इस मंदिर को मैसूर राजवंश के 14वें शासक चिक्कादेवराज वाडियार द्वारा 1690 में बनवाया गया था। इस मंदिर के बारे में इतिहास में दर्ज है कि इसने टीपू की जान बचाई थी। इस संदर्भ में डॉ. राघवेंद्र भट्ट का कहना है, यह घटना 1791 की है जब तीसरे एंग्लो-मैसूर युद्ध के दौरान टीपू सुल्तान को एक ब्रिटिश तोप के गोले से मंदिर के सामने एक 80 फीट लंबा पत्थर का गरुड़ खंभा है उसने बचाया। इसलिए टीपू सुल्तान नियमित रूप से मंदिर के देवता का सम्मान करता था।
उन्होंने यह भी बताया कि आज, मंदिर के अधिकारी उस घटना को याद रखना पसंद करते हैं । वाडियार जोकि भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे ने एक अंडाकार मिट्टी के किले के अंदर मंदिर का निर्माण करवाया जोकि बैंगलोर किले के दक्षिण की ओर स्थित है ।
उल्लेखनीय है कि 333 साल पुराना यह मंदिर द्रविड़ वास्तुकला का अद्भुत चमत्कार है, इसके पत्थर के खंभों पर बहुत ही महीन जाली की आकृतियाँ हैं, जो हम्पी की संरचनाओं में भी देखी जा सकती हैं। परिसर में, दक्षिण-पश्चिम में एक हनुमान मंदिर और उत्तर-पूर्व में महालक्ष्मी विराजमान हैं। गर्भगृह में त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) और सप्तऋषियों के मूर्ति शिलालेख मौजूद हैं। लेकिन इस एक मंदिर के सामने सिर झुकाने से टीपू के अत्याचार, हिन्दू नरसंहार, उसकी इस्लामिक मानसिकता से उसे मुक्त नहीं किया जा सकता और ना ही उसके दोषों को कम किया जा सकता है ।
वस्तुतः आज जिस टीपू के नाम का जप कर्नाटक में कांग्रेस कर रही है, अब ये तो वक्त ही बताएगा कि विधानसभा चुनाव 2023 में जनता टीपू के सहारे से जीत का स्वप्न देख रही कांग्रेस का कितना साथ देगी!
प्रस्तुत लेख में समाहित विचार लेखक के अपने हैं शब्द शक्ति न्यूज़ ने तथ्यों के दृष्टिगत इसे जस का तस प्रकाशित किया है।