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कठपुतली संचार संप्रेषण का सशक्त माध्यम:डॉक्टर त्यागी

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग में विश्व कठपुतली दिवस पर व्याख्यान

भोपाल /कठपुतली विश्व का प्राचीनतम रंगमंच पर खेले जाने वाला कार्यक्रम है ।इनके माध्यम से सशक्त संदेश, संवाद एवं सामाजिक मुद्दों के साथ सामाजिक कुरीतियों को उजागर करने की दिशा में संचार का संप्रेषण किया जाता है। कठपुतली अत्यंत सहज सरल और रोचक संचार पद्धति है ।
उक्त विचार माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग में विश्व कठपुतली दिवस पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए लेखक, विचारक एवं श्रेष्ठ अध्येता ,प्राध्यापक पुरस्कार से सम्मानित डाक्टर रामदीन त्यागी ने व्यक्त किया ।
उन्होंने कहा कि कठपुतली का संसार बहुत व्यापक है। भारत के विभिन्न राज्यों के अलावा इंडोनेशिया और कंबोडिया जैसे देशों में इनका प्रचलन देखा जा सकता है। कठपुतली संचार की ऐसी लोक कला है जिसके माध्यम से अत्यंत सहज, सरल और रोचक तरीके से संदेशों का संप्रेषण किया जाता है ।समय काल परिस्थिति के अनुसार कठपुतली ने भी विकास का सोपान तय किया है।वर्तमान में राजस्थान जैसे राज्य में कोई भी मेला ,धार्मिक त्यौहार एवं अन्य आयोजन इनके बिना अधूरा ही माना जाता है। डाक्टर त्यागी ने कहा कि कठपुतलियां कई प्रकार की होती हैं ,जैसे धागे वाली कठपुतलियां ,दस्ताने वाली कठपुतलियां, छड़ वाली कठपुतलियां और छाया वाली कठपुतलियां शामिल है। ढोल मजीरों पर थिरकती ,उंगलियों पर लिपटे हुए धागे से बनी कठपुतलियां आज सभी का मन मोह लेती है। प्राचीन काल में इसके कई ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं कि महाकवि पाणिनि ने अष्टाध्याई ग्रंथ में पुतला नाटक का उल्लेख किया है । जबकि भगवान शिव ने काठ की मूर्ति में प्रवेश कर माता पार्वती का मन बहलाकर इस कला को प्रारंभ किया । इसी प्रकार उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के सिंहासन में जड़ित 32 पुतलियों का उल्लेख सिंहासन बत्तीसी नमक कथा में भी मिलता है। कठपुतलियों का इतिहास समृद्ध और सशक्त है ।वर्तमान सोशल मीडिया के दौर में भी उनकी प्रासंगिकता काम नहीं हुई है ।आज आवश्यकता इस बात की है कि हम भारतीय प्राचीन परंपराओं और भारतीय नैतिक मूल्य को बचाए रखने के लिए ऐसे उपक्रम करते रहें। उन्होंने पत्रकारिता के विद्यार्थियों का आह्वान किया कि वे भारतीय मूल्य से जुड़ी हुई परंपराओं को जीवित रखने में अपना योगदान दें। कार्यक्रम के प्रारंभ में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग के समन्वयक श्री मुकेश चौरासे ने विषय प्रतिपादन किया और विश्व कठपुतली दिवस की प्रस्तावना रखी । कार्यक्रम में विवि के जनसंपर्क अधिकारी डॉ अरुण खोबरे ,सहायक प्राध्यापक राहुल खड़िया, प्रोडक्शन सहायक श्रीमती प्रियंका सोनकर अतिथि प्राध्यापक जगमोहन सिंह राठौड़,सुमित श्रीवास्तव, आनंद जोनवार , डाक्टर अरुण कोपरकर ,सौरभ सक्सेना ,आकाश सैनी सहितअन्य प्राध्यापक एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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