जनसंघ समय के पुराने कार्यकर्ता,
राज चड्ढा 1962 से भाजपा से जुड़े हुए हैं और पिछले 55 साल की राजनीति में वे पार्टी की ग्वालियर इकाई के जिलाध्यक्ष भी रह चुके हैं। इसके अलावा भाजपा के टिकट पर उन्होंने विधानसभा चुनाव भी लड़ा था जो कि वे हार गए थे। इसके बाद पार्टी ने उन्हें ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण का अध्यक्ष भी बनाया था। वे इमरजेंसी के दौरान जेल जाने वाले मीसाबंदी भी हैं। फिलहाल कुछ वर्षों से वे उपेक्षा का शिकार होकर पार्टी में किसी पद पर नहीं हैं और समय-समय पर भाजपा, कांग्रेस व अन्य राजनीतिक दलों के अलावा प्रशासनिक अफसरों के संबंध में फेसबुक पर पोस्ट करते हैं। अब कार्यकर्ताओं की उपेक्षा को लेकर राज चड्डा ने एक बार फिर फेसबुक पोस्ट डाली है जो चर्चा में बनी हुई है हालांकि राज चड्ढा को 6 वर्ष पूर्व ऐसी ही एक पोस्ट पर उन्हे पार्टी से निलंबित कर दिया गया था पार्टी ने यह कदम उनके द्वारा फेसबुक पर सत्ता व संगठन के खिलाफ की गई पोस्ट को अनुशासनहीनता मानकर उठाया था। फिलहाल राज चड्ढा पार्टी में तो नहीं हैं लेकिन भाजपा मैं उनकी निष्ठा बरकरार है। वे आजकल स्वतंत्र लेखन के साथ-साथ कई सामाजिक संगठनों के माध्यम से समाज में सक्रिय हैं। पाठकों के लिए प्रस्तुत है राज राज चड्ढा द्वारा हाल ही में लिखी गई चर्चित फेसबुक पोस्ट।
“सांची कहौं”
जब बड़े पद पर बैठे नेता अन्य कार्यकर्ताओं का कद छोटा करने के लिए आरी और हथौड़ा लेकर पीछे पड़ जाएं तो परिणाम वही होता है जो आज मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी का हो रहा है।कभी देश में संगठन के मामले में नंबर एक रही पार्टी आज नेतृत्व के संकट से जूझ रही है।स्वर्गीय कुशा भाऊ ठाकरे,प्यारे लाल खंडेलवाल,सुंदरलाल पटवा और कैलाश जोशी जैसे नेताओं ने जिसे अपने खून पसीने से सींचा था और देश में एक मिसाल कायम की थी कि कार्यकर्ता कैसे गढ़े जाते हैं, शून्य से शिखर तक कैसे पहुंचा जाता है,वह पार्टी आज अस्तित्व हीन कांग्रेस से गंभीर चुनौती का सामना करने में हांफती नज़र आ रही है।वह कांग्रेस जिसके पास न कोई चेहरा है और न ही कोई विश्वसनीयता, आसन्न चुनावों में अगर ताल ठोक कर खड़ी है तो सवाल तो उत्पन्न होते ही हैं।स्थितियों से अनभिज्ञ कोई नहीं है।न केंद्र, न प्रदेश और न गली का कार्यकर्ता।सब को सब कुछ मालूम है पर कहें तो किससे।सुनने वाले या तो चल बसे या निर्वीर्य कर दिये गए।एक एक कर प्रत्येक सामर्थ्यवान को चुनौती समझ कर नष्ट कर दिया गया।किसी की चरित्र हत्या की गयी तो किसी को देश निकाला दे दिया।
कहाँ तो घर घर से चुन चुन कर कार्यकर्ता बनाये जाते थे, कहाँ बने बनाये नेताओं की छवि धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई।संगठन मंत्रियों तक को नहीं बख्शा गया, जो कि दल की रीढ़ हुआ करते थे।वे ही पार्टी के नाक कान थे, वे ही आंखें और वे ही प्रेरणा स्रोत भी।जिन्हें केवल अपनी मनमर्जी चलानी हो , अपने जी हुजूरियों को आगे बढ़ाना हो, उनमें सच्चाई जानने की हिम्मत नहीं होती।संगठन मंत्री इनकी महत्वाकांक्षा के रथ के मार्ग में बाधक थे, अतः वीर गति को प्राप्त हुए। निरंकुश सत्ता का सुख भोगने की एक सीमा होती है।लगता है वह आ पहुंची है।
जाने वाले जाएं, उनसे कोई मोह नहीं है।न कोई आशा ही बची है।किंतु वे लगभग नेतृत्वहीनता की परिस्थिति में दल को छोड़ कर जाएंगे, यही दुःखद है।खपच्चियाँ लगाने से कोई नेता नहीं बनता।उनके सामर्थ्यहीन चेले चांटे इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।जो चाहते थे उनके सिवाय कोई न बचे, वे अपनी योजना में सफल हुए।किस कीमत पर, वह हमारे सामने है।