प्रवीण दुबे
जिन्हे वोट नहीं डालना ऐसे स्कूली बच्चों और सरकारी अमले के बीच लाखों की बर्बादी करके पूरी हुई “चुनावी राहगीरी” , मतदाताओं ने नहीं दिखाई रुचि
एक तरफ दो फेज के चुनाव में मध्यप्रदेश का गिरता मतदाता प्रतिशत और दूसरी ओर जिले में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के नाम पर लगातार फ्लॉप शो साबित होते मतदाता जागरूकता कार्यक्रमों ने अब 7 मई को ग्वालियर में होने जा रहे चुनावों में वोटरों की भागीदारी को लेकर चिंता बढ़ा दी है।
“चुनाव का रंग मतदाताओं के संग” थीम पर शनिवार की सुबह प्रात: 7 बजे “चुनावी राहगीरी” नाम से ग्वालियर की थीम रोड पर मतदान के प्रति लोगों की जागरूकता हेतु आयोजन पूरी तरह से फ्लॉप शो साबित हुआ। जबकि कलेक्टर एवं जिला निर्वाचन अधिकारी रुचिका चौहान ने कई दिन पहले से इस आयोजन में शहरवासियों से बढ़चढ़कर हिस्सा लेने का कागजी ढिढोंरा पीट रखा था।
यह भी प्रचारित किया गया था कि इस दिन यहाँ आयोजित होने जा रही “चुनावी राहगीरी” में संगीत, नृत्य, जुम्बा डांस, एडवेंचर गेम्स, रंगोली व पेंटिंग, मार्शल आर्ट, सामूहिक स्कैटिंग, क्विज, ओपन माइक व बीएसएफ के बैंड की प्रस्तुति सहित अन्य मनमोहक कार्यक्रम होंगे। साथ ही पारंपरिक स्वादिष्ट व लजीज व्यंजनों के स्टॉल भी आकर्षण का केन्द्र होंगे ।
आज सुबह आयोजित यह चुनाव राजगीरी पूरी तरह से ढोल में पोल साबित हुई यहां मतदाता तो इक्का दुक्का ही नजर आए कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए स्कूली बच्चे,सरकारी कर्मचारी और एक दो सामाजिक संस्थाओं के कुछ लोग ही दिखाई दिए।
इस तरह के कार्यक्रमों से मतदाता वोट डालने के प्रति कैसे जागरूक होंगे यह समझ से परे है। गौरतलब है कि पिछले एक माह से ग्वालियर का जिला प्रशासन ऐसे ही कई फ्लॉप आयोजनों में सरकारी पैसे की बर्बादी कर रहा है।
ऐसे समय में जब अभी दो चरणों में मध्यप्रदेश में हुए चुनावों का मतदान प्रतिशत नीचे आया है मतदाताओं को आगामी चरणों के लिए वोट डालने के प्रति जागरूक करने की जिम्मेदारी बहुत बढ़ गई है।उल्लेखनीय है कि बीते रोज मध्य प्रदेश की 6 लोकसभा सीटों पर मतदान प्रतिशत केवल 56.8 ही रहा है जो पिछली बार की तुलना में बहुत कम है। इसने आगामी चरणों को लेकर चिंता बढ़ा दी है।
दूसरे चरण में शुक्रवार को 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 88 सीटों पर मतदान हुए. हालांकि चुनाव को लेकर उत्साह शाम को आए वोटिंग प्रतिशत ने कम कर दिया. इस बार का वोटिंग ट्रेंड पहले चरण के चुनाव से भी खराब रहा. दूसरे चरण में महज 63.00 प्रतिशत मतदाताओं ने ही अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जबकि 2019 में इन्हीं सीटों पर 70 फीसदी से ज्यादा लोगों ने बढ़-चढ़कर वोट किया था. कम होते इस वोटिंग प्रतिशत ने सभी राजनीतिक दलों का गणित बिगाड़ दिया है.
पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोट डाले गए थे. पिछले चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुए थे. यही हाल दूसरे चरण में भी रहा. किसी भी राज्य में मतदान का आंकड़ा 80 फीसदी को पार नहीं कर सका.
आंकड़ों की बात करें तो सबसे ज्यादा त्रिपुरा में 78.6 प्रतिशत और सबसे कम उत्तर प्रदेश में 54.8 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है. वहीं मणिपुर में 77.2 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 73.1 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 71.8 प्रतिशत, असम में 70.8, जम्मू और कश्मीर में 71.6, केरल में 65.3, कर्नाटक में 67.3, राजस्थान में 63.9, मध्य प्रदेश में 56.8, महाराष्ट्र में 54.3 और बिहार में 54.9 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट किया.
वोटिंग कम होने से बढ़ी राजनीतिक दलों के साथ चुनाव आयोग की भी चिंता
वोट करने के लिए लोगों के घरों से बाहर नहीं निकलने को लेकर राजनीतिक दलों को साथ-साथ चुनाव आयोग की भी चिंता बढ़ा दी है. खासकर हिंदी भाषी राज्यों में तो मतदाता वोटिंग को लेकर जैसे नीरस हो गए हैं. इससे पहले 2014 और 2019 में अच्छी-खासी तादाद में लोगों ने वोट किया था, लेकिन इस बार मतदाताओं में वो जोश देखने को नहीं मिल रहा है.
उत्तर भारत में गर्म मौसम भी वजह!
पूरे उत्तर भारत में इन दिनों मौसम का तापमान काफी बढ़ गया है. लू और गर्म हवाओं ने लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त किया हुआ है. लोगों के वोट करने को लेकर घर से बाहर नहीं निकलने की ये भी एक वजह बताई जा रही है. वहीं चुनाव में विपक्षी पार्टियों की कम सक्रियता से भी कम वोटिंग प्रतिशत को जोड़कर देखा जा रहा है. वहीं आजकल के चुनाव में फिजिकल प्रचार की बजाय सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल भी वोटिंग ट्रेंड को कम कर रहा है.
पूरे उत्तर भारत में इन दिनों मौसम का तापमान काफी बढ़ गया है. लू और गर्म हवाओं ने लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त किया हुआ है. लोगों के वोट करने को लेकर घर से बाहर नहीं निकलने की ये भी एक वजह बताई जा रही है. वहीं चुनाव में विपक्षी पार्टियों की कम सक्रियता से भी कम वोटिंग प्रतिशत को जोड़कर देखा जा रहा है. वहीं आजकल के चुनाव में फिजिकल प्रचार की बजाय सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल भी वोटिंग ट्रेंड को कम कर रहा है.