ग्वालियर का विक्टोरिया कॉलेज जो कि अब MLB कॉलेज के नाम से जाना जाता है,यहीं हॉकी के जादूगर ने अपनी कॉलेज की पढ़ाई की और इसी महाविद्यालय के खेल मैदान पर वह अकेले ही घण्टों किया करते थे गोल मारने की प्रैक्टिस
हॉकी के महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के नाम पर देश के सर्वोच्च खेल पुरुस्कार का नाम रखा जाना निश्चित ही पूरे भारतवासियों के लिए बेहद गर्व का विषय है। यह ग्वालियर के लिए भी उतनी ही गर्व की बात है क्यों कि मेजर ध्यानचंद ने इसी ग्वालियर की धरा पर सबसे पहले हॉकी पकड़ी बल्कि जीवन के शुरुआती दिनों में उन्होंने हॉकी सीखने के लिए इसी ग्वालियर में रात दिन मेहनत भी की। यूं तो मेजर ध्यानचंद का जन्म उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में हुआ था। लेकिन अपने पिता के ब्रिटिश भारतीय सेना में होने के कारण देश के अनेक शहरों में तबादलों की वजह से उन्हें वहां रहना पड़ा।
जानकार बताते हैं कि ध्यानचंद की स्कूली शिक्षा तो झांसी में हुई लेकिन पिता के तबादले के कारण वे ग्वालियर आये और कॉलेज की पढाई के लिए उन्होंने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज ( वर्तमान का MLB कॉलेज) में दाखिला लिया।
ध्यानचंद ने 1932 में विक्टोरिया कॉलेज, ग्वालियर से ग्रेजुएशन किया। आपको जानकर हैरानी होगी कि ध्यानचंद को शुरू में खेलों के प्रति कोई खास झुकाव नहीं था, हालांकि वे कुश्ती से प्यार करते थे। उन्होंने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि उन्हें याद नहीं है कि उन्होंने सेना में भर्ती होने से पहले कोई खास हॉकी खेली थी, हालांकि उन्होंने यह भी कहा था कि वह कभी-कभी अपने दोस्तों के साथ झांसी में खेला करते थे।
हॉकी के प्रति उनकी सम्पूर्ण भावना का समर्पण ग्वालियर में ही विक्टोरिया कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही हुआ और उन्होंने यहां के विक्टोरिया कॉलेज मैदान पर जमकर प्रेक्टिस की। कहा जाता है कि मेजर ध्यानचंद इस मैदान पर अकेले ही घण्टों गोल मारने की प्रैक्टिस किया करते थे।
29 अगस्त 1922 को उनके 17वें जन्मदिन पर मेजर ध्यानचांद को ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल किया गया। मेजर ध्यानचंद को अंततः भारतीय सेना टीम के लिए चुना गया जो न्यूजीलैंड दौरे के लिए थी। टीम ने इस दौरे पर शानदार प्रदर्शन करते हुए 18 मैच जीते, 2 ड्रा रहे और केवल एक मैच में हार का सामना करना पड़ा। ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज मैदान पर हॉकी के लिए रात दिन की गई जी तोड़ मेहनत का ही परिणाम था कि उनके शानदार खेल ने सबको चमत्कृत कर दिया भारत लौटकर मेजर ध्यानचांद को 1927 में लांस नायक के रूप में प्रमोट किया गया था। आखिर में मेजर ध्यानचंद 1956 में मेजर के पोस्ट से रिटायर हुए ध्यानचंद 1922 से 1956 तक सेना से जुड़े रहे।
इसे ग्वालियर का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि जिस हॉकी खिलाड़ी की कर्मभूमि यह शहर रहा वहां आज तक उनकी स्मृति में कोई खेल मैदान या गतिविधि नहीं है। उनके भाई जो कि ध्यानचन्द की तरह एक अच्छे हॉकी खिलाड़ी थे उनके नाम से जरूर ग्वालियर में अंतराष्ट्रीय रूपसिंह स्टेडियम स्थापित है लेकिन आज तक ध्यानचन्द के नाम पर कुछ भी नहीं है यहां तक कि जिस विक्टोरिया कॉलेज मैदान पर उन्होंने सबसे पहले हॉकी की प्रैक्टिस की उसका नाम या उनकी स्मृति में कोई स्टेच्यू तक नहीं लगाया गया । उल्लेखनीय है कि उनके लड़के अशोक कुमार भी अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी रहे और लंबे समय तक ग्वालियर में रहकर हॉकी खेली जब ग्वालियर में पहला एस्ट्रोटर्फ युक्त हॉकी स्टेडियम निर्मित किया गया तब उन्होंने अपने पिता के नाम पर इसका नामकरण करने के लिए उठाई गई मांग को भी सबने नजरअंदाज कर दिया।
मेजर ध्यानचंद की कुछ यादगार उपलब्धि (Major Dhyan Chand Birthday)
उनकी बायोग्राफी ‘गोल’ के अनुसार मेजर ध्यानचंद ने अपने 22 वर्षों में करियर में 185 मैचों में 570 गोल किए। मेजर ध्यानचंद ने 1928 एम्स्टर्डम ओलंपिक में 14 गोल किए। इस ओलंपिक में उन्होंने सबसे ज्यादा गोल करने का रिकॉर्ड भी बनाया था। 1932 में खेले गए ओलंपिक में मेजर ध्यानचंद ने 8 गोल के साथ दूसरे सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी रहे थे। मेजर ध्यानचंद ने टीम की अगुवाई करते हुए 1928, 1932 और 1936 में लगातार तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने का रिकॉर्ड बनाया था। ध्यानचंद जब 40 वर्ष के थे, तब भी उन्होंने 22 मैचों में 68 गोल किया था।
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