ग्वालियर / राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवक , शिक्षाविद , समाजसेवी श्री बैजनाथ शर्मा का शुक्रवार की सुबह निधन हो गया। वे कुछ समय से बीमार थे। उन्हें स्वास्थ्य लाभ हेतु आरोग्यधाम चिकिसालय में भर्ती कराया गया था। उनकी पार्थिव देह को सुबह निज निवास अरगड़े की गोट लाया गया समाचार लिखे जाने तक शहरवासी उन्हें अपनी श्रध्दाजंलि अर्पित कर रहे हैं। जानकारी के मुताबिक उनकी अंतिम यात्रा 2 बजे निज निवास से लक्ष्मीगंज मुक्तिधाम रवाना होगी।
शब्दशक्तिन्यूस महान समाजसेवी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निष्ठावान स्वयंसेवक को अपनी अश्रुपूर्ण श्रद्धाजंलि व्यक्त करता है। साथ ही बैजनाथ जी को उनके व्यक्तित्व कृतित्व पर आधारित इस लेख को आदरांजलि स्वरूप प्रकाशित कर रहा है।
ग्वालियर के उपनगर मुरार में दिनांक ३ अगस्त १९२६ को जन्मे बैजनाथ जी शर्मा को उनकी पूज्य माताजी ६ माह का छोडकर ही स्वर्गवासी हो गईं ! पिताजी की पी डब्लू डी में नौकरी के चलते पडौस की माता बहिनों ने ही उनका लालन पालन किया ! ८ वर्ष पश्चात पिताजी का पुनर्विवाह हुआ ! विमाता से दो भाई और चार बहिनें हुईं ! १९३९ में आर्य समाज मंदिर में लगने बाली शाखा के स्वयंसेवक बने ! सर्व प्रथम शाखा ले जाने बाले मामा मानिक चन्द्र वाजपेई थे ! इस शाखा को लगाने के लिए जीवाजी विश्व विद्यालय के वर्तमान उप कुलपति श्री आनंद मिश्रा जी के पिताजी प्रतिदिन लश्कर से साईकिल द्वारा मुरार आते थे !
१९४१ में मिडिल परिक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की ! उसी वर्ष आंतरी के समीप एरायं गाँव के मूल निवासी पिछोर में रहने बाले कथावाचक पंडित जी की पुत्री से विवाह हुआ ! १९४२ के स्वाधीनता आंदोलन में श्री हरिप्रसाद दुबे के साथ भाग लिया ! पुलिस इन्हें गिरफ्तार करने घर पहुँची, किन्तु सी आई डी इन्स्पेक्टर द्वारा पूर्व सूचना मिल जाने के कारण पिताजी ने इन्हें बिना बताए बहाने से साले के पास पिछोर भेज दिया ! हाई स्कूल परिक्षा उत्तीर्ण करने के साथ टायपिंग भी सीख ली थी, अतः १९४५ में आसानी से जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में टाइपिस्ट नियुक्त हुए ! संयोग से जो पहला पत्र टाईप करने को मिला बह स्वयं का मुरार हाईस्कूल में चित्रकला शिक्षक के रूप में नियुक्ति का था ! अतः अपनी ज्वाईनिंग वापस लेकर ड्राईंग शिक्षक के रूप में कार्य करने लगे ! किन्तु साथ ही संघ कार्य करना भी जारी रहा !
संघ का पहला बड़ा कार्यक्रम २४ दिसंबर १९४० को मोतीझील मैदान पर हुआ | इस शीत शिविर हेतु आवश्यक टेंट तम्बू आगरा से मंगाए गए थे | इस शिविर में भाग लेने के लिये आगरा से भैयाजी जुगादे, दीनदयाल जी उपाध्याय, आचार्य गिरिराज किशोर व अन्य ८-१० स्वयंसेवक आये थे | इस शिविर में पहाडी पर “अटक एंड डिफेंस” का रोमांचकारी कार्यक्रम हुआ था | एसा प्रतीत होता था मानो दो सेनायें आपस में युद्ध रत हों | एक टुकड़ी का नेतृत्व श्री अटल बिहारी वाजपई तो दूसरी का नेतृत्व श्री बैजनाथ शर्मा कर रहे थे | अन्य प्रमुख स्वयंसेवकों में श्री मदन गोरे जो बाद में सेना में भर्ती होकर ६२ के युद्ध में शहीद हुए, श्री बालकृष्ण नारायण उपाख्य बाना मुंडी माधव कालेज उज्जैन में व्याख्याता रहे, श्री रंग गोखले, राव साहब पाटिल आदि मुख्य थे | इसमें अनेक स्वयंसेवक घायल भी हो गए थे | शिविर में मार्गदर्शन हेतु नागपुर से तत्कालीन सह सर कार्यवाह श्री मनोहर राव काले विशेष रूप से पधारे थे |
१९४८ में गांधी हत्या के मिथ्या आरोप में संघ पर प्रतिवंध लगा दिया गया ! अनेक निर्दोष स्वयंसेवक जेलों में ठूंस दिए गए ! प.पू. गुरूजी को भी गिरफ्तार किया गया ! इस अन्याय के प्रतिकार स्वरुप संघ ने सत्याग्रह प्रारम्भ किया ! १५ दिसंबर १९४८ को १९ स्वयंसेवकों के साथ बीच बाजार में शाखा लगाने के कारण बैजनाथ जी व अन्य स्वयंसेवक गिरफ्तार कर भेड बकरियों की तरह कोतवाली के एक कमरे में ठूंस दिए गए ! इस कमरे में दो पोले बांस लगे हुए थे ! जरूरत होने पर एक बांस के माध्यम से इन्हें पेशाब करना था तो दूसरे बांस से प्यास लगने पर बाहर से कांस्टेबल पानी पिला देता था ! इस स्थिति पर विरोध दर्ज करने के लिए ये लोग रात भर उच्च स्वर से “अशरण शरण शान्ति के धाम, मुझे भरोसा तेरा राम” भजन गाते रहे ! ना खुद सोये और ना ही कोतवाली में किसी और को सोने दिया ! परेशान होकर दूसरे ही दिन मजिस्ट्रेट ने इन्हें ६ -६ माह कारावास की सजा सुनाकर ग्वालियर सेन्ट्रल जेल भेज दिया !
जेल में पहले से ही नारायण कृष्ण शेजवलकर, डा. कमल किशोर, डा. मराठे, दादा बेलापुरकर, वसंत निगुडीकर, कृष्ण कान्त चुघ आदि विद्यमान थे ! एक सत्याग्रही पद्माकर आगरकर भी थे जो आगे चलकर कम्यूनिस्ट नेता बने ! जेल में बाद में सुन्दरलाल पटवा जी भी आ गए थे ! जेल में २६ लोगों का मेस बना जिसकी व्यवस्था बैजनाथ जी देखने लगे ! जेल की दुर्व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाने के कारण जेल अधिकारियों की शाह पर असामाजिक कैदियों ने स्वयंसेवकों पर प्राणघातक हमला किया ! इस हमले में कैदियों ने वलिष्ठ शरीर के बैजनाथ जी को सबसे पहले टारगेट बनाया ! इन्हें मरा हुआ समझकर ही छोडा गया ! इनके सर में २२ टाँके आये !
शासकीय सेवा में रहते हुए सत्याग्रह करने के परिणामस्वरूप नौकरी से निकाल दिए गए ! जेल से बाहर निकले तो सब और अंधकार प्रतीत हुआ ! क्या करेंगे ? परिवार कैसे चलेगा ? समस्याएँ मुंह बाए खडी थीं ! दो बार इंटरव्यू दिया ! टाईपिस्ट बन भी गए किन्तु जैसे ही अधिकारी बाल साहब को स्वयंसेवक होने का पता चला तो उन्हें अपनी नौकरी खतरे में लगने लगी ! अधिकारी की चिंता देखकर स्वतः स्तीफा लिखकर थमा दिया ! इसी दौरान इंटर मीडिएट परिक्षा पास की एवं मुम्बई से ड्राईंग परिक्षा भी उत्तीर्ण की ! इसी समय एक विचित्र संयोग हुआ ! श्री भारत भूषन त्यागी हिन्दी साहित्य में सूरदास पढ़ा रहे थे और बैजनाथ जी पढने के साथ उनका चित्र बना रहे थे ! त्यागी जी ने देख लिया और नाराजगी व्यक्त की ! किन्तु जब उनके द्वारा पढ़ाया गया विषय भी ठीक से बता दिया तो वे संतुष्ट हुए और बाद में मिलाने को डी. वी. ए. स्कूल में बुलाया ! बहां उन्होंने विद्यालय में ५० रु. मासिक पर अध्यापक बनाने की पेशकश की ! अंधा क्या चाहे दो आँखें ? एसी नौकरी जिसमें शासन द्वारा निकाले जाने का खतरा ना हो ! बैजनाथ जी ने अविलम्ब स्वीकृति दे दी ! उसी स्कूल में पढ़ाते पढ़ाते उन्होंने भूगोल में एम्.ए. किया, साहित्य रत्न की परिक्षा भी उत्तीर्ण की ! इसी दौरान अव्दुल्लागंज में शासकीय व्याख्याता नियुक्त हो गए ! किन्तु त्यागी जी ने कहा कि इसी विद्यालय में तुम्हे व्याख्याता बना देते हैं ! इस आत्मीय आग्रह को ठुकराना बैजनाथ जी के लिए संभव नही था ! बाद में वे इसी विद्यालय के प्रिंसीपल भी बने !
तरानेकर जी की हर इच्छा का मान रखा ! उन्होंने कहा शिक्षक संघ में काम करो तो ग्वालियर संभाग में कार्य विस्तार किया ! हर जिले में वर्ष में कम से कम दो बार संपर्क ! गुरूजी के बौद्धिक अनुसार “संगठन खडा करना है तो कार्यकर्ता खड़े करो” ध्येय वाक्य रहा ! बाद में तरानेकर जी ने कहा की किसी नई जगह सेवा कार्य करो तो कोली जाटव समाज की एक बस्ती में स्थित घटवरिया मंदिर रोज शाम को जाकर नौजवानों को कवड्डी खिलाने तथा बच्चों को पढ़ाने का क्रम प्रारम्भ किया ! सबमें उत्साह पैदा हुआ ! दादा बैजनाथ जी की प्रेरणा से ग्वालियर में संघ के तमाम प्रकल्प खड़े हुए। वे कई संस्थानों व समाजसेवी संगठनों के सरंक्षक भी थे।