प्रवीण दुबे
मध्यप्रदेश में 28 सीटों पर होने जा रहे विधानसभा चुनाव की जहां अंतिम गिनती शुरू हो गई है वहीं इस चुनाव में ग्वालियर अंचल की 16 सीटों पर प्रभावशाली भूमिका वाले नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा से ताल ठोंकने के बावजूद यह कहना कतई उचित नहीं होगा की चुनावी हवा एक तरफा अर्थात पूरी तरह भाजपा के पक्ष में दिखाई दे रही है। कोरोना की मार और बेवजह समय पूर्व थोपे गए चुनाव से निरुत्साहित मतदाता जहां अजीब सी चुप्पी साधे दिखाई दे रहा है वहीं दूसरी और सत्ताधारी दल भाजपा का जमीन से जुड़ा कार्यकर्ता पार्टी में घटती अपनी भूमिका को लेकर चिंतित दिखाई देता है। वह इस बात से भी परेशान है की जिस प्रकार सत्ता के लिए सिद्धांतों से समझौता कर तमाम कांग्रेसियों की भाजपा में सशर्त एंट्री को मान्य किया गया वह लम्बे समय से काम कर रहे पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। इन सवालों के बीच वह असमंजस में है की वह करे तो क्या करे। जानकारों का मानना है की यह स्थिति कम से कम भाजपा जैसे कार्यकर्ता आधारित राजनीतिक दल के लिए शुभ संकेत नहीं हैं और चुनाव के समय तो चिंतनीय कही जा सकती है। ऐसा इसलिए क्यों की बड़े नेता चुनावी सभाओं में भीड़ तो जुटा सकते हैं लेकिन मतदान के समय वोटर को पोलिंग बूथ तक ले जाने के लिए गली मोहल्ले से जुड़े पुराने कार्यकर्ताओं की बड़ी भूमिका होती है। यदि वे सक्रीय नहीं हुए तो मतदाताओं के एक बड़े वर्ग को मतदान के लिए प्रेरित न करने से मतदान प्रतिशत गिर सकता है जो भाजपा के लिए चिंता का विषय हो सकता है।