प्रवीण दुबे
हम युगों युगों से प्रकृति उपासक रहे हैं हम उस सनातन संस्कृति के अनुगामी है जहां कंकर कंकर में शंकर और जल नभ और पाताल के समस्त जीव निर्जीव में परमात्मा का वास मानकर उसे पूजित करने की परंपरा है। इसके दो अनूठे उदाहरण रविवार और सोमवार को देखने मिलेंगे सच पूछा जाए तो पूरी दुनिया में जल संरक्षण और जल को मां स्वरूप संज्ञा देकर उसको देवतुल्य मानने की इससे बेहतर परम्परा कहीं भी देखने को नहीं मिलती । रविवार को पूरे देश में गंगा दशहरा और सोमवार को निर्जला एकादशी के त्यौहार मनाए जाएंगे। दोनों ही दिनों का धार्मिक महत्व जो भी हो लेकिन हम यह दावा तथ्यात्मक रूप से अवश्य कर सकते हैं की इन दोनों ही अवसरों के पीछे जल संरक्षण व जल के प्रति श्रद्धा व आदरभाव का जो संदेश दिया गया है वह अदभुत होने के साथ सम्पूर्ण विश्व के लिए प्रेरणा दाई भी है। गंगा दशहरा के बारे में कहा जाता है की इसी दिन पृथ्वी वासियों के पापों का नाश करने पतित पावनी गंगा ने भगवान भोलेनाथ की जटाओं से धरती पर अवतरण लिया था ।
संदेश स्पष्ट है मानवमात्र के कल्याण का मंगलसूत्र केवल जल अर्थात गंगा में ही छुपा है। यही वजह है की उसे मां की संज्ञा दी गई है। वह समस्त पापों का नाश करने वाली है जन्म से लेकर मृत्यु तक और समस्त मंगल कार्यों के अभीष्ट के लिए इस गंगाजल के उपयोग की परम्परा है। अर्थात जल हमारे लिए पूज्य है यही वजह है की हमने उसे धार्मिक मान्यताओं से जोड़ा न केवल गंगा बल्कि समस्त नदियों,सागरों के जल को हमने पवित्र मानकर पूजा की है। इन नदियों सागरों के तटों पर हमने तीर्थ धाम स्थापित किये हैं। पवित्र जल को घर में रखकर प्रतिदिन उसकी पूजा करने की परंपरा है हमारी। इससे भी अदभुत है निर्जला एकादशी का दिन जो की रविवार को मनाया जाने वाला है। पूरे 24 घण्टे तक निर्जल अर्थात बिना जल ग्रहण किये व्रत धारण करना। अपना जीवन दांव पर लगाकर जल संरक्षण का इससे बड़ा उदाहरण कोई दूसरा नहीं हो सकता। एक दिन प्यासे रहकर जल को बचाना ,आज एक एक बूंद जल हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। आज दुनिया में तमाम ऐसे देश व इलाके हैं जहां पेयजल की भारी कमी है। यहां की जिंदगी बोतल बंद आयतित जल के सहारे चल रही है। कहा जाता है की वर्षों पूर्व इन स्थानों पर भी पेयजल की भरमार थी लेकिन उसके अपव्यय व विकास की अंधी दौड़ तथा प्राकृतिक संसाधनों के बेतहाशा इस्तेमाल ने इन इलाकों में पेयजल की भारी कमी खड़ी कर दी है। अब एकमात्र रास्ता जल संरक्षण का ही शेष है। हमारे निर्जला एकादशी जैसे तीज त्योहारों के पीछे भी यही संदेश छुपा है। याद करिए सत्तर के दशक को जब भारत के पास गेहूं की कमी थी और अमेरिका ने हमें जो गेहूं निर्यात किया था वो बेहद खराब क्वालिटी का था। ऐसे समय में हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने देशवासियों से सप्ताह में एक दिन निराहार रहकर गेहूं बचाने का आव्हान किया था ,देशवासियों ने उसे सहर्ष स्वीकार करके एक दिन का उपवास कर लाखों टन गेहूं की बचत की थी। आज निर्जला एकादशी जैसी हमारी गौरवशाली परम्पराओं के पीछे भी जल संरक्षण का महान संदेश निहित है । धन्य हैं हमारे ऋषि मुनि जिन्होंने ने हजारों वर्ष पूर्व ही जल के प्रति आदर व जल संरक्षण के लिए गंगा दशहरा व निर्जला एकादशी जैसी धार्मिक त्योहारों की परंपरा शुरू की इसका महत्व हम सबको समझने की जरूरत है।