विशेष सत्र के बीच सोमवार को मोदी कैबिनेट से महिला आरक्षण बिल को मंजूरी मिल गई है. माना जा रहा है कि केंद्र सरकार जल्द इसे लोकसभा में पेश कर सकती है. यह पहला मौका नहीं है, जब महिला आरक्षण बिल सदन के पटल पर आएगा. 1996 से 27 साल में कई बार यह अहम मुद्दा संसद में उठ चुका है. लेकिन दोनों सदनों में पास नहीं हो सका. 2010 में तो हंगामे के बीच राज्यसभा में पास भी हो गया था. लेकिन लोकसभा से पारित नहीं हो सका था.
अब एक बार फिर महिला आरक्षण बिल चर्चा में है। महिलाओं के संसद में सीट आरक्षित करने का सबसे पहला प्रयास एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली सरकार ने सितंबर 1996 में किया था।
तब से लगभग हर सरकार ने इसे आगे बढ़ाने की कोशिश की है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार 2010 में इसे राज्यसभा में पारित कराने में भी कामयाब रही थी। लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति और आम सहमति की कमी के कारण यह कदम सफल नहीं हो सका।
पहली बार महिला आरक्षण बिल को एचडी देवेगौड़ा की सरकार ने 12 सितंबर 1996 को पेश करने की कोशिश की.
सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में संसद में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया. इसके तुरंत बाद देवगौड़ा सरकार अल्पमत में आ गई. देवगौड़ा सरकार को समर्थन दे रहे मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद महिला आरक्षण बिल के विरोध में थे.
जून 1997 में फिर इस विधेयक को पारित कराने का प्रयास हुआ. उस समय शरद यादव ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा था, ”परकटी महिलाएं हमारी महिलाओं के बारे में क्या समझेंगी और वो क्या सोचेंगी.”
1998 में 12वीं लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए की सरकार आई. इसके क़ानून मंत्री एन थंबीदुरई ने महिला आरक्षण बिल को पेश करने की कोशिश की. लेकिन सफलता नहीं मिली. एनडीए सरकार ने 13वीं लोकसभा में 1999 में दोबार महिला आरक्षण बिल को संसद में पेश करने की कोशिश की. लेकिन सफलता नहीं मिली.
वाजपेयी सरकार ने 2003 में एक बार फिर महिला आरक्षण बिल पेश करने की कोशिश की. लेकिन प्रश्नकाल में ही जमकर हंगामा हुआ और बिल पारित नहीं हो पाया.
एनडीए सरकार के बाद सत्तासीन हुई यूपीए सरकार ने 2010 में महिला आरक्षण बिल को राज्यसभा में पेश किया. लेकिन सपा-राजद ने सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दी. इसके बाद बिल पर मतदान स्थगित कर दिया गया. बाद में नौ मार्च 2010 को राज्यसभा ने महिला आरक्षण बिल को एक के मुकाबले 186 मतों के भारी बहुमत से पारित किया. जिस दिन यह बिल पारित हुई उस दिन मार्शल्स का इस्तेमाल हुआ.