ऐसे में जावेद अख्तर का कन्हैया के प्रचार के लिए आना कोई नई बात तो नहीं लेकिन यहां उनके बयान ने एक बार फिर उनकी मोदी विरोध की मानसिकता को जाहिर कर दिया। वैसे अभिनेता प्रकाश राज ने भी इसी सीट पर कन्हैया के लिए वोट मांगे, जो भी पीएम मोदी के मुखर आलोचक माने जाते हैं।
अपने प्रचार अभियान में चिर-परिचित अंदाज में जावेद अख्तर ने कन्हैया कुमार की जोरदार वकालत की। प्रधानमंत्री मोदी की ओर इशारा करते हुए अख्तर का कहना था कि कन्हैया कुमार से मोदी जी को तकलीफ है और कन्हैया जेएनयू में सच बोलता है, यहां आकर भी सच बोलता है। अख्तर ने पीएम पर इस दौरान आरोप लगा दिया कि मोदी जी के राज में सच बोलने की इजाजत नहीं है। कन्हैया की जीत देश के लोकतंत्र में एक नई दिशा तय करेगी।
खैर! कन्हैया जिस विवादित इतिहास के आईने में सियासी मैदान में कूदे हैं, उसकी चर्चा करना यहां इसलिए लाजिमी है क्योंकि कभी जेएनयू में आजादी की मांग का झंडा बुलंद करने वाले कन्हैया के समर्थन में जावेद अख्तर दिखाई तो दिए लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया कि एक तो कन्हैया किस प्रकार की आजादी की बात कर रहे थे?
बड़ा सवाल है कि आखिर देश के लोकतंत्र पर सवाल उठाने की कन्हैया की बात कौन सा सच बयां करती है, जिसका समर्थन जावेद अख्तर कर रहे हैं। उनकी पीएम के राज में बोलने की इजाजत नहीं देने की बात तो मानो हास्यास्पद प्रतीत होती है, क्योंकि चुनावी दौर में सर्वाधिक हमले तो पीएम मोदी पर ही हो रहे हैं, फिर वह किस आधार पर कह सकते हैं कि उनके राज में बोलने की आजादी नहीं है।
जावेद अख्तर ने इस बीच कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा मुसलमानों को भाजपा के खिलाफ एकजुट होने और वोट देने की अपील को नकार दिया, क्योंकि उन्होंने धर्म के आधार पर वोट देने को गलत ठहराया।
बहरहाल यहां जावेद अख्तर भले ही धर्म को नकारने की बात कर रहे हैं लेकिन अतीत तो यही बताता है कि वे कथित रूप से धर्म के आधार पर पक्षपात करते रहे हैं। पुलवामा हमले को लेकर जब उन्होंने शहीद सीआरपीएफ जवानों के प्रति संवेदना व्यक्त की थी। इस दौरान उन्होंने कहीं से भी पाकिस्तान और आतंकवादियों की बर्बरता का जिक्र नहीं किया था, इस पर वह सोशल मीडिया पर जमकर ट्रोल हुए थे।
कहा जाता है कि जावेद अख्तर के विचारों में घोषित तौर पर कभी भी कश्मीर में पनप रहे आतंकवाद पर जोरदार मजम्मत नहीं दिखती जो उनकी पक्षपाती मानसिकता का परिचय देती है।
लोग तो ये भी कहते हैं कि जावेद अख्तर पाकिस्तान पर चुप्पी भले ही साधे रहते हों, लेकिन विवादित मुद्दों पर खासे मुखर रहे हैं। बीते साल ‘पद्मावत’ फिल्म के विरोध के दौरान राजपूतों के आत्मसम्मान को भी वे ठेस पहुंचा चुके हैं। उन्होंने एक निजी चैनल के साक्षात्कार में कहा था कि ‘ये जो राजस्थान के राजा-महाराजा हैं, वे 200 साल तक अंग्रेजों के सामने पगड़ी बांधकर खड़े रहे और उन्हें सलाम करते रहे, तब उनकी राजपूती कहां थी। पिछले हजारों सालों से अंग्रेजों ने कोई जंग नहीं लड़ी। वे राजा ही इसलिए बने, क्योंकि उन्होंने अंग्रेजों की गुलामी की थी। इसलिए राजा-महाराजा अपने सम्मान की बात न करें।
बहरहाल, जावेद अख्तर जिस तरह से कन्हैया के पैरोकार बनकर, भाजपा के विरोध में बड़ी-बड़ी बातें करके आए हैं, उससे जाहिर है कि जावेद अख्तर एक बेहतरीन स्क्रिप्ट राइटर होने के बावजूद मोदी विरोध में कमजोर और अतिरंजित पटकथा लिख रहे हैं।