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दक्षिण की नूरा कुश्ती और हाईकमान की चुप्पी से तार तार होता कमल दल का अनुशासन

प्रवीण दुबे

शीतला सहाय, भगवान सिंह यादव, डॉक्टर रघुनाथराव पापरीकर, अनूप मिश्रा, नारायण सिंह कुशवाह जैसे धुरंधरों की कर्मस्थली रहा ग्वालियर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र क्या इस बार सत्ताधारी दल भाजपा के लिए सिरदर्द बनता दिखाई दे रहा है । ऐसा इसलिए क्योंकि चुनाव  अभी 6 माह दूर होने के बावजूद यहां जो समीकरण बनते दिखाई दे रहे हैं उन्हें देखकर भाजपा जैसे अनुशासित और कार्यकर्ता आधारित दल के नीति निर्धारकों के होश उड़े  हुए हैं। एक तरफ फायर ब्रांड नेता और प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री रहे अनूप मिश्रा ने बिना लाग लपेट के खुद को दक्षिण विधानसभा से प्रत्याशी घोषित कर दिया है तो दूसरी ओर एक अन्य दिग्गज नेता व प्रदेश सरकार में पूर्व मंत्री रहे नारायण सिंह कुशवाहा ने मीडिया से बात करते हुए अनूप मिश्रा की दक्षिण से दावेदारी पर  साफ तौर पर कहा कि दक्षिण ही नहीं भितरवार भी खाली है गौरतलब है कि श्री मिश्रा पिछला विधानसभा चुनाव भितरवार से ही हारे थे, नरायण  सिंह ने  अनूप मिश्रा की तर्ज पर खुद को अभी प्रत्याशी तो घोषित नहीं किया है लेकिन  श्री कुशवाह ने  अपरोक्ष रूप से  यह तो जता ही दिया की वे ही दक्षिण विधानसभा से चुनाव लड़ने के असली हकदार हैं और अनूप की यहां से दावेदारी उचित नहीं है।

उधर पिछली बार पार्टी से बगावत करके चुनाव मैदान में उतरीं पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता को भी दक्षिण से चुनाव की दौड़ में शामिल माना जा रहा है। वे अब न केवल भाजपा में वापसी कर चुकीं हैं बल्कि उनको पार्टी कितना अधिक तवज्जो देती है इसका  प्रमाण इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें पिछड़ा वर्ग मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणीमें जगह प्राप्त है और वह मोर्चा की तरफ से छत्तीसगढ़ की चुनाव प्रभारी भी घोषित की जा चुकी हैं। वैसे भी देखा जाए तो समीक्षा गुप्ता में एक अच्छे जनप्रतिनिधि होने के साथ ही अन्य वह सारी खूबियां मौजूद हैं जो आज के  राजनीतिक परिवेश में चुनाव जीतने के लिए आवश्यक कही जा सकती हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से निकटता रखने वाले पूर्व राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी के पुत्र राजेश सोलंकी के क्रियाकलाप भी इस ओर इशारा करते हैं  कि वे भी चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वालों की भीड़ में शामिल हैं।  उधर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से आने वाले ग्वालियर के सांसद विवेक शेजवलकर के पुत्र प्रांशु शेजवलकर का नाम भी बड़ी तेजी के साथ दक्षिण विधानसभा के संभावित प्रत्याशियों के रूप में सामने आया है। इस परिवार की पार्टी के साथ  नागपुर तक पकड़ और  परिवारवाद की पृष्ठभूमि प्रांशु शेजवलकर की दावेदारी को और मजबूत करते हैं।

उधर जातिगत समीकरणों को दृष्टिगत रखते हुए  केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह के खासम खास ग्वालियर ग्रामीण के विधायक व प्रदेश सरकार के मंत्री भारत सिंह कुशवाह की भी दक्षिण विधानसभा पर नजर बताई जा रही है। कारण साफ है कि इस विधानसभा मैं सर्वाधिक प्रभाव रखने वाले कुशवाहा समाज की बहुलता उन्हें अपने लिए एक सुरक्षित विधानसभा के रूप में दिखाई दे रही है। सूत्रों का कहना है कि भारत सिंह कुशवाह अपने ग्रामीण चुनाव क्षेत्र से इस कारण मुंह फेरना चाहते हैं क्योंकि यहां उनके  खिलाफ नाराजगी के बोल मुखर होते दिखाई दे रहें हैं। उधर यह भी चर्चा है कि पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया भी दक्षिण विधानसभा से चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं।

ऐसा नहीं कि सत्ता और संगठन में बैठे पार्टी के नीति निर्धारकों को ग्वालियर की दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में चल रही उठापटक की जानकारी नहीं थी पार्टी के कर्ता-धर्ताओं  ने इस विधानसभा क्षेत्र में चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वालों की लंबी होती सूची और पनपते असंतोष  की गंभीर स्थिति को काफी पहले ही भांप लिया था यही वजह थी की उन्होंने जिस वक्त अलग-अलग विधानसभा के सयोजकों की घोषणा की उस समय दक्षिण विधानसभा में संयोजक के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रचारक व पार्टी की रीतिनीति को अच्छे से समझने वाले खाटी नेता विवेक जोशी को इस विधानसभा की कमान सौंपी गई है जिससे वाली किसी भी विषम परिस्थिति से निपटा जा सके संदेश साफ है पार्टी किसी के भी दबाव में काम नहीं करने वाली।
 हालांकि जो लोग भाजपा की रीति नीति को ठीक प्रकार से समझते हैं वह यह भी भली प्रकार से जानते हैं की पार्टी में किसी व्यक्ति विशेष के दबाव में प्रत्याशी का चयन बहुत दूर की बात है सर्ववदित है
 की जब विषम परिस्थितियां होती हैं तो पार्टी आपसी कलह से निपटने के लिए किसी ऐसे चेहरे को भी मैदान में उतारने का निर्णय लेने में भी नहीं हिचकिचाती जो टिकटों की दौड़ में शामिल नहीं रहता है । नारायण सिंह इसका बड़ा उदाहरण कहे जा सकते हैं उन्हें जिस समय पहली बार पार्टी ने इस विधानसभा से टिकट दिया था तब वे प्रत्याशी की दौड़ से बहुत दूर थे और कमोवेश इसी प्रकार विषम परिस्थिति  निर्मित  थी लेकिन पार्टी दबाव में नहीं आई और नए चेहरे को ना केवल प्रत्याशी बनाया गया बल्कि वह चुनाव भी जीते और पूरा संगठन उनके लिए एकजुट नजर आया।
 इस समय पार्टी के दिग्गज नेता अनूप मिश्रा ने जिस प्रकार से खुद के चुनाव लड़ने की ओर मीडिया में बयान दिया है उसे पार्टी की रीति नीति के अनुसार कतई सही नहीं माना जा सकता हालांकि जो नाम ऊपर दिए गए हैं वह भी चुनाव  लड़ने की इच्छा रखते हैं लेकिन उन्होंने सीधे तौर पर अपना मुंह नहीं खोला है। संदेश साफ है  की इस बात का भान अधिकांश नेताओं को है कि पार्टी दबाव में प्रत्याशी चयन नहीं करेगी और यदि अधिक दबाव बनाया गया तो बना बनाया खेल भी बिगड़ सकता है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि पार्टी में बड़ा कद रखने वाले व कई बार के विधायक मंत्री रहे अनूप मिश्रा ने   पार्टी लाइन से हटकर इस प्रकार की इच्छा आखिर क्यों  व्यक्त की है? या फिर श्री मिश्रा पार्टी की रीति नीति से इतने अनभिज्ञ हैं की दबाव बनाकर प्रत्याशी घोषित कराने की रणनीति अपनाएंगे ? व राजनीतिक विश्लेषकों की  माने तो श्री मिश्रा पिछले दो ढाई वर्षो के दौरान पार्टी द्वारा उनकी की जा रही अवहेलना से बेहद आहत हैं उन्होंने  सार्वजनिक रूप से इस बारे में बयान भी दिया है  उन्होंने हाल ही में यहां तक कहा की पार्टी यदि उनकी अवहेलना  की भरपाई करे राष्ट्रीय महासचिव जैसे किसी पद देने की बात करे तो उनकी अवहेलना से जुड़ी भरपाई हो सकती है। उल्लेखनीय है कि श्री मिश्रा ने  अपने राजनीतिक वजूद को कायम रखने के लिए कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया से भी निकटता बढ़ाइ है ऐसा  करते समय श्री मिश्रा ने अपने मामा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई पर सिंधिया राजपरिवार के एहसान की बात भी कह डाली थी उस समय उन्होंने यह ख्याल भी नहीं रखा था कि  ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया ने अटल बिहारी वाजपेई को अंधेरे में रखते हुए उनके खिलाफ पर्चा दाखिल कर दिया था और अटल जी को इस वजह से अपने ही गृहनगर ग्वालियर में अपने जीवन की शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था।
अब ऐसा लगता है की सिंधिया के साथ जा खड़े हुए अनूप मिश्रा के ताजा बयान जिसमें कि दक्षिण से चुनाव लड़ने की बात कही गई कहीं किसी राजनीतिक उलटफेर का इशारा तो नहीं है हालांकि श्री मिश्रा ने एक अन्य बयान में भाजपा को अपनी मां बताया और पार्टी को निर्णय को सर्वमान्य कहने की बात भी कही लेकिन उनके दक्षिण से ही चुनाव लड़ने के बयान ने  भाजपा के अंदर जो राजनीतिक बवाल खड़ा कर दिया है उसकी भरपाई  होना फिलहाल तो नजर नहीं आता।
यह है दक्षिण विधानसभा का तीन चुनावों का  राजनीतिक इतिहास
2018 में ग्वालियर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में कुल 252541 मतदाता थे। कुल वैध मतों की संख्या 152430 थी। इस सीट से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार प्रवीण पाठक जीते और विधायक बने। उन्हें कुल 56369 वोट मिले। भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार नारायण सिंह कुशवाह कुल 56248 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। वह 121 मतों से हार गए।
2013 में, ग्वालियर दक्षिण विधान सभा क्षेत्र में कुल 230671 मतदाता थे। कुल वैध मतों की संख्या 133625 रही। इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी नारायण सिंह कुशवाह जीते और विधायक बने। उन्हें कुल 68627 वोट मिले। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार रमेश अग्रवाल कुल 52360 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। वह 16267 वोटों से हार गए।
2008 में, ग्वालियर दक्षिण विधान सभा क्षेत्र में कुल 164313 मतदाता थे। कुल वैध मतों की संख्या 90908 रही। इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी नारायण सिंह कुशवाह जीते और विधायक बने। उन्हें कुल 40061 वोट मिले। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस उम्मीदवार रश्मी पवार शर्मा कुल 32316 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहीं। वह 7745 वोटों से हार गईं।
वर्ष उम्मीदवार दल कुल वोट
2018 प्रवीण पाठक कांग्रेस 56369
2013 नारायण सिंह कुशवाह बी जे पी 68627
2008 नारायण सिंह कुशवाह बी जे पी 40061
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