Homeदेशदेश के सर्वोच्च सम्मान पर विवादों की काली छाया ?

देश के सर्वोच्च सम्मान पर विवादों की काली छाया ?

 

 

 

 

देश के 70  वे गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर भारत सरकार ने जैसे ही नए भारतरत्न सम्मानों की घोषणा की विवादों की आंधी चल पड़ी .सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी,नाना जी देशमुख और भूपेन हजारिका को भारतरत्न सम्मान देने की घोषणा की है .देश की जनता को और अनेक राजनीतिक दलों को लगता है की ये सर्वोच्च नागरक सम्मान राजनीतिक गणित के चलते दिए गए हैं

भारतरत्न की स्थापना 1954  में की गयी और तब से अब तक जितने लोगों को भारतरत्न से सम्मानित किया गया उनमें से कुछ को छोड़ बाक़ी के नाम किसी को याद नहीं हैं ,इसके लिए आपको संदर्भ का सहारा ही लेना पडेगा .ये सम्मान राजनीति,समाजसेवा,विज्ञान और खेल के क्षेत्रों में अकल्पित कार्य करने वालों को ही नहीं बल्कि विदेश के नामचीन्ह लोगों को भी दिया जा चुका है लेकिन इस सम्मान को लेकर विवाद अब से पहले कम ही हुए हैं .अब तक देश के -विदेश के 45  महापुरुषों को ये सम्मान दिया गया है इनमें से 12  को मरणोपरांत ये सम्मान देने का निर्णय समय-समय पर किया गया और इसके लिए भी 1955  में भारतरत्न देने के नियम पहली बार बदले गए.देश ने पहला मरणोपरांत भारतरत्न पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को प्रदान किया .

देश के सर्वोच्च सम्मान को लेकर विवादों का सिलसिला भी नया नहीं है.देश में भाजपा के सत्तारूढ़ होने से पहले भी भारतरत्न सम्मान विवादास्पद हो चुका है.बात 1988  की है जब तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने तमिलनाडु के स्थापित नेता एमजी रामचंद्रन को मरणोपरांत भारतरत्न सम्मान देने की घोषणा की थी,तब भी राजीव सरकार पर भी ऐसे ही आरोप लगे थे जैसे आज मोदी सरकार पर पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और भूपेन हजारिका को भारतरत्न देने के निर्णय के बाद लग रहे हैं .राजीव सरकार की नजर में भी चुनावी गणित था और मोदी सरकार की नजर में बंगाल और असम के वोट हैं

भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान जब भी विवादों में आता है तकलीफ होती है .इससे पहले वैज्ञानिक सीएनएन राव और सचिन तेंदुकलकार को भी जब भारतरत्न से सम्मानित करने के निर्णय हुए तो विवाद इतने बढे की अदालत तक गए .देश मेजर ध्यानचंद को भारतरत्न के रूप में सम्मानित होते देखना चाहता था लेकिन ऐसा नहीं हुआ.रामचंद्रन के पहले देश में डॉ बीआर आंबेडकर और वल्ल्भभाई पटेल को भारतरत्न देने की मांग को लेकर विवाद हुए थे

जैसा की मै इन सम्मानों को केवल जीवित व्यक्तियों को देने की वकालत कर चुका हूँ वैसी  ही वकालत पूर्व में भी लोगों ने की देश ने  रवीन्द्रनाथ टैगौर , सम्राट अशोक और अकबर ,स्वामी विवेकानंद ,शिवाजी महाराज तक को भारतरत्न सम्मान देने की मांग कर डाली .जब इस सम्मान के लिए पंडित मदनमोहन मालवीय का नाम घोषित किया गया तब भी विवाद इस सम्मान के साथ खड़े थे क्योंकि इसके पीछे प्रधानमंत्री का चुनावी गणित लोगों को दिख रहा था.मोदी उसी बनारस से चुनाव लाडे थे जहाँ के मदनमोहन मालवीय थे

मेरा कहना है की भारतरत्न जैसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान को विवादों से बचने और इसका राजनितिक लाभ लेने की कोशिशों को प्रतिबंधित करने के लिए इसके चयन की प्रक्रिया पारदर्शी बनाई जाना चाहिए,इसके लिए नियम बदले जाएँ अन्यथा ये सम्मान खिलौना बनकर रह जाएगा.हर राजनीतिक दल को अपना नेता भारतरत्न के योग्य लगता है और समय-समय पर इसके लिए मांगे होती हैं आंदोलन होते हैं ,यदि दबाब में आकर सर्कार भारतरत्न बांटती तो अब तक वीर सावरकर से लेकर कांशीराम,प्रकाश सिंह बादल .लालकृष्ण आडवाणी,ज्योति बसु,एन  टी   रामाराव को कब का   भारतरत्न सम्मान दिया जा चुकता ,गनीमत है की अभी तक ऐसा नहीं हुआ

दुर्भाग्य की बात ये है की देश ने मरणोपरांत एक दर्जन से अधिक महापुरुषों को भारतरत्न से सम्मानित किया लेकिन महात्मा गाँधी इस सूची में दर्ज नहीं हैं ,क्योंकि वे इस सम्मान से ऊपर हैं.बहुत से लोग  हैं जो बिना भारतरत्न के भी भारतरत्न से दमकते हैं .दुर्भाग्य ये है की सत्ता में बैठे लोग इस सम्मान का दुरूपयोग अपने राजनीतिक फायदे के लिए करने लगे हैं.आज प्रणव मुखर्जी के नाम पर सबसे ज्यादा टीका-टिप्पणी  सिर्फ इसीलिए हो रही है .भूपेन हजारिका के नाम पर कोई आपत्ति नहीं कर सकता किन्तु जिस सोच के साथ हजारिका का नाम घोषित किया गया है उससे बेचारे हजारिका भी विवादों के घेरे में आ गए .

@ राकेश अचल 

 

 

 

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