प्रवीण दुबे
देश के जाने माने राष्ट्रवादी साहित्यकार और पूर्व प्रधानमंत्री अटलजी के मित्र लेखक श्री शैवाल सत्यार्थी ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर एक भावुक कर देने वाली अपील की है यूं तो उन्होंने यह अपील अपने चिकित्सा जगत से जुड़े साथियों के लिए की है लेकिन ग्वालियर के साहित्य जगत से जुड़े लोगों के अंतर्मन को इस अपील ने भावुक कर दिया है,साथ ही चिकित्सा क्षेत्र के प्रति समाज की घटती विश्वसनीयता की ओर भी इंगित किया है।
वयोवृद्ध साहित्यकार श्री सत्यार्थी जी ने अपने अधिकृत फेसबुक पेज पर
“तो मेरे अवशेष गंगा जी में बहा देना”
शीर्षक से लिखी गई पोस्ट में खुद के देहदान की इच्छा व्यक्त की है। उन्होंने लिखा कि चिकित्सा जगत के मेरे प्यारे साथियों मुझे मालूम है, तुम्हें अपने प्रयोगों के लिए मेरे शरीर की ज़रूरत है । यह शरीर माटी अर्थात नश्वर है, और माटी ही में मिलना है , यह भी मालूम है, फिर मोह कैसा ? तो, तुम्हें यह सौंपने का विचार कर रहा हूँ ।
श्री सत्यार्थी ने लिखा कि यद्यपि, इस शरीर में अब कुछ नहीं बचा है शून्य है अब यह ….फिर भी यदि, व्यर्थ साबित हो यह — तो इसे गंगा माँ को सौंप अवश्य देना ! यूँ तो, माटी है यह … कहीं बिखर जाए, क्या फ़र्क पड़ता है !
तुम सब मेरा स्नेहिल नमन स्वीकार करो ।
…..वन्देमातरम् !
चूंकि शैवाल सत्यार्थी एक वयोवृद्ध साहित्यकार हैं तो उन्होंने अपनी पोस्ट में देहदान किए जाने के अतिरिक्त अपने शरीर के व्यर्थ साबित होने पर गंगा में प्रवाहित करने की बात कहकर सबको चौंका दिया,समझ नहीं आया जब चिकित्सा प्रयोजन हेतु देहदान कर दिया तो शरीर के व्यर्थ होने और गंगा में प्रवाहित करने का आग्रह वे क्यों कर रहे हैं ?
इस बात की सत्यता जानने शब्दशक्ति न्यूज ने श्री सत्यार्थी से बात की तो उन्होंने आश्चर्यजनक बात कही उन्होंने बताया कि अपने देहदान की इच्छा जब उन्होंने अपने मित्रों निकट के शुभ चिंतकों से की तो कई मित्रों ने इसका समर्थन किया तो धार्मिक जगत से जुड़े संतों ने ऐसा न करने की सलाह दी ।
श्री सत्यार्थी ने कहा कि उन्होंने देहदान का पक्का इरादा कर लिया है लेकिन चिकित्सा जगत से जिस प्रकार की बातें सामने आती रही हैं कि देहदान किए गए शव का चिकित्सा प्रयोजन हेतु ठीक से इस्तेमाल नहीं होता और कई अंगों को फैंक दिया जाता है,श्री सत्यार्थी ने इसके लिए कुछ समय पूर्व कचरे में मिले मानव नेत्रों व अन्य अंगों से जुड़े समाचारों का उदाहरण भी दिया।
उन्होंने स्पष्ट किया कि यही वजह है कि उन्होंने अपनी पोस्ट में चिकित्सकों के लिए खुद की देह के व्यर्थ साबित होने पर फेंकने के बजाए गंगा जी में बहाए जाने की बात लिखी ही।
निःसंदेह वयोवृद्ध साहित्यकार सत्यार्थी जी ने जहां अपनी पोस्ट में देहदान करने की प्रेरणा दी है वहीं उन्होंने चिकत्सा जगत के घिनौने कृत्य को उजागर करते हुए उसपर अपनी चिंता भी जाहिर की है।
क्या कहा गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय के डीन डॉ आर के एस धाकड़ ने
शब्दशक्ति न्यूज ने इस विषय को लेकर ग्वालियर के गजराराजा चिकत्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता (डीन) डॉ धाकड़ से चर्चा की और श्री सत्यार्थी की चिंता से अवगत कराते हुए
यह सवाल किया कि क्या देहदान पश्चात प्राप्त मृत शरीरों का इस्तेमाल आप कैसे करते हैं । ? इसके जवाब में डॉ धाकड़ ने स्पष्ट किया कि उन्हें देहदान से जो भी शव प्राप्त होते हैं उनका पूर्णतः मेडीकल छात्रों की पढ़ाई हेतु सदउपयोग किया जाता है। उन्होंने अस्पताल में कचरे में मिली आंखों से जुड़े संदर्भ को अफसोसजनक बताया और उसकी सत्यता से इंकार किया डॉ धाकड़ ने कहा कि वयोवृद्ध साहित्यकार श्री सत्यार्थी जी ने बहुत अच्छी बात की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया है और हम अब ग्वालियर में देहदान से प्राप्त शवों के मेडिकल उपयोग पश्चात जो भी अवशेष बचेंगे उनका विधिवत दाह संस्कार किए जाने की बात को अमल में लाने का नियम बनाने पर विचार करेंगे इसके लिए उन्होंने शहर के प्रबुद्धजनों की एक समिति बनाकर चर्चा करने की बात भी कही।
साहित्यकार लेखक श्री शैवाल सत्यार्थी द्वारा अपने सोशल मीडिया पेज पर खुद के देहदान की इच्छा और उसको लेकर व्यक्त चिंता से जुड़ी पोस्ट को हम शब्द सह प्रस्तुत कर रहे हैं
# ….तब, मेरे “अवशेष”:
गंगा जी में बहा देना !
* शैवाल सत्यार्थी.
चिकित्सा – जगत के,
मेरे प्यारे साथियों !
मुझे मालूम है, तुम्हें अपने प्रयोगों के लिए — मेरे शरीर की ज़रूरत है । यह शरीर माटी
( नश्वर ) है, और माटी ही में मिलना है : यह भी मालूम है, फिर मोह कैसा ? तो, तुम्हें यह सौंपने का विचार कर रहा हूँ ।
यद्यपि, इस शरीर में अब, बचा कुछ नहीं है : शून्य है अब यह ….फिर भी यदि, व्यर्थ साबित हो यह — तो इसे गंगा माँ को सौंप अवश्य देना ! यूँ तो, माटी है यह … कहीं बिखर जाए, क्या फ़र्क पड़ता है !
तुम सब मेरा स्नेहिल नमन स्वीकार करो ।
# …………वन्देमातरम् !