नामीबिया से मध्य प्रदेश के श्योपुर स्थित कूनो नेशनल पार्क लाए गए चीतों में शामिल मादा चीता साशा की मौत होने की खबर है उसकी मौत बीमारी से हो चुकी है ऐसा बताया गया है।
उल्लेखनीय है कि साशा कई दिनों से बीमार चल रही थी। साशा की मौत से चीता प्रोजेक्ट को बड़ा झटका लगा है। कूनो पार्क सहित वन विभाग साशा की मौत से सकते में हैं।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वन विभाग ने भी मादा चीता की मौत की पुष्टि कर दी है। ताजा जानकारी के अनुसार किडनी में इन्फेक्शन से मादा चीता की मौत हुई है।
कूनो पार्क प्रबंधन अभी साशा की बीमारी को लेकर कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हैं। नामीबिया से कूनो नेशनल पार्क में लाए गए चीतों के बाद यह पार्क 80 से अधिक वन्य जीवों का घर बन गया।
कूनो नेशनल पार्क में भालू, चीतल, लकड़बग्घा, हिरणों से लेकर कई वन्यजीव यहां हजारों की तादाद में हैं। वन्य जीवों के अलावा कूनों सेंक्चुरी में कई दुर्लभ प्रजाति के पक्षी व जलीय जीव भी हैं, जिन्हें देख राष्ट्रीय स्तर के सैलानी मुग्ध हो जाते हैं
अफ्रीका से चीते लाए गए थे भारत
अफ्रीका से चीतों के दो जत्थे भारत आए थे. पहला जत्था पिछले साल 17 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन के अवसर पर नामीबिया से आया था. इस जत्थे में साशा समेत आठ चीते थे जिन्हें कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया था. इसके बाद बीते फरवरी के महीने में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों का दूसरा जत्था भारत आया था. इन 12 चीतों में सात नर और पांच मादा शामिल थीं. इन्हें भी कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया था.
साशा चीता की मौत
साशा बाकी चीतों के साथ-साथ भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) और मध्य प्रदेश वन विभाग के कर्मचारियों की देखरेख में भारत में अपने नए घर को अच्छी तरह से अपना रही थी. साशा की मौत न केवल परियोजना के लिए एक झटका है बल्कि देश की जैव विविधता के लिए भी एक बड़ा नुकसान है. साशा की मौत के कारणों का पता लगाने के लिए अधिकारी जांच कर रहे हैं. साशा 5.5 साल की मादा नामीबियाई चीता थी. साशा 2017 के अंत में पूर्व-मध्य नामीबिया के एक शहर गोबाबिस के पास एक खेत में मिली थी.
कुनो में बसाए गए चीते
दरअसल, दक्षिण अफ्रीका और भारत ने अफ्रीकी देश से चीतों को लाने के लिए बीते साल एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया था. इसके बाद चीतों को मध्य प्रदेश के कुनो में बसाया गया था. दुनिया के ज्यादातर चीते दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया और बोत्सवाना में हैं. चीतों की सबसे ज्यादा आबादी नामीबिया में है. भारत में आखिरी चीता 1948 में छत्तीसगढ़ के कोरैया जिले के साल वन में मृत मिला था.