प्रवीण दुबे
ग्वालियर /प्रधानमंत्री मोदी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को यूं ही दामाद नहीं बताया है बल्कि भाजपा में दामाद के मान्याचार का भी बाकायदा ध्यान भी रखा गया है। एक तरफ ग्वालियर चंबल की भाजपाई राजनीति में श्री सिंधिया के समकक्ष माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर को विधानसभा का टिकट देकर झटका दिया गया वहीं साल 2020 में सिंधिया के साथ बीजेपी में आने वाले उनके 25 वफादारों में से 18 विधायकों की बीजेपी ने रिपीट करके उनका कद ऊंचा कर दिया है।
इनमें ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर (ग्वालियर), जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट (सांवेर, इंदौर), औद्योगिक नीति एवं निवेश प्रोत्साहन मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव (बदनावर, धार), लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री प्रभुराम चौधरी (सांची, रायसेन), राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत (सुरखी, सागर), खाद्य मंत्री बिसाहूलाल सिंह (अनूपपुर), पर्यावरण मंत्री हरदीप सिंह डंग (सुवासरा, मंसूर), पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री, महेंद्र सिंह सिसौदिया (बमोरी, गुना), राज्य नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष प्रद्युम्न सिंह लोधी (मलहरा, छतरपुर) और राज्य के लोक निर्माण मंत्री सुरेश धाकड़ (पोहरी, शिवपुरी) शामिल हैं।
इनके अलावा 5 सिंधिया समर्थकों जयपाल सिंह जज्जी (अशोक नगर), कमलेश जाटव (अंबाह, मुरैना), ब्रजेंद्र सिंह यादव (मुंगावली, अशोक नगर), मनोज चौधरी (हाटपिपलिया, देवास) और नारायण पटेल (मांधाता, निमाड़) पर भी बीजेपी ने विश्वास जताया है। इसमें खास बात यह है कि बीजेपी ने अपने पुराने नेताओं के गुस्से को देखते हुए जोखिम लिया है और सिंधिया के तीन ऐसे वफादारों को भी टिकट दिया है, जो 2020 के दलबदल के बाद उपचुनाव हार गए थे। इनमें डबरा से इमरती देवी, सुमावली से ऐदल सिंह कंसाना (सुमावली, मुरैना) और रघुराज सिंह कंसाना (मुरैना) शामिल हैं।
सिंधिया के केवल 7 समर्थकों को बीजेपी ने टिकट नहीं दिया है, इनमें नवंबर 2020 में चुनाव हारने वाले – ओपीएस भदोरिया (मेहगांव), मुन्ना लाल गोयल (ग्वालियर पूर्व), रक्षा सनोरिया (भांडेर) और सुमित्रा देवी कास्डेकर (नेपानगर) शामिल हैं।
इतना ही नहीं दक्षिण विधानसभा सीट जिसमें कि जयविलास पैलेस स्थित है वहां से सीधे महल से जुड़ी माया सिंह को टिकिट दिलाने में भी सिंधिया कामयाब रहे हैं । उम्रदराज होने तथा लंबे समय से क्षेत्र की जनता से कटी रहीं माया सिंह को मैदान में उतरवाने के पीछे भी महल के राजनीतिक वर्चस्व को परिभाषित करने संबंधी श्री सिंधिया का संदेश साफ नजर आता है ।