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प्रसिद्ध ज्योतिर्विद बृजेंद्र श्रीवास्तव के अनुसार शाम 6:34 से रात 7:53 और रात्रि 11:13 से 12:29 बजे तक कर सकते हैं होलिका दहन

प्रसिद्ध ज्योतिर्विद बृजेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि रविवार 24 मार्च 2024 को  भद्रा के पुच्छ अर्थात शाम 6:34 से रात 7:53 तक  में होलिका पूजन दहन किया जा सकता है?

बृजेंद्र श्रीवास्तव ने होलिका दहन के दो मुहूर्त बताए

1भद्रा पुच्छ में शाम 6:34 से रात 7:53 तकऔर

2भद्रा समाप्ति के बाद रात्रि 11:13 से 12:29 में कर सकते हैं होलिका दहन।

बृजेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि ये दोनों ही मुहूर्त शास्त्र सम्मत व शुभ हैं।सुविधानुसार किसी एक मुहूर्त में होलिका पूजन दहन सम्पन्न करें।

उन्होंने बताया रविवार 24 मार्च2024 को होली पूर्णिमा है।इस दिन फाल्गुनी पूर्णिमा तिथि सुबह 9 55 बजे से अगले दिन सोमवार 25 मार्च की दोपहर12:30 बजे तक है।

बृजेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि होली पूर्णिमा पर अधितर भद्रा लग जाने पर होलिका दहन-पूजन के मुहुर्त पर संशय रहता है,ऐसा इस  बार भी है। परंतु शास्त्रों में भद्रा का केवल मुख ही शुभकामों में वर्जित है। जबकि भद्रा का पुच्छ सदैव ही शुभ कामों में ग्राह्य है।

मुुहुर्त चिंतामणी ग्रन्थ में, जो कि सभी शुभकामों के मुहुर्त शोधन का प्रधान ग्रन्थ है, यह स्पष्ट निर्देश है कि होली पूजन-दहन सामान्यत: सूर्यास्त बाद के प्रदोष काल में किया जाना चाहिए। यदि इस समय भद्रा हो तो भद्रा का पुच्छ जिस समय लगा हो उस समय या फिर भद्रा समाप्ति के बाद किया जा सकता है।

इस रविवार 24 मार्च को फाल्गुनी पूर्णिमा तिथि सुबह 9:55 बजे से सोमवार 25 मार्च को दोपहर 12:30 बजे तक है जो कुल 26 घंटे 35 मिनट की अवधि की है।

इसकी पहली आधी अवधि में रविवार सुबह 9:55 बजे से रात्रि 11:13 तक भद्रा का वास है।

भद्रा सामान्यत शुभ कार्यों में वर्जित है। पर इसका केवल मुख ही पूरी तरह वर्जित माना जाता है जबकि भद्रा पुच्छ को शुभ कार्यों में बिना किसी मतभेद के ग्रहण किया जाता है।

“*शुभकरं पुच्छं”* ऐसा मुहुर्त चिंतामणी के प्रकरण-1 के श्लोक 44 में पृष्ठ 18 पर लिखा है। भद्रा की कुल अवधि सुबह 9:55 से रात्रि 11:13 तक की है।

इसमें भद्रा पुच्छ की गणना, मुहूर्त चिंतामणि के श्लोक 44 के अनुसार, तिथि के सर्व भोग को आठ प्रहरों में बाँटने पर, इसके तीसरे प्रहर की आखरी तीन घटी भद्रा की पूँछ होती है।

गणना करने पर यह पूँछ शाम 6:34 बजे से रात्रि 7:53 के बीच रहेगी। श्लोक 44 के अनुसार यह भद्रा पुच्छ शुभकारक होने से रविवार को इस समय में होलिका दहन-पूजन करना हर तरह से शुभकारक व शास्त्र सम्मत है। इस समय प्रदोष काल भी है जो समस्त दोषनाशक माना जाता है।

★2:शास्त्र अनुसार दूसरा मुहुर्त मध्य रात्रि में निशीथ काल का है। भद्रा समाप्ति रविवार रात 11:13 बजे है।इसके बाद रात्रि11:13 बजे से मध्य रात्रि तक निशीथ काल भी उपलब्ध है। इसलिए रविवार रात 11:13 से 12:29 बजे के बीच होलिका दहन-पूजन करना भी शुभकारक है।

बृजेंद्र श्रीवास्तव ने कहा होलिका पून इस दिन मुहुर्त अनुसार ही श्रद्धा पूर्वक पूजन करना चाहिए।

मुहुर्त चिंतामणी के अनुसार ही यदि पूर्णिमा के पहले भाग की भद्रा यदि रात्रि में हो तो यह शुभ होती है। रविवार की भद्रा का आधा भाग दिन मेें तथा होलिका पूजन-दहन के समय का आधा भाग रात्रि में ही है। इस दृष्टि से भी दोनों मुहुर्त समान रूप से शुभकारक हैं। उन्होने कहा कि

 भद्रा का यह भय सोलहवी सदी के मुहुर्त ग्रन्थों की देन है। इससे पूर्व के धर्म शास्त्रों में भद्रा का ऐसा भयकारक उल्लेख नहीं है।इसलिए अब समय है कि धर्माचार्य, पंचांगकर्ता व समाज सुधारक और मीडिया होली के अवसर पर अक्सर उपस्थित होने वाले भद्रा के भय से भद्रा से समाज को मुक्त करने की पहल करें

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