Homeत्वरित टिप्पणीफूटे भाग्य विवेक के ....

फूटे भाग्य विवेक के ….

    त्वरित टिप्पणी:प्रवीण दुबे

एक बहुत बड़े कथावाचक प्रकांड विद्वान की कथा में उमड़ती लाखों श्रोताओं की भीड़ ने उनसे ज्वैलसी रखने वालों को परेशान कर दिया विरोधियों ने विद्वान कथावाचक को निपटाने संयुक्त बैठक बुलाई और योजना बनाई गई कि जिस स्थान पर उन महानुभाव की कथा होने वाली है उसके ठीक सामने कुछ दूरी पर रामकली के मुजरे का आयोजन कराया जाए तय योजना के अनुसार ऐसा ही किया गया इधर कथा शुरू हुई और उधर रामकली का मदहोश कर देने वाला मुजरा।
देखते ही देखते विद्वान कथावाचक के पंडाल से एक एक कर लोग रामकली के पंडाल में जाना शुरू हुए और पूरा पंडाल खाली हो गया।

विद्वान कथावाचक को समझ नहीं आया उन्होंने पंडाल में अकेले बचे अपने एक मात्र चेले से पूछा ये भीड़ को क्या हुआ ? सब इधर से उधर क्यों चले गए ? इसपर चेले ने जवाब दिया।

फूटे भाग्य विवेक के क्या करें जगदीश
रामकली को तीन सौ रामभरोसे तीन

आप समझ ही गए होंगे इस समय हमने इस कहानी को क्यों इंगित किया ?

जबदस्त भीड़, दस वर्षों की तमाम उपलब्धियां और पूरी दुनिया में अपनी प्रतिभा, कार्य कुशलता का लोहा मनवाने वाले प्रधानमंत्री मोदी और उनके नेतृत्व वाली बीजेपी आखिर सबकुछ पॉजिटिव होने के बाद चुनाव में आशातीत सफलता क्यों नहीं प्राप्त कर सकी ? क्यों नंबर गेम में भाजपा 273 के मैजिक फिगर से पीछे रह गई ?

इन प्रश्नों का जवाब आज हर राजनीतिक विश्लेषक तलाश रहा है। आखिर चुनाव शुरू होने से पहले जो जनाधार का ज्वार मोदी के साथ था वह चुनाव आगे बढ़ते बढ़ते छिटक क्यों गया ?
क्या विरोधी खेमा यह भली प्रकार समझ गया था कि भीष्मपिता जैसी विराटता वाले मोदी से सीधे कोई नहीं निपट सकता अतः उन्हें निपटाने के लिए शिखंडी को आगे करना ही होगा । और उसने विविध तरीकों से ऐसा करने में कामयाबी हासिल की और मोदी उस जाल में फंसते चले गए।
अपने दस वर्ष के प्रधानमंत्रित्व काल में यदि मोदी ने राष्ट्रहित,सर्वधर्मसंभाव,सबका साथ सबका विकास जैसे तमाम सिद्धांतों की जगह जस को तस की भावना से काम किया होता तो आज जो नस्तर उन्हें शूल बनकर घायल कर रहे हैं वे इस कदर पनप नहीं पाते।
मोदी यह भी भूल गए कि जो देश कभी विश्व गुरु होने के साथ हर क्षेत्र में अग्रणी था उसे पहले मुगलों और फिर अंग्रेजों ने गुलाम कैसे बना लिया ?
उन्हें यह भी याद नहीं रहा कि मैकाले के मानस पुत्र आज भी इस देश में जिंदा हैं और वह इस देश के बहुसंख्यक हिन्दू समाज के बीच फूट डालकर इस देश को कमजोर करने के षडयंत्र में लगातार सक्रीय हैं।
इस प्रकार की शक्तियों से केवल नई शिक्षा पद्धति लागू करके या गलत इतिहास की पुस्तकों को परिवर्तित करके अथवा नए मंदिर बनाकर या शहरों के नाम बदलकर नहीं जीता जा सकता है।
इस प्रकार की ताकतों पर लगाम लगाने के लिए शालीनता नहीं शक्ति से पेश आना होगा।
शक्ति उन शक्तियों पर दिखानी होगी जो कतई यह नहीं चाहती कि यह देश मजबूत हो
इस प्रकार की ताकतें जहां हमारे बीच आस्तीन का सांप बनकर पल रही हैं वहीं हमारे देश के बाहर से भी अपना षडयंत्र चला रहीं हैं। भारत में मजबूत राष्ट्रवादी नेतृत्व वाली सरकार इनके मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है और यह ऐसी सरकार को कमजोर करने या उसे पदच्युत करने का गुणाभाग करती रहेंगी l

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