प्रवीण दुबे
1857 के स्वतंत्रता संग्राम की महानायिका वीरांगना लक्ष्मी बाई के बलिदान को आज 166 वर्ष पूर्ण हो गए देश में बहुत कुछ बदल गया लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जिस ग्वालियर की पावन धरा पर देश के लिए वीरांगना ने वीरगति प्राप्त की वहां इस महान बलिदान के बाद से अभी तक राजनीति बंद नहीं हुई है।
ग्वालियर स्थित वीरांगना लक्ष्मीबाई समाधि
ग्वालियर का सिंधिया राजवंश इस राजनीति आरोप प्रत्यारोप के केंद्र में रहा है। कहा जाता रहा है कि रानी के ग्वालियर युद्ध के दौरान सिंधिया राजवंश की भूमिका रानी के पक्ष में सकारात्मक नहीं रही।
वर्षों वर्ष इस घटनाक्रम को लेकर सिंधिया परिवार ताने झेलता रहा है तमाम इतिहासकारों ने भी इस पर लिखा है लेकिन आजाद भारत में सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता ने तो जैसे आग में घी का ही काम किया और आज तक इसका उल्लेख करके सिंधिया को निशाना बनाया जाता है।
हालांकि इसकी कुछ विवादित पंक्तियों पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है। वीरांगना के ग्वालियर युद्ध को लेकर भले ही सिंधिया राजवंश निशाने पर रहा हो लेकिन मराठा इतिहास में सिंधिया राजवंश के वंशजों की भूमिका महान देशभक्ति वाली रही है और राष्ट्रहित में इस परिवार ने कई युद्धों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
यहां हमारा यह बात लिखने के पीछे का अभिप्राय यह है कि इतिहास की किसी एक विवादित घटना को शिरोधार्य करके किसी पूरे खानदान पर ताने मारना कदापि उचित नहीं कहा जा सकता है।
निःसंदेह वीरांगना के ग्वालियर युद्ध में यदि सबकुछ सकारात्मक रहता तो 1857 में ही अंग्रेजों की उल्टी गिनती शुरू हो जाती। लेकिन इसके लिए किसी एक बात को दोषी कहना उचित नहीं है।
वीरांगना की शहादत और देशभक्ति को सिंधिया राजपरिवार वर्तमान में भी कितना आदर देता है इसको दो वर्ष पूर्व पूरा देश देख चुका है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सैकड़ों साल पुरानी सिंधिया घराने की परंपरा से अलग हटकर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की समाधि पर पहुंचकर उन्हें हाथ जोड़कर नमन किया था। यहां उन्होंने पुष्प भी अर्पित किए इतना ही नहीं 2 मिनट वहां रूक कर प्रार्थना की और पुष्प अर्पित कर पुष्पांजलि दी। कुछ देर वहां ठहरने के बाद वह वहां से गए थे।
निश्चित ही इस घटनाक्रम के बाद सारे विवाद आरोप प्रत्यारोप बंद हो जाना चाहिए इसके पीछे का यही संदेश है कि सिंधिया राजपरिवार वीरांगना के बलिदान को सदैव हृदय से नमन करता है।
आज के दिन विवादित घटनाक्रम पर फोकस करने के बजाय उन बहुत सारी बातों पर चर्चा और शोध करने के संकल्प की जरूरत है जिनको लेकर भ्रम बना हुआ है।
आज आवश्यकता इस बात की है कि उस ओर ध्यान दिया जाए कि वीरांगना झांसी से युद्ध करते हुए जिस रास्ते ग्वालियर पहुंची वहां तमाम गाथाएं जुड़ी हैं।
वह किन किन स्थानों पर रुकी किन परिवारों ने वीरांगना का सहयोग किया जब इसका शोध होगा तो यह मार्ग देशभक्ति के पवित्र तीर्थस्थल की तरह नजर आएगा।
ग्वालियर ही की बात करें तो अभी तक रानी के ग्वालियर प्रवास को लेकर कई बातें सामने आती हैं कहा जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई ने गस्त का ताजिया स्थित नाहर खाना में कई दिनों तक मराठा सरदार फालके साहब के यहां डेरा डाला था और अंग्रेजों से युद्ध करती हुई यहीं से आगे बढ़ी थी। वह स्थान आज भी यहां देखा जा सकता है। इसकी चर्चा नहीं होती वह मकान वह गली हमारे लिए किसी पवित्र तीर्थस्थल से कम नहीं कही जा सकती आखिर क्यों हमने इस ओर ध्यान नहीं दिया।
ग्वालियर में लश्कर इलाके का बाड़े से लेकर पड़ाव तक का क्षेत्र
वीरांगना के अंग्रेजों से युद्ध का केन्द्र रहा है । जरूरत है इस पर नए सिरे से शोध और इतिहास लिखने की।आज के दिन इसपर चर्चा के साथ संकल्प लिया जाए तो वीरांगना को यह सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी
वीर वीरांगना लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर शब्द शक्ति न्यूज की ओर से उन्हें सादर नमन