प्रवीण दुबे
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में हुई रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग के पीछे आखिर क्या संदेश छुपा है ? क्या यह बढ़ा हुआ मतदान प्रतिशत 18 वर्षों से सत्ता पर काबिज भाजपा के खिलाफ असंतोष का पर्याय है ?
अथवा यह बढ़ी हुई वोटिंग उन महिलाओं की है जो शिवराज सरकार द्वारा उनके लिए लागू लाड़ली बहना योजना से प्रभावित हैं।
कांग्रेस और भाजपा दोनों इसे अपने अपने ढंग से परिभाषित करके अपनी अपनी जीत का दावा कर रही हैं। इन दावों में कितनी सच्चाई है यह तो 3 दिसंबर को ही पता चलेगा जब ईवीएम में बंद नतीजे सामने आएंगे।
हालांकि पिछले रिकॉर्ड को देखें तो पिछले चार दशक से मध्यप्रदेश का वोटिंग का प्रतिशत लगातार बढ़ता रहा है और वोटिंग का बढ़ा हुआ प्रतिशत अलग कहानी बयां कर रहा है।
आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि मध्यप्रदेश में कई बार बढ़ा हुआ मतदान प्रतिशत सत्ता पर काबिज दल की पुनः जीत का कारण बना ।
1998 के विधानसभा चुनाव में 60.21 फीसदी वोटिंग हुई। यह पिछले चुनाव के मुकाबले अधिक थी पिछले 1993 में मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में 60.17 फीसदी वोटिंग हुई थी बावजूद इसके सत्ताधारी दल कांग्रेस पुनः जीतकर आई थी।
2008 के विधानसभा चुनाव में 69.78 फीसदी मतदान हुआ। यह पिछले चुनाव के मुकाबले 2.53 फीसदी अधिक था। यहां भी सत्ता पर पहले से काबिज बीजेपी एक बार फिर सत्ता में आई। चुनाव में बीजेपी को 143 और कांग्रेस को 71 सीटें मिली।
इसके बाद 2013 के विधानसभा चुनाव में 70 फीसदी से भी अधिक वोटिंग हुई। 2013 में कुल 72.13 फीसदी मतदान हुआ। सता की बागडोर पहले से जिस बीजेपी के हाथ थी उसने एक बार फिर बड़ी जीत हासिल की। चुनाव में बीजेपी को 165 और कांग्रेस को 58 सीटें मिलीं।
यह आंकड़े इस बात की गवाही देते दिख रहे हैं कि बढ़ा हुआ मतदान प्रतिशत हमेशा सत्ता पर काबिज दल के खिलाफ आक्रोश का संकेत नहीं होता है। चूंकि मध्यप्रदेश में शुरुआत से ही लगातार मतदान प्रतिशत बढ़ते रहने का इतिहास रहा है अतः इसबार भी प्रदेशवासियों ने उस जागरूकता को ही प्रदर्शित किया है। इसको यह कहना ठीक नहीं है कि परिवर्तन अथवा सत्ताधारी दल से नाराजगी के कारण यह मतदान प्रतिशत बढ़ा है।