प्रवीण दुबे
तमाम उठापटक और जद्दोजहद के बावजूद कांग्रेस अभी तक ग्वालियर,मुरैना और खंडवा के लिए अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित नहीं कर सकी है। बीते रोज देर रात्रि तक पार्टी में इसको लेकर दिग्गज नेताओं के बीच मशविरा चलता रहा लेकिन अंतिम मोहर नहीं लग सकी है।
सूत्रों का कहना है कि कुछ नेताओं की अड़ंगेबाजी और पार्टी हाईकमान द्वारा निर्णय लेने का साहस न दिखा पाने के कारण अभी तक प्रत्याशी तय नहीं हो सके हैं।
एक तरफ पार्टी हर हाल में इन सीटों पर जीत का स्वप्न संजोए बैठी है तो दूसरी और पार्टी की अंतर्कलह तथा उसमें मची भगदड़ के कारण कांग्रेस कोई नहीं ले पा रही है मध्यप्रदेश में भाजपा की ज्वॉयनिंग कमेटी कांग्रेस के लिए सिरदर्द बन गई है। वह भारी पशोपेश में है कि न मालूम कब कौन सा नेता कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लेगा।
वैसे भी बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने भाजपा के स्थापना दिवस अर्थात आज एक लाख से अधिक कांग्रेसियों के भाजपा ज्वाइन करने का ऐलान कर रखा है।
इस ऐलान से भी कांग्रेस की नींद उड़ी हुई है।
उल्लेखनीय है कि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के भाजपा ज्वाइन करने के घटनाक्रम और सुरेश पचौरी सहित कई बड़े नेताओं के लगातार पाला बदलने के बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस नेतृत्व बुरी तरह घबराया हुआ है।
उसे भय सता रहा है कि ग्वालियर मुरैना और खंडवा में थोड़ी सी भी चूक पार्टी में पलायन का भूचाल ला सकती है। यही वजह है कि बड़े नेता निर्णय नहीं कर पा रहे हैं कि वह किसे मैदान में उतारें। बीते रोज देर रात्रि तक यही कहा जाता रहा कि तीनों स्थानों के लिए नाम घोषित कर दिए जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
ग्वालियर की बात करें तो पार्टी यहां से ब्राह्मण चेहरे को मैदान में उतारने की इच्छुक है और वह विधानसभा चुनाव में हारे हुए चेहरे प्रवीण पाठक को टिकिट दिए जाने की पक्ष धर दिखती है लेकिन प्रवीण पाठक के कई भाजपा नेताओं के संपर्क में रहने की खबरें उड़ती रही हैं इतना ही नहीं प्रवीण पाठक को राजनीति का ककहरा सिखाने वाले सुरेश पचोरी भाजपा में जा चुके हैं इन बातों ने कांग्रेस हाईकमान का टेंशन बढ़ा रखा है। रामसेवक बाबू एक पुराने आर्थिक अपराध के आरोपी हैं साथ ही जातिगत समीकरण पर खरे नहीं उतरते, एक अन्य नेता सतीश सिकरवार और उनके परिवार से किसी व्यक्ति को मैदान में उतारने की भी बात सामने आई है लेकिन यहां भी श्री सिकरवार के भाजपा से पुराना संबंध होने तथा कई मौकों पर सार्वजनिक रूप से भाजपा के कुछ बड़े नेताओं के प्रति उनके सरल रुख के कारण कांग्रेस भविष्य को लेकर चिंतित है।
कई अन्य नाम भी चर्चा में है लेकिन वे कई कसौटियों पर कमजोर दिखाई दे रहे है ग्वालियर में कांग्रेस की विडंबना यह है कि यहां से लोकसभा के लिए जो सबसे उपयुक्त व मजबूत नाम अशोक सिंह का था पार्टी नेतृत्व ने बिना कोई दूरगामी सोच दिखाए उन्हे पहले ही राज्यसभा में भेज दिया। अब एक तरफ कांग्रेस हाईकमान निर्णय नहीं ले पा रहा तो दूसरी और कांग्रेस जैसे डूबते जहाज में कोई भी सवार होने से डर रहा है। उधर ग्वालियर से ही
कांग्रेस के कद्दावर नेता रामनिवास रावत के बयान कि बाहरी प्रत्याशी थोपने पर पार्टी कार्यकर्ता नाराज़ होगें तथा चुनाव में सम्मान नही मिलेगा तो काम नही करेंगे ने भी कांग्रेस नेतृत्व की परेशानी को और बढ़ा दिया है ।
उधर खंडवा से जो जानकारी सामने आई है उसके पीछे भी यही बात है सूत्रों का कहना है कि यहां से कांग्रेस नेतृत्व अरुण यादव को लड़ाना चाहता है लेकिन वे खंडवा से लड़ने को तैयार नहीं है।
मुरैना की बात करें तो यहां से भी कांग्रेस निर्णय ले पाने से कतरा रही है। देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस नेतृत्व ग्वालियर मुरैना और खंडवा से प्रत्याशी घोषित करने में और कितना समय लेगा पिछले कई दिनों की तरह आज भी पार्टी की तरफ से यह कहा जा रहा है कि ये नाम आज कभी भी घोषित किए जा सकते हैं।