Homeत्वरित टिप्पणीभाजपा को यूं ही नहीं कहा जाता "पार्टी विद डिफरेंस"

भाजपा को यूं ही नहीं कहा जाता “पार्टी विद डिफरेंस”

त्वरित टिप्पणी: प्रवीण दुबे

 भाजपा को यूं ही नहीं कहा जाता पार्टी विद डिफरेंस आज एकबार फिर पूरे देश ने इस बोध वाक्य की सिद्धता को भाजपा द्वारा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री चयन प्रक्रिया के रूप में देखा, जब शिवराज, नरेन्द्र तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल,ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित अन्य तमाम दिग्गज लाइन में

हों तो भला कौन ऐसा होगा जो मात्र दस वर्ष का राजनीतिक अनुभव रखने वाले डॉ मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनाए जाने की बात करेगा ? लेकिन भाजपा ने आज वह कर दिखाया और इस निर्णय का जिस प्रकार भाजपा के भीतर संचारित किया गया वो भाजपा से इतर आज के राजनीतिक परिवेश में अजूबा ही कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होना चाहिए। 

आज भाजपा कार्यालय में पर्यवेक्षकों के पहुंचने से लेकर मुख्यमंत्री की घोषणा तक का संपूर्ण घटनाक्रम  किसी सस्पेंस वाली मूवी  से कम नजर नहीं आता। 
आखिर किसे पता था कि जो शख्स विधायक दल की बैठक में सबसे पीछे की पंक्ति में विराजित है शाम ढलने से पूर्व उसी ही के सिर मधयप्रदेश के मुख्यमंत्री का ताज सुशोभित होने वाला है। 
खुद डॉ मोहन यादव ने मुख्यमंत्री बनने के बाद कहा कि वे “तो अंतिम पंक्ति में बैठकर अपना काम कर रहे थे यह भाजपा ही है जहां मुझ जैसे छोटे कार्यकर्ता को मुख्य मंत्री जैसे बड़े पद की जिम्मेदारी दी जाती है”।
वास्तव में आज के कलुषित और परस्पर वर्चस्वपूर्ण राजनीतिक माहौल में इससे अधिक अनुशासित दृश्य और क्या होगा जब वही चेहरा जो मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे आगे था सदन के बेहद कनिष्ठ विधायक का नाम मुख्यमंत्री के लिए प्रस्तावित करता है
और सामने एक दो नहीं पांच पांच बड़े दिग्गज भी वहां विराजित थे जिनकी निगाह उसी ताज पर टिकी थी सब हंसते मुस्कराते हुए उसका समर्थन करते हैं।
कहीं से विरोध का कोई स्वर सुनाई नहीं देता और इसी तर्ज पर दो उप मुख्यमंत्री तथा विधानसभा अध्यक्ष की घोषणा का भी स्वागत किया जाता है। इसके साथ ही शुरू हो जाता है मिठाई से मुंह मीठा करने का सिलसिला ।
आज के इस घटनाक्रम को मीडिया जगत और नए नवेले राजनीतिक विश्लेषक भले ही चौंकाने वाला निर्णय दें या फिर प्रधानमंत्री की विशिष्ट राजनीतिक कार्यशेली की संज्ञा दें लेकिन जो लोग भाजपा की मूल वैचारिक परंपरा को थोड़ा सा भी जानते पहचानते हैं उनके लिए मोहन यादव जैसे छोटे नेता को बड़ी जिम्मेदारी दिया जाना कोई आश्चर्य चकित करने वाली बात नहीं है।
जनसंघ के समय से ही भाजपा एक कार्यकर्ता आधारित राजनीतिक संगठन रहा है और दीनदयाल जी से लेकर अटल जी वर्तमान में प्रधानमंत्री मोदी तक वहां कार्यकर्ता और विचार इसको महत्वता दी जाती रही है। वहां व्यक्ति का कोई महत्व नहीं होता और आज यही बात भाजपा को पार्टी विद डिफरेंस बनाती है और आज के संपूर्ण घटनाक्रम ने भी यही सिद्ध किया है।
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