भारत ने एशियाई खेलों की पुरुष हॉकी में अपने दबदबे के सिलसिले को बनाए रखकर चौथी बार ख़िताब जीतने का गौरव हासिल कर लिया. भारत ने फ़ाइनल में जापान को 5-1 हराया.भारत इससे पहले 1966, 1998 और 2014 में भी एशियन गेम्स का स्वर्ण पदक जीता था.
भारत की इस ख़िताबी जीत के ख़ास मायने यह रहे कि उसने इस सफलता के साथ ही अगले साल पेरिस में होने वाले ओलंपिक खेलों में भाग लेने का अधिकार हासिल कर लिया. भारत यदि स्वर्ण पदक नहीं जीत पाता तो उसे क्वालिफ़ाइंग दौर से गुज़रना पड़ता और यह राह आसान नहीं होती है.
भारत को अब इस सफलता के बाद पेरिस ओलंपिक की तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिल गया है. अब वह क्रेग फुलटोन की देख रेख में टोक्यो ओलंपिक में जीते तमगे का रंग बदलने के लिए जुट सकता है.
ये जीत भारतीय हॉकी में पिछले एक डेढ़ दशक में आए बदलाव का यह परिचायक है. हमें याद है कि भारत 1998 के एशियाई खेलों में 32 साल बाद स्वर्ण पदक जीता था और टीम के लौटने पर उसके सात प्रमुख खिलाड़ियों को टीम से बाहर की राह दिखा दी गई थी. यह सही है कि इनमें से ज़्यादातर खिलाड़ियों की देर सबेर टीम में वापसी हो गई.
अब माहौल बदल चुका है. टीम के कोच हों या खिलाड़ी अपनी जगह को लेकर आश्वस्त रहते हैं और उन्हें तैयार करने के लिए हर तरह की सुविधा भी मुहैया कराई जाती है.
इसका ही परिणाम है कि भारत 2020 के टोक्यो ओलंपिक में 41 साल बाद पदक जीतने के बाद अब एशियाई खेलों की हॉकी में भी अपना परचम फहराने में सफल रहा है.