संपादकीय:प्रवीण दुबे
पहले मुख्यमंत्री के चयन में दस दिन और अब मंत्रिमंडल गठन से पूर्व लंबा मंथन एक पखवाड़े के बाद भी एमपी की तस्वीर साफ न हो पाने के पीछे का संकेत साफ है कि भाजपा नेतृत्व पूरी तरह से लोकसभा चुनावी मोड पर आ चुकी है और यही वजह है कि एक एक कदम फूक फूक कर रखा जा रहा है।
भाजपा की इसी कार्य पद्धति ने कांग्रेस ही नहीं पूरे के पूरे विपक्ष को घुटनों पर ला दिया है। मोदी शाह की जोड़ी जो भी कदम उठाती है उससे पहले सौ कोस आगे की स्थिति परिस्थिती का अध्यन कर लेती है।
फिर चाहे इसमें कितना ही विलंब और क्षणिक अंतर्विरोध क्यों न हो। यही वजह है कि पार्टी ने मुख्यमंत्री चयन से लेकर तमाम कई अन्य मामलों में चौंकाने वाले निर्णय लिए हैं ।
मध्यप्रदेश में मंत्रिमंडल गठन में भी कुछ ऐसा ही होने जा रहा है। शिवराज के हटने और मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि अब मध्यप्रदेश पूरी तरह से उसी लाइन ऑफ एक्शन पर चलने वाला है जिसपर केंद्र सरकार संचालित है।
इसमें सबसे प्रमुख और बड़ा विषय सनातन और हिंदुत्व को प्राथमिकता है इसके बाद विकास का मोदी मॉडल शामिल है।
पिछले 18 वर्षों के शिवराज राज की बात की जाए तो तीनों ही विषयों जिनका कि हमने ऊपर जिक्र किया है कहीं न कहीं कुछ अंतर्विरोध देखने को मिले हैं।
इसका प्रमाण डॉ मोहन यादव द्वारा शपथ लेने के चंद घंटों बाद ही जारी दो आदेशों में सामने आ गया। जिसमें सार्वजनिक स्थलों पर मांस मछली और धार्मिक स्थलों पर बिना अनुमति लाउडस्पीकरों पर रोक शामिल था।
यह अकेला मामला नहीं धार की भोजशाला का विषय हो,प्रदेश के तमाम क्षेत्रों में बढ़ती इस्लामिक कट्टरवादी गतिविधियां हो,मदरसों , लव जिहाद, व मुस्लिमों के प्रति पार्टी लाइन से हटकर सॉफ्ट कॉर्नर हो अथवा इस दिशा में संगठन लाइन पर काम कर रहे संगठनों के खिलाफ पुलिस प्रशासन का नजरिया कहीं न कहीं परेशान करने वाला रहा है।
ऐसा नहीं कि इसको लेकर शिवराज ने कुछ नहीं किया लेकिन उसमें सरकारी तंत्र ज्यादा और पार्टी लाइन कम प्रभावी दिखाई दी ।
यही कारण रहे नए भारत की रचना में जुटे मोदी शाह ने बड़े सोच समझकर नए नवेले ऊर्जावान चेहरे के सिर मधयप्रदेश का ताज सजाया है, और इस उद्देश्य को सफलीभूत करना तभी संभव होगा जब मुख्यमंत्री के मंत्रिमंडल में उसी सोच और समझ वाले चेहरों को कमान सौंपी जाए।
यह काम उसी तरह से कठिन है जैसे की शिवराज का विकल्प तलाशना कठिन था। यही कारण है कि मंत्रिमंडल गठन में समय लग रहा है। इसमें सबसे बड़ी समस्या तो मध्यप्रदेश के वे क्षत्रप हैं जिनके समर्थक विधायकों को मंत्रिमंडल में स्थान देने की मजबूरी सामने खड़ी है।
अब जबकि मधयप्रदेश में नवगठित विधानसभा का पहला सत्र शुरू होने में एक दिन से भी कम समय बचा है साथ ही मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने भी अपना नेता प्रतिपक्ष के साथ नया अध्यक्ष घोषित कर दिया है भाजपा को भी जल्द से जल्द अपने मंत्रिमंडल की तस्वीर साफ करना होगी।
जैसे की संकेत मिल रहे हैं मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने अपने मंत्रिमंडल सहयोगियों के नाम तय कर लिए हैं और वे आज अंतिम मंथन के लिए कभी भी दिल्ली रवाना हो सकते हैं।