भोपाल के बाल गृह से गायब 26 लड़कियों से जुड़े मामले का शासन प्रशासन की ओर से भले ही पटाछेप करने की बात कही जा रही है लेकिन इस घटनाक्रम के बाद बहुत सारे सवाल उठ खड़े हुए हैं सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि मध्यप्रदेश में समाज के बीच प्रशासन की नाक के नीचे और कितने मैथ्यू छुपे बैठे हैं और अपने अवैध कारोबार को अंजाम दे रहे हैं। इसके अलावा यह सवाल भी दस्तक दे रहा है कि ऐसे अवैध संस्थानों में जहां सर्वधर्म समभाव की बात होना चाहिए वहां किसी एक धर्म विशेष की मान्यताओं के सहारे बालमन में धर्मांतरण का बीजारोपण करने का कारोबार तो नहीं चलाया जा रहा है ?
उल्लेखनीय है कि दो दिन पूर्व मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में एक बाल गृह से 26 लड़कियों के गायब होने की खबर सामने आने के बाद हड़कंप मच गया था। दो दिन की तमाम जांच के बाद पता लगा कि वह बाल गृह एक ईसाई अनिल मैथ्यू द्वारा अवैध रूप से संचालित किया जा रहा था, जिन लड़कियों के गायब होने की बात सामने आई थे कहा जा रहा है कि वो अपने माता पिता के पास सुरक्षित हैं और यह भी पता चला है कि अनिल मैथ्यू इस अवैध बाल गृह में बच्चों की परवरिश को ईसाई कल्चर से अंजाम दे रहा था यहां तक कि वहां जो प्रार्थना पद्धति अपनाई जा रही थी वह भी ईसाई थी।
यहां बताना उपयुक्त होगा कि मध्यप्रदेश में पिछले लंबे समय से ईसाई मिशनरीज इस प्रकार से शिक्षा सेवा स्वास्थ्य आदि की आड़ में बच्चों ,महिलाओं और गरीब बेसहारा आदि वर्ग के बीच अपने धर्म को बढावा देने के काम को अंजाम देता पाया गया है।
बीते वर्ष ग्वालियर के डबरा में ईसाई मिशनरीज द्वारा संचालित एक स्कूल में भी अवैध गतिविधियों के संचालित होने का मामला सामने आ चुका है। यहां महिला आयोग की जांच में जहां पहाड़ काटकर अवैध ढंग से स्कूल निर्माण की बात सामने आई थी स्कूल बिना मान्यता के संचालित होना पाया गया था साथ ही वहां धर्म विशेष से जुड़े साहित्य और क्लास रूम में उससे जुड़ी पुस्तकें मिली थीं इसकी लिखित शिकायत भी की गई।
इसी प्रकार मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित एक अन्य स्कूल के औचक निरीक्षण के लिए पहुंची मध्य प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग की टीम को यहां कई खामियां मिली थीं। आयोग को मिशनरी के ग्वालियर-डबरा स्थित सेंट पीटर्स स्कूल की तरह ही यहां भी प्रबंधक मप्र स्कूल शिक्षा विभाग की कोई मान्यता नहीं दिखा पाए थे। आयोग के पूर्व निरीक्षण के दौरान पाए गए हार्ट एवं किडनी जैसे अंग इस बार प्रयोगशाला से गायब थे, लेकिन जांच कराकर जो इनके बारे में रिपोर्ट प्रस्तुत की जानी थी, वह भी इस बार के दूसरे निरीक्षण में स्कूल प्रबंधक नहीं दे सका था। राज्य बाल संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर) द्वारा यह जांच 2 सदस्यीय टीम डॉ. निवेदिता शर्मा और ओंकार सिंह ने की थी।
आयोग की टीम को यहां रुपयों के लेन-देन में भारी गड़बड़ी मिली थी। कृषि भूमि पर स्कूल संचालित हो रहा था, विद्यालय के लिए भूमि का डायवर्जन सही नहीं पाया गया था। विद्यालय के अंदर जहां आवासीय परिसर शिक्षकों के लिए बताया, वहां दूसरे राज्यों से आकर नन और सिस्टर्स रह रही थीं। संख्या आठ बताई गई थी लेकिन अंदर से सिर्फ तीन मिली । इस बिल्डिंग के भीतर आयोग की टीम को जाने नहीं दिया गया। जो महिलाएं यहां मिलीं भी तो उनका कोई पुलिस वेरिफिकेशन नहीं पाया गया। इस प्रकार से कई अन्य धांधलियां, आर्थिक अनियमितताएं यहां मिली थीं। जब इन सभी कमियों के बारे में स्कूल प्रशासन, खासकर सेंट चार्ल्स स्कूल की प्राचार्या सिस्टर लीसा चाको से जानना चाहा तो वे कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाईं थीं।
यह तो कुछ चंद उदाहरण हैं ऐसे अवैध कारोबार में लगे मध्यप्रदेश में न जाने कितने होंगे जरूरत है कि इनपर शिकंजा कसने के लिए सामूहिक योजना को अंजाम दिया जाए । साथ ही जो मामले सामने आते हैं उनपर ऐसी कड़ी कार्यवाही की जाए कि आगे से कोई शिक्षा, स्वास्थ्य,सेवा और बेसहारा लोगों के नाम पर अपना असली कुचक्र चलाने की हिम्मत न जुटा सके।