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मध्यप्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन का संकेत हैं यह मेल मुलाकातें

मध्यप्रदेश में सत्ताधारी दल भाजपा में भोपाल से लेकर दिल्ली तक जो हलचल देखी जा रही है उसने राजनीतिक पंडितों को बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर दिया है। चूंकि इस समय दिल्ली में संघ प्रमुख मोहन भागवत भी डेरा डाले हुए हैं और उनके स्तर पर भी बैठकों का दौर चल रहा है अतः  इस सरगर्मी को मध्यप्रदेश में सत्ता संगठन में परिवर्तन के नजरिए से भी देखा जा रहा है।

 पिछले तीन दिन की बात करें तो मध्यप्रदेश के नंबर दो डॉ नरोत्तम मिश्रा राजनीतिक सरगर्मियों के केन्द्र में दिखाई दे रहे हैं। पहले दिल्ली में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने नरोत्तम मिश्रा से मुलाकात के साथ केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर से चर्चा की इसी दौरान प्रभात झा व कई अन्य नेता भी उनसे मिलते दिखाई दिये।
 अब आज सुबह से एकबार फिर नरोत्तम मिश्रा चर्चा में बने हुए हैं। भोपाल में उनके चार इमली निवास पर प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा उनसे मिलने पहुंचे उन्होंने लगभग एक घण्टे तक श्री मिश्रा से बंद कमरे में चर्चा की। इसके तुरंत बाद ही नरोत्तम मिश्रा संगठन के सबसे प्रमुख माने जाने वाले संगठनमंत्री सुहास भगत व सह संगठन मंत्री हितानंद शर्मा से मिलने पहुंचे। हालांकि इन मुलाकातों को सामान्य शिष्टाचार भेंट बताया जा रहा है लेकिन  इसके पीछे की सच्चाई कुछ और भी बयां कर रही है। 
उल्लेखनीय है की जिस प्रकार देवास उपचुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है और आने वाले समय में पार्टी को मध्यप्रदेश में विधानसभा  ,लोकसभा उपचुनाव के अलावा नगरीय निकाय चुनावों का सामना करना है और 2023  का चुनावी साल भी अब ज्यादा दूर नहीं है  अतः भाजपा के नीतिनिर्धारकों खासकर संघ को अब चिंता सताने लगी है। 
जैसा की सभी को महसूस हो रहा है की पार्टी  खासकर ज्योतिरादित्य सिंधिया की एंट्री के बाद से उतना प्रभावी प्रदर्शन नहीं कर सकी है जितना की होना चाहिए था। पिछले वर्ष के उपचुनावों में सरकार तो बन गई लेकिन पार्टी का प्रदर्शन प्रभावी नहीं रहा है। इसके विविध कारण हैं लेकिन अब चिंता आने वाले चुनावों की है पार्टी नेतृत्व इस बात को लेकर भी चिंतित है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की भूमिका क्या तय की जाए ,पार्टी नेतृत्व यह भी कतई नहीं चाहेगा की ज्योतिरादित्य सिंधिया के मन में कोई नकारात्मक भाव पैदा हो और इस वजह से उनके समर्थक विधायक कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करें। पार्टी नेतृत्व यह भी भली प्रकार जानता है की नगरीय निकाय चुनावों में टिकट का वितरण व निगम मंडल आयोग प्राधिकरण आदि में नियुक्तियां भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है और इसका सामना करना ही होगा। 
सबसे  बड़ा सवाल यह भी है की पहले विधानसभा चुनाव की हार फिर विधानसभा उपचुनाव में आशानुरूप से विपरीत प्रदर्शन और अब हाल ही में देवास उप चुनाव की हार के बावजूद भी शीर्ष नेतृत्व हाथ पर हाथ धरे कैसे बैठे रह सकता है। 

यही वह सारे मुद्दे हैं जो प्रदेश की सत्ता व संगठन में किसी बड़े परिवर्तन का कयास लगाने को मजबूर कर रहे हैं। लेकिन एक सवाल यह भी है की गत डेढ़ दशक से मध्यप्रदेश की सत्ता के चतुर चालाक खिलाड़ी बन चुके शिवराज सिंह का क्या होगा ?  फिलहाल तो इसका एक ही जवाब है की उन्हें पूर्व की तरह एकबार पुनः संगठन की जिम्मेदारी देकर पार्टी उनका उपयोग राष्ट्रीय स्तर पर कर सकती है लेकिन सबसे बड़ा सवाल की क्या इससे मध्यप्रदेश भाजपा की सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा इसका उत्तर खोजना ही भाजपा और संघ के लिए सबसे बडी चुनौती है।

यहां बताना उपयुक्त होगा की  मध्यप्रदेश में लगभग ढाई साल बाद विधानसभा के चुनाव होना है । उससे पहले तीन विधानसभा क्षेत्र बुंदेलखंड के पृथ्वीपुर, विंध्य क्षेत्र के रैगांव और निमाड़-मालवा के जोबट के अलावा खंडवा लोकसभा क्षेत्र में उपचुनाव होना है। इनमे से दो विधानसभा कांग्रेस जोबट व पृथ्वीपुर से कांग्रेस विधायक रहे है, जबकि रैगांव विधानसभा व खंडवा लोकसभा पर भाजपा का कब्जा था। इन चुनावों के नतीजे अगले विधानसभा चुनाव के लिए बड़ा संदेश देने वाले होंगे  साथ ही प्रदेश में शीघ्र होने वाले नगरीय निकाय चुनाव भी है इसी कारण शीर्ष नेतृत्व सचेत हो गया है।

 

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