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मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री को लेकर पार्टी शीर्ष नेतृत्व ऊहा पोह की स्थिति में अब पर्यवेक्षक भेजने की तैयारी

 -प्रवीण दुबे-

मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री कौन होगा ? इसको लेकर पार्टी शीर्ष नेतृत्व बेहद फूक फूक कर कदम रख रहा है। बुधवार को प्रधानमंत्री मोदी से लेकर अमित शाह और जेपी नड्डा के बीच गुफ्तगू चलती रही अब शुक्रवार को सुबह बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक में इसपर चर्चा के बाद अगला कदम उठाया जाएगा। संभावना है कि पार्टी नेतृत्व परंपरागत तरीके के अनुसार कोई प्रेक्षक तय करेगा जो भोपाल पहुंचकर विधायकों की रायशुमारी करने के बाद रिपोर्ट पार्टी हाईकमान को सौंपेगा और उसी आधार पर मुख्यमंत्री का नाम तय किया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में सीएम पद की दौड़ में आधा दर्जन से अधिक चेहरे शामिल हैं। यही वजह है कि शीर्ष  नेतृत्व मध्यप्रदेश में मिली प्रचंड जीत के सबसे बड़े हीरो माने जा रहे  एस मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को सीधे मुख्यमंत्री का ताज पहनाने से परहेज करता दिखाई दे रहा है ।
 उसके सामने एक तरफ आगामी लोकसभा चुनाव खड़े हैं तो दूसरी तरफ यह सवाल है कि  जिसे चुनाव से पहले  मुख्यमंत्री की कुर्सी पर सुशोभित होने के बावजूद  मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं किया  उसी को मुख्यमंत्री कैसे बनाया जाय ?
 यही कारण है कि तमाम मंथन के बावजूद भाजपा नेतृत्व पिछले तीन दिनों में सीधे शिवराज के नाम पर मोहर नहीं लगा सका है।
यदि वो ऐसा करता है तो बहुत सारे ऐसे सवाल उठ खड़े होने का खतरा है जिनका जवाब देना सरल नहीं होता। सबसे बड़ा सवाल तो यह कैलाश विजयवर्गीय,नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल जैसे नेताओं को विधानसभा चुनाव में उतारने को लेकर खड़ा  होता है। वे जीत कर आए हैं और मुख्यमंत्री पद की सभी अहर्ताओं को भी पूरा करते हैं फिर उनमें से मुख्यमंत्री क्यों नहीं ? दूसरा सवाल यह कि शिवराज को ही मुख्यमंत्री बनाना था तो पहले से उन्हें चेहरा क्यों नहीं बनाया और उनके विकल्प के रूप में केंद्रीय मंत्रियों,सांसदों की पुरी फौज विधानसभा चुनाव में क्यों उतारी ?
अब पार्टी शीर्ष नेतृत्व ऊहा पोह में है कि शिवराज को सीधे ऊपर से मुख्यमंत्री घोषित किया तो वे तमाम नेता मुंह फुला लेंगे जिन्हे शिवराज के विकल्प के तौर पर विधानसभा  चुनाव लड़ाया गया, और शिवराज को मुख्यमंत्री नहीं बनाया तो प्रदेश की 48 प्रतिशत महिला वोटरों की नाराजगी के साथ तमाम विधायकों के विद्रोह का बुरा असर छह माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव परb पड़ सकता है।
इन दोनों बातों से बचने का शीर्ष नेतृत्व के पास अब एक ही रास्ता बचा है कि मुख्यमंत्री का नाम सीधे ऊपर से घोषित  करने के बजाए परंपरागत रास्ता अख्तियार किया जाए।
जिसमें पार्टी नेतृत्व द्वारा मुख्यमंत्री की रायशुमारी हेतु पर्यवेकक्षक नियुक्त किया जाएगा और उसके भोपाल पहुंचकर विधायकों के बीच रायशुमारी करके पार्टी नेतृत्व को अवगत कराए जाने की कार्यवाही को अंजाम दिया जाएगा और इसके बाद पार्टी हाईकमान मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा करेगा ऐसा करने से पार्टी हाईकमान सीधे ऊपर से मुख्यमंत्री थोपे जाने के उलाहने वाले आरोप से बच जाएगा । अब बात उसी दिशा की ओर अग्रसर है।
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