देश के कोने-कोने से रविवार को भोपाल पहुंचे आरएसएस के पूर्व प्रचारक और स्वयंसेवकों ने जनहित पार्टी के नाम से राजनीतिक पार्टी का गठन किया है। भोपाल में हुई बैठक में इसके पांच सूत्रीय एजेंडा तय किए गए हैं। इन्हीं पांच बिंदुओं के आधार पर जनहित पार्टी मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार को आगामी चुनाव में घेरेगी।
आरएसएस के पूर्व प्रचारक अभय जैन ने कहा कि देश की जनता आज एक स्वच्छ राजनीति की ओर देख रही है और नेता आज जनता से जुड़े मुद्दों को उठाना भूल गए हैं। भाजपा की ही बात की जाए तो पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे महान विचारकों ने जिन विचारों पर पार्टी की स्थापना की थी वह विचार आज भाजपा में कहीं भी नजर नहीं आते हैं। हम पंडित दीनदयाल उपाध्याय के इन्हीं विचारों का अक्षरशः पालन करेंगे और राजनीति में एक नया उदाहरण पेश करेंगे।
इन विचारों को लेकर जनहित पार्टी के जनप्रतिनिधि जनता के बीच जाएंगे।
शिक्षा
हर बालक देश की पूंजी है, इसे संवारें। प्रतिभा अनुसार योग्यता पाना प्रत्येक का अधिकार है। शिक्षा समाज का दायित्व है। जन्म से मानव पशुवत पैदा होता है, शिक्षा और संस्कार से वह समाज का अभिन्न घटक बनता है। जो काम समाज के अपने हित में हो उसके लिए शुल्क दिया जाए, यह तो उल्टी बात है। पेड़ लगाने और सींचने के लिए हम पेड़ से पैसा नहीं लेते क्योंकि वह हमारी जिंदगी हैं। पैसे देकर शिक्षित होने वाला बचपन से ही व्यक्तिवादी बनता है और समाज की अवहेलना करता है। भारत में 1947 से पूर्व सभी देशी राज्यों में कहीं भी शिक्षा का शुल्क नहीं लिया जाता था, उच्चतम शिक्षा तक निशुल्क थी। गुरुकुलों में तो भोजन व रहने की व्यवस्था भी होती थी।
स्वास्थ्य
जन्मा हुआ हर नागरिक देश की संपति है, इनका जीवन बचाएं। चिकित्सा के लिए पैसा देना पड़े यह अचंभे की बात है। चिकित्सा भी निशुल्क होना चाहिए हमारे यहां पहले चिकित्सा के लिए भी पैसा नहीं लिया जाता था। आजकल तो कई मंदिरों में भी जाने के लिए पैसा देना पड़ता है।
दंडनीति
कहां जाएं लोग, पुलिस या न्यायलय। 70 प्रतिशत लोग अन्याय सहन करते है, कोर्ट क्यों नहीं जाते। न्यायालय से न्याय दिलाने की पहली जिम्मेदारी पुलिस की होती है, जिसपर भरोसा नहीं है, वकील महंगे हैं तथा न्यायलय में केसों का अम्बार है। पेशी पर जाओ, तारीख बढ़ती रहती है। न तो क्षीणदंड होना चाहिए और न उग्रदण्ड होना चाहिए बल्कि मृदुदण्ड होना चाहिए। दंड से ही जनता को नियंत्रित करने से धर्म की हानि होती है।
अर्थव्यवस्था
प्रत्येक को काम अर्थव्यवस्था का सिद्धांत होना चाहिए। भुभुक्षिता किं न करोति पापम् – चाणक्य। भूखा आदमी कोई भी पाप कर सकता है। अर्थव्यवस्था में व्यक्ति।मनुष्य, श्रम और मशीन में समन्वय ही अर्थव्यवस्था का उद्देश्य है। धन के अधिकाधिक सम वितरण की आवश्यकता है। प्रत्येक को श्रम का अवसर देना सरकार का दायित्व है। आधिकाधिक उपभोग का सिद्धांत ही मनुष्य के दुखों का कारण है। भारत में न्यूनतम उपभोग को या संयमित उपभोग को आधार माना गया है। प्रत्येक को काम अर्थव्यवस्था का आधारभूत लक्ष्य होना चाहिए। आज एक ओर 10 वर्ष का बालक और 70 वर्ष का बूढ़ा काम में जुटा हुआ है और दूसरी ओर 25 वर्ष का नौजवान बेकारी से ऊबकर आत्महत्या कर रहा है। मशीन मानव का सहायक है, प्रतिस्पर्धी नहीं । यदि मशीन मानव का स्थान लेकर उसे भूखा मारे तो वह यंत्र के आविष्कार के उद्देश्य के विपरीत होगा। निर्जीव मशीन इसके लिए दोषी नहीं है, बुराई उस अर्थव्यवस्था की है। जिसमें विवेक लुप्त हो जाता है। विज्ञान एवं तकनीक का उपयोग प्रत्येक देश को अपनी परिस्थितियों और आवश्यकता के अनुसार करना चाहिए। खाली मशीन केवल पूंजी खाती है परंतु मनुष्य बेकार हो तो प्रतिदिन खाना चाहिए ही यह तो विकेंद्रित अर्थव्यवस्था से ही संभव है।
संघ की तर्ज पर हुई बैठक, भोजन और विश्राम:
संघ के पूर्व प्रचारकों की नई पार्टी की पहली बैठक संघ और भाजपा की तर्ज पर ही की गई, यानी भोजन, बैठक और विश्राम. भोपाल के सलैया इलाके में स्थित एक निजी कॉलेज के परिसर में यह बैठक आयोजित की गई, बैठक में करीब 200 लोग आए थे और इनमें ज्यादा संघ के स्वयंसेवक थे. इनमें एमपी के भोपाल, इंदौर, शाजापुर, उज्जैन, आगर आदि से लोग आए थे तो वहीं झारखंड से भी काफी संख्या में लोग थे. आगर के पूर्व विधायक भी इस बैठक में मौजूद थे, हालांकि वे मीडिया से दूरी बनाए रखे.
बैठक की शुरूआत सुबह से हुई और संघ व भाजपा की तर्ज पर सत्र तय किए गए, दोपहर के समय में नीचे बैठकर भोजन कराया. एकदम सादा भोजन था, उसमें बिना तेज मसालों वाली दाल, सब्जी और बिना घी की मोटी मोटी रोटी थी. पराेसने का सिस्टम वैसा ही था और जो भोजन कर रहे थे, वे अपनी थाली उठाकर स्वयं रख रहे थे. सत्र यानी बैठक के लिए एक हाॅल में व्यवस्था की गई थी। एक छोटा मंच था, जिसकी बगल में भारत माता की तस्वीर थी और मंच पर थे अभय जैन. वे अपने कार्यकर्ताओं को मेंबर बनाने के बारे में बता रहे थे, संघ की तर्ज पर जूते रखे हुए थे. सबकुछ वैसा ही, बस अलग था तो यह कि खुलकर राजनीतिक दल बनाने की बात की जा रही थी. इस बैठक में कुछ ऐसे भी चेहरे थे, जो वर्तमान में संघ के विभिन्न दायित्वों पर अभी काम कर रहे हैं