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मध्य भारत शिक्षा समिति द्वारा ग्वालियर को मिलेगा अनूठा विश्वविद्यालय

इसी निमित्त चिंतन संगोष्ठी मेआयोजित 

ग्वालियर/भारत के महत्वपूर्ण विश्वविद्यालय में से एक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिये पं.मदन मोहन मालवीय जी ने जिस प्रकार समाज की शक्ति को साथ लेकर कार्य किया ठीक उसी प्रकार मध्य भारत शिक्षा समिति को भी समाज के लिये विश्वविद्यालय स्थापना ऐसी भावना को लेकर कार्य करना चाहिये ऐसा करने पर आपका विश्वविद्यालय निश्चित ही उच्च शिक्षा जगत का वह ‘लाइट-हाउस’सिद्ध होगा जिससे न केवल ग्वालियर के आसपास के बल्कि देश के अन्य विश्वविद्यालय मार्गदर्शन पायेंगे साथ-साथ एक उचित शैक्षणिक वातावरण निर्माण के लिये दिशा बोध प्राप्त करेंगे। उक्त विचार मध्य भारत शिक्षा समिति द्वारा आयोजित चिंतन संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित नोयडा से पधारे विद्याभारती उच्च शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री के. एन.रघुनंदन ने व्यक्त किए।

उन्होंने कहा “आज प्रतियोगिता का युग है और प्रतियोगिता में बने रहने के लिये युगीन उपकरणों तथा नियोजित कार्य गति की आवश्यकता होती है। यदि कोई भी शिक्षण संस्थान छात्रों की अभिरुचि,पाठ्यक्रमों के रोजगारपरक प्रारूप,शिक्षकों की अध्यापन प्रणाली और समाज पोषित शिक्षा व्यवस्था को लेकर गम्भीरता से चिंतन करते हुये संचालित किया जाता है तो वह निश्चित ही एक आदर्श की स्थापना कर सकता है”- यह बात विगत दिवस मध्य भारत शिक्षा समिति द्वारा आयोजित चिंतन संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित नोयडा से पधारे विद्याभारती उच्च शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री के. एन.रघुनंदन ने कही ।

उन्होंने भारतीयता से ओत-प्रोत विद्याभारती द्वारा संचालित शिशुवाटिका के विद्यालय शिक्षा व्यवस्था के क्षेत्र में स्थापित प्रतिमानों को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी उपयोगी बताते हुए कहा कि:- “यदि शिक्षण संस्थानों के प्राचार्य,शिक्षक, कर्मचारी,विद्यार्थी और उनके अभिभावक सभी मिलकर एक साथ एक ही दिशा में एक जैसा विचार लेकर गतिशील होते हैं तो निश्चित ही ‘शून्य से शिखर तक’जैसे ध्येय वाक्यों को साकार किया जा सकता है।चूँकिग्वालियरसदैवसेवैचारिक,सामाजिक,सांस्कृतिक तथा राजनीतिक परिवर्तनों का केंद्र रहा है इसलिये आज मध्य भारत शिक्षा समिति द्वारा शिक्षा क्षेत्र में परिवर्तन को लेकर जो विचार किया जा रहा है वह सचमुच प्रशंसनीय है। आदर्श विश्वविद्यालय की संकल्पना को मूर्त रूप देने के लिये पाठ्यक्रमों के निर्धारण, पाठ्येत्तर गतिविधियों के संचालन,आवश्यक संसाधनों की पूर्ति के लिये किये जाने वाले प्रयासों तथा शोध कार्यों के संचालन इत्यादि के संबंध में अपने विचार रखते हुये उन्होंने आगे कहा कि:-भारत के महत्वपूर्ण विश्वविद्यालय में से एक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिये पं.मदन मोहन मालवीय जी ने जिस प्रकार समाज की शक्ति को साथ लेकर कार्य किया ठीक उसी प्रकार मध्य भारत शिक्षा समिति को भी समाज के लिये विश्वविद्यालय स्थापना ऐसी भावना को लेकर कार्य करना चाहिये ऐसा करने पर आपका विश्वविद्यालय निश्चित ही उच्च शिक्षा जगत का वह ‘लाइट-हाउस’सिद्ध होगा जिससे न केवल ग्वालियर के आसपास के बल्कि देश के अन्य विश्वविद्यालय मार्गदर्शन पायेंगे साथ-साथ एक उचित शैक्षणिक वातावरण निर्माण के लिये दिशा बोध प्राप्त करेंगे।

शिक्षा में भारतीयता के समावेश से ही वह वर्तमान समय की सबसे बड़ी माँग-‘मनुष्य निर्माण करने’ को पूरा कर सकती है। इस दृष्टि से भी आपका विश्वविद्यालय एक महत्वपूर्ण संस्थान के रूप में विकसित हो सकता है। समाज तथा देश को वैचारिक संक्रमण के इस काल में शिक्षा जगत से बहुत सारी अपेक्षाएँ और आशा हैं।

एक दिवसीय संगोष्ठी के प्रारंभ में प्रस्तावना उदबोधन देते हुये मध्य भारत शिक्षा समिति के अध्यक्ष डॉ.राजेंद्र बांदिल  ने कहा कि “मध्य भारत शिक्षा समिति लंबे समय से एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था की स्थापना के लिये प्रयास कर रही है जिसका पाठ्यक्रम, मूल्यांकन पद्धति,शिक्षा संस्कार, कार्यक्रमों की प्रस्तुति सभी कुछ इस प्रकार संयोजित किये गये हों कि उसके माध्यम से हम देश के नौनिहालों एवं युवाओं को इस प्रकार शिक्षित- प्रशिक्षित-दीक्षित कर सकें कि वे स्वयं के साथ समाज जीवन को तेजोमय,अनुशासित, प्रगतिशील, वैभव सम्पन्न, सर्व समर्थ एवं यशस्वी बनाने में अग्रणी भूमिका का निर्वहन कर सकें इस हेतु हमारे शिक्षण संस्थान अपने प्रयासों से जिज्ञासा, शिक्षा संस्कार,ज्ञान-प्रेरणा,आचार-विचार-व्यवहार, शोध-आविष्कार का ऐसा उत्प्रेरक वातावरण बनाये जहाँ व्यक्ति स्वयं स्फूर्त हो अनुकरणीय व्यक्तित्व में रूपांतरित होते रहें। इस हेतु हमारे मन में अपना विश्वविद्यालय स्थापित करने का विचार प्रस्तुत हुआ है। हम मनुष्य को प्रभुता,पोषण देने वाली तथा अंधकार से लड़ने के लिये संघर्ष करने के योग्य बनाने वाली शिक्षा व्यवस्था के प्रवर्तक के रूप में अपनी पहचान बनाने की ओर अग्रसर हैं। यह संगोष्ठी उसी पुण्य पथ की प्रथम सीढ़ी है। यह विचार गोष्ठी हमें भारतीय शिक्षा दर्शन के उद्देश्यों को पूरा करने की दिशा में उचित नीति बनाने में सहायक बनेगी।”

एक दिवसीय दो सत्रों में विभाजित चिंतन संगोष्ठी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्य भारत प्रांत के प्रचारक श्री विमल  गुप्त  ने विश्वविद्यालय की संकल्पना के सम्बंध में अपना विचार रखते हुये कहा कि- “उद्देश्य की पूर्ति में असफल होना पाप नहीं है पर छोटा लक्ष्य रखना पाप है। भारत किसी समय अपनी अध्ययन-अध्यापन की पद्धतियों के कारण विश्व गुरु के पद पर आसीन था हमें पुनः उस अवस्था में पहुंचने के लिये अपने विश्वविद्यालय को अन्य विश्वविद्यालयों से भिन्न रखना होगा। स्वबोध, मूल्यबोध,परिस्थिति बोध,शत्रु बोध इन सबका बोध देने वाली शिक्षा हमारा विश्वविद्यालय देगा।

” बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष डॉ.गोविंद प्रसाद शर्मा  ने विद्यार्थियों की रचनात्मक प्रतिभा विकास के सम्बंध में अपना विचार रखते हुए कहा- “राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा के केंद्र में शिक्षकों को रखा गया है। यदि शिक्षक ज्ञान,संस्कार और सिद्धांत की दृष्टि से परिपक्व है तो वह निश्चित ही चरित्रवान नागरिक तैयार करेगा। छात्र को स्वयं को अभिव्यक्त करने का अधिकार और अवसर मिलना ही चाहिए। इसी से उसकी रचनात्मक प्रतिभा का विकास होता है।”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्य क्षेत्र के प्रचारक श्री स्वप्निल कुलकर्णी  ने विश्व विद्यालय के सम्बंध में अपनी संकल्पना व्यक्त करते हुये कहा कि-“परिवर्तन संसार का नियम है लेकिन जो अपरिवर्तनीय है उसका मान रखते हुये परिवर्तन करना मानव के लिये कल्याणकारी होता है इसलिये हमारा विश्वविद्यालय भारत की आत्मा को जीवित रखते हुये कार्य करने के लिये संकल्पित होना चाहिए।”

एमिटी विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ. राजेश तोमर  ने सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभाव को ध्यान में रखते हुये विश्वविद्यालय के सम्बन्ध में कहा कि “शिक्षक के अध्यापन की शैली ऐसी हो कि विद्यार्थी उसे सुने क्योंकि आज सोशल साइट्स पर बहुत कुछ उपलब्ध है इसलिये शिक्षक को विद्यार्थियों के मनोवैज्ञानिक स्तर को समझकर चलना होगा इसके साथ ही उन्होंने विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग होने की अनिवार्यता पर भी बल दिया।” मानसिंह संगीत विश्व विद्यालय की कुलगुरु डॉ.स्मिता सहस्त्रबुद्धे जी ने संगीत के क्षेत्र में नवाचार करते हुये भारतीय संगीत को समृद्ध करने के सम्बंध में अपना विचार रखा,क्रीड़ा अधिकारी डॉ राजेंद्र सिंह  ने कुछ नवीन पाठ्यक्रमों को जैसे-खेल प्रबंधन,ब्रीज कंस्ट्रक्शन, सोलर एनर्जी इत्यादि में एमबीए की उपाधि की व्यवस्था का विचार दिया। श्री मधुसूदन सिंह भदौरिया  ने पर्यावरण सम्वर्द्धन एवं जल संरक्षण से सम्बंधित पाठ्यक्रम चलाने की बात कही।आई आई टी टी एम के डॉ.आलोक शर्मा  ने विश्वविद्यालय के भौतिक ढाँचे को प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न बनाने का विचार रखा, डॉ.सुखदेव माखीजा जी ने दूरस्थ शिक्षण की व्यवस्था के लिये अपने कुछ प्रस्ताव प्रस्तुत किये। डॉ रविकांत द्विवेदी ने राष्ट्र प्रथम के भाव को जोड़ने पर बल दिया।डॉ धीरेन्द्र  भदौरिया सहित अन्य विद्वानों ने भी अपने विचार व्यक्त किए। सुझाव तथा कल्पनाओं के प्रस्तुतीकरण के क्रम में मध्य भारत शिक्षा समिति के द्वारा संचालित माधव महाविद्यालय, माधव विधि महाविद्यालय,माधव शिक्षा महाविद्यालय तथा पार्वती बाई गोखले विज्ञान महाविद्यालय के प्राचार्य क्रमशः डॉ.शिवकुमार शर्मा,डॉ. नीति पांडे,डॉ.विवेक भदौरिया,डॉ. सुनील पाठक  द्वारा विश्वविद्यालय कैसा हो?-इस चिंतन विषय पर पी.पी.टी के माध्यम से अपनी-अपनी बात प्रस्तुत की।

इस अवसर पर श्रीमान प्रहलाद सबनानी,श्री हेमंत सेठिया , डॉ.कुमार संजीव , डॉ.राकेश सिंह कुशवाह,डॉ.के.के.कल्याणकर ,डॉ.आर.एस.शर्मा , श्री नरेंद्र कुंटे ,श्री विजय  दीक्षित, डॉ प्रदीप  वाजपेयी, डॉ नरेश त्यागी l सहित नगर के विद्वान मनीषी उपस्थित रहे।
डॉ.मंदाकिनी शर्मा, डॉ वंदना सेन तथा प्रो.संजय त्रिवेदी ने संगोष्ठी में विद्वतजनों के विचारों का संकलन किया। संगोष्ठी के दोनों सत्रों का संचालन डॉ. राजेंद्र वैद्य जी द्वारा तथा संगोष्ठी का संयोजन माधव विधि महाविद्यालय द्वारा किया गया।

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