महेश कटारे का जन्म सन् 1948 में मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के बिल्हैटी गांव में एक निम्न मध्यवर्गीय किसान-परिवार में हुआ। समर शेष है, इतिकथा अथकथा, मुर्दा स्थगित, पहरुआ, छछिया भर छाछ, सात पान की हमेल, फागुन की मौत, मेरी प्रिय कथाएं, गौरतलब कहानियां (कहानी संग्रह); महासमर का साक्षी, अंधेरे युगान्त के, पचरंगी, विभाजन (नाटक); पहियों पर रात दिन, देस बिदेस दरवेश (यात्रावृत्त); कामिनी काय कांतारे, काली धार, भर्तृहरि, काया के वन में (उपन्यास); समय के साथ-साथ, नजर इधर-उधर आदि उनकी प्रकाशित कृतियॉं हैं। न केवल अपनी रचनाओं में बल्कि वास्तविक जीवन में भी वे खेती-किसानी से गहराई से जुड़े हैं। कथाकार कटारे को सारिका सर्व भाषा कथा पुरस्कार, वागीश्वरी पुरस्कार, गजानन माधव मुक्तिबोध पुरस्कार, सुभद्रा कुमारी चौहान कथा पुरस्कार, शमशेर सम्मांन, चक्रधर सम्मान, कथाक्रम सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार, मध्य प्रदेश साहित्य परिषद, राजभाषा परिषद बिहार, ढींगरा फाउंडेशन अमेरिका एवं हिंदी चेतना कनाडा से कथा पुरुस्कार , कुसुमांजलि सम्मान एवं कई अन्य पुरुस्कार/सम्मान मिले हैं |
मूर्धन्य कथाशिल्पी श्रीलाल शुक्ल की स्मृति में वर्ष 2011 में शुरू किया गया यह सम्मान प्रत्येक वर्ष ऐसे हिन्दी लेखक को दिया जाता है जिसकी रचनाओं में मुख्यत: ग्रामीण व कृषि जीवन तथा हाशिए के लोग, विस्थापन आदि से जुड़ी समस्याओं, आकांक्षाओं और संघर्षों का चित्रण किया गया हो।
इनसे पहले यह सम्मान विद्यासागर नौटियाल, शेखर जोशी, संजीव, मिथिलेश्वर, अष्टभुजा शुक्ल, कमलाकांत त्रिपाठी, रामदेव धुरंधर और रामधारी सिंह दिवाकर को प्रदान किया जा चुका है। सम्मानित साहित्यकार को एक प्रतीक चिह्न, प्रशस्ति पत्र तथा ग्यारह लाख रुपये की राशि का चेक प्रदान किया जाता है। महेश कटारे को यह सम्मान 31 जनवरी, 2020 को नई दिल्ली में एक समारोह में प्रदान किया जाएगा।