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मुख्यमंत्रीजी कुछ कीजिए , विश्वप्रसिद्ध मेले को हाट में तब्दील कर डाला नौकरशाही ने

प्रवीण दुबे

118 साल से अधिक पुराने ग्वालियर व्यापार मेले का शुभारंभ करने प्रदेश के नए नवेले मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव 4 जनवरी को ग्वालियर आ रहे हैं। शायद मुख्यमंत्री को ग्वालियर व्यापार मेले से जुड़ी यह बात पता नहीं होगी कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने 2012 के बाद से कभी भी ग्वालियर के इस प्रतिष्ठित मेले में संचालक मंडल की नियुक्ति नहीं की,बीच में जब 18 महीने की कमलनाथ सरकार सत्ता में आई तो इस मेले के संस्थापक परिवार के सदस्य जो कि अब भाजपा में ही हैं मेले को लेकर जबरदस्त सक्रिय दिखाई दिए और मेला प्राधिकरण अध्यक्ष सहित उपाध्यक्ष और संचालक मंडल के 6 पदों पर अपने खासम खासों की नियुक्तियां करा दी गईं,लेकिन दुर्भाग्य इस मेले का की जब तक संचालक मंडल एक्टिव होता सरकार गिर गई और एकबार फिर मेला नौकरशाही के हाथ चला गया।

शिवराज सिंह ने मेले के प्रति अपनी अरुचि को जागृत रखा और 2012 से 2018 की तर्ज पर ही जब तक वे सत्ता में रहे मेला प्राधिकरण में नियुक्तियां नहीं की गईं हैं।
परिणाम यह हुआ कि ग्वालियर की शान समझा जाने वाला यह मेला नौकरशाही के शिकंजे में जकड़कर रह गया है।
बिना किसी नवाचार के काम को निपटाऊ मानसिकता से अंजाम देने वाली नौकरशाही ने ग्वालियर व्यापार मेले के भव्यतम स्वरूप को ही निपटा डाला।
मेला प्राधिकरण के लंबे चौड़े भू भाग को भूमाफियाओं ने कब्जा लिया तो तमाम मैरिज गार्डन बनकर खड़े हो गए, परिणाम यह हुआ कि ग्वालियर मेला सिकुड़ता चला गया ।
जिस मेले को घूमने सुबह से लेकर रात्रि तक समय कम पड़ जाता था वह मेला हाट जैसे स्वरूप में जा पहुंचा है।
 एक समय यहां लगने वाली विभिन्न विभागों की प्रदर्शनियां आकर्षण का केंद्र होती थी अब केवल खानापूर्ति बनकर रह गई हैं।
पूरे देश से ग्वालियर मेले में दुकानें लगाने वालों ने भी यहां से मुंह मोड़ लिया।
देश के बड़े बड़े नामी गिरामी कलाकारों से यहां सजने वाला  सांस्कृतिक मंच अब पहले  जैसा नहीं रहा और उसके प्रति ग्वालियर वासियों की रुचि जैसे औपचारिकता बन गई। न कोई नवाचार न कोई नयापन,इस मेले के प्रति नौकरशाही के नाकरापन का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि अभी तक सांस्कृतिक कैलेंडर तक की घोषणा नहीं की गई है। कब कवि सम्मेलन होगा कब मुशायरे की महफिल सजेगी,कब बॉलीवुड के कलाकारों से मेला गुलजार होगा किसी को नहीं पता।
सच कहा जाए तो ग्वालियर का व्यापार मेला अपनी दुर्दशा पर नो नो आसूं बहा रहा है।
आश्चर्य की बात तो यह है कि जिस सिंधिया राजवंश ने सौ साल से भी अधिक समय पूर्व ग्वालियर व्यापार मेले की शुरुआत की थी उसी सिंधिया राजवंश के वारिस ज्योतिरादित्य सिंधिया वर्तमान में भाजपा सरकार में केंद्रीय मंत्री होने के साथ एक प्रभावी राजनेता हैं बावजूद इसके उन्होंने भी अभी तक न तो इस मेले को नौकरशाही के शिकंजे से मुक्त कराने में कोई तत्परता दिखाई है और ना ही मेले के सिंधिया रियासत काल जैसे भव्य स्वरूप को वापस लाने के लिए कोई प्रभावी कदम ही उठाया है।
अब जबकि इस समय मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री की कमान डॉ मोहन यादव के हाथ है और वे 4 जनवरी को ग्वालियर व्यापार मेले का शुभारंभ करने आ रहे हैं शहरवासियों सहित भाजपा कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि वर्षों से नौकरशाही के मकड़जाल में उलझा ग्वालियर व्यापार मेला उनके शिकंजे से बाहर निकलेगा और मुख्यमंत्री सहित श्री सिंधिया के प्रयासों से यहां संचालक मंडल गठित होगा होकर मेला पूरे देश में सुर्खियां बटोरेगा।
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