दिनेश पाठक
हालांकि विधिवत रूप से भारत में रेडियो का पहला प्रसारण 23 जुलाई 1927 को मुंबई से हुआ था,लेकिन,टाइम्स ऑफ इण्डिया के रिकार्ड के अनुसार 20 अगस्त 1921 को शौकिया रेडियो ऑपरेटर्स ने कलकत्ता, बम्बई, मद्रास और लाहौर में स्वतंत्रता आन्दोलन के समय अवैधानिक रूप से रेडियो प्रसारण शुरू किया और इसे क्रान्तिकारी गतिविधियों के लिए संचार का माध्यम भी बनाया था। इस नज़रिए से यह माना जा सकता है कि तकनीकि तौर पर 20 अगस्त 1921 को अविभाजित भारत में रेडियो का पहला प्रसारण किया गया था।
देशभर में रेडियो श्रोताओं के अनेकों संगठन वर्षों से सक्रिय रहे हैं।छत्तीसगढ़ में भी ऐसे कई श्रोता संगठन सक्रीय हैं। इन्ही श्रोताओं ने सन 2008 में आयोजित श्रोता सम्मलेन में यह तय किया कि साल में एक दिन श्रोता दिवस के रूप में मनाया जाये , और तमाम रेडियो श्रोताओ ने उस खास दिन की याद में 20 अगस्त को श्रोता दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया।
तब से हर साल 20अगस्त को “श्रोतादिवस” मनाने का सिलसिला प्रारंभ हो गया।छत्तीसगढ़ से प्रारंभ हुई इस परंपरा का असर यह हुआ कि अब देश में अनेक स्थानों पर इस दिन को रेडियो श्रोता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है।
पिछले तीन-चार दशक में रेडियो प्रसारण को तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन विजुअल मीडियाऔर इंटरनेट के जरिए मनोरंजन के तमाम दूसरे साधन उपलब्ध होने के बावजूद रेडियो अपनी एक अलग पहचान बरकरार रख सका है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार किसी भी एक समय भारतीय रेडियो प्रसारण का पर्याय, आकाशवाणी की विभिन्न सेवाओं को 35 से 40 करोड़ श्रोता कहीं ना कहीं किसी ना किसी माध्यम से सुन रहे होतेहैं।यही नहीं, लॉक डाउन की अवधि में रेडियो श्रोताओं की संख्या और भी तेजी के साथ बढ़ी है। इस दौरान रेडियो की विभिन्न सेवाओं ने सोशल मीडिया के साथ जो गठजोड़ किया है उसने इसे दिन के अधिकांश समय मोबाइल और लैपटॉप से जुड़ी हुई आज की युवा पीढ़ी के बीच भी अत्यधिक लोकप्रिय बना दिया है।
उन सभी समर्पित श्रोताओं को जो अक्सर गुनगुनाते हैं,
मन का रेडियो बजने दो जरा . . . रेडियो श्रोता दिवस की सुरीली शुभकामनाएं ।