प्रवीण दुबे
विनम्रता और बंदूक की धांय

अपने मोहन की मनमोहनी अदा भी बड़ी गजब है एक तीर से कई शिकार करते हैं और बहुत देर बाद पता चलता है कि निशाना कहां था, महाकाल से गालव ऋषि तक मोहन की बंशी ने जो तान छेड़ी है उसके अंजाम क्या होंगे यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन अदानी से अंबानी तक मोहन के राग चंबल ने ऐसी हलचल पैदा कर दी है की कोई समझ ही नहीं पा रहा आखिर विनम्रता और बंदूक के धांय के पीछे की मंशा क्या थी ? यह चंबल की विनम्रता का ही कमाल था कि बड़े बड़े धन्ना सेठ यहां तक खिंचे चले आए अब बंदूक की धाएं को इन धन कुबेरों ने किस नजरिए से लिया है इसके लिए तो इंतजार करना होगा
सड़कों के गड्ढों पर चाय की चुस्कियां

इंदौर वाले मंत्री जी को एकबार फिर म्यूजिक सिटी की कमान मिल ही गई और इस खुशी में सड़कों के गड्ढों पर ही खड़े होकर चाय की चुस्कियां लेकर मंत्रीजी ने बड़ा संदेश भी ग्वालियर वालों दे दिया,समझ सको तो समझ लो गड्ढे कितनी ही परेशानी खड़े करें हम जहां थे जैसे थे वैसे ही रहेंगे पहली भी प्रभारी रहे और आज भी हैं गड्ढों की चिंता वो करे जिसे सरकार की किरकिरी अथवा जनता की परेशानी से कोई सरोकार हो वो तो कीड़ा मकोड़ा है सड़कों पर रेंग ही लेगी नहीं रेंगेगी तो कुचल कर मारी जाएगी हां एक बात और चाय की चुस्कियों में सत्ता के साथ संगठन की जुगलबंदी भी दिखाई दे तो गड्ढे क्यों नजर आएंगे।
लेडीज फर्स्ट ने किया बंटाढार

लेडीज फर्स्ट के बोध वाक्य से कौन वाकिफ नहीं है हमारी सरकार ने ऐतिहासिक नगरी ग्वालियर में इसी को चरितार्थ करने का मन बना रखा है यही वजह हैं कलेक्ट्री की कुर्सी से लेकर शहर को स्मार्ट बनाने का काम लेडीज फर्स्ट के संदेश को साकार करता दिखाई दे रहा है। अब ये बात अलग है कि इस जुमले पर दो लेडीजों के बीच समन्वय तालमेल सामंजस्य जैसे शब्दों को कहीं कोई स्थान ही नजर नहीं आता। इसका असर साफ तौर पर शहर वासियों से लेकर सरकार तक महसूस कर रही है। न तो सिटी स्मार्ट होती दिख रही है और न ही प्रशासनिक अमले में कोई करंट है । सबकुछ चल रहा है कछुआ चाल से राम भरोसे।
“सिर मुढ़ाते ही पड़े ओले “

“सिर मुढ़ाते ही ओले पड़े,” आजकल यह कहावत ग्वालियर के नए नवेले क्रिकेट स्टेडियम पर पहले अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट आयोजन को लेकर खूब उपयोग की जा रही है । पहले अफगानिस्तान मैच हाथ से चला गया और अब 14 साल का वनवास समाप्त हुआ तो बांग्लादेश टीम का विरोध गले पड़ गया । अब महाराज से लेकर युवराज तक के माथे पर तनाव की लकीरें खिंची हुई हैं करें तो क्या करें ? वैसे अंदरखाने की खबर यह भी है कि किरकेटिया किचेन कैबिनेट से जुड़े कुछ कारिंदे भी इस मैच के आयोजन को लेकर अनमने हैं बेचारे बोल नहीं पा रहे बड़े महाराज फिर तत्कालीन महाराज और अब युवराज कमर का दर्द असहनीय हो चला है। खबर यह भी है कि मैच को लेकर अब राजनीतिक वर्चस्व का मैच भी अपना रंग दिखाने लगा है और बैचेनी आशंका पैदा कर रही है कि क्रिकेट के मैदान को लेकर जंग का मैदान न खुल जाए।