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विश्लेषण : लंबे समय तक सालता रहेगा समाज में घुला यह चुनावी जहर

प्रवीण दुबे

अब हार जीत के दावे और स्ट्रांग रूम में बंद ईवीएम तथा मतदान की कुछ खट्टी मीठी यादें छोड़कर 7 मई निकल चुकी है और सबका ध्यान 4 जून पर केंद्रित हो चुका है। इस दिन स्ट्रांग रूम से परिणामों का पिटारा बाहर निकलेगा । इस चुनाव में भले ही अभी परिणामों का इंतजार है लेकिन एक मामले में तो ग्वालियर वासियों ने जरूर जीत का परचम लहरा दिया है । यह जीत ग्वालियर लोकसभा के 2019 में हुए चुनाव के मतदान प्रतिशत से ज्यादा वोटिंग करने का है।

 जो जानकारी प्राप्त हुई है उसके मुताबिक इस बार पिछली बार की तुलना में .053 प्रतिशत अधिक मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने बाहर निकले।

निश्चित ही इसके लिए ग्वालियर के जागरूक नागिरकों के साथ प्रशासनिक अमला भी बधाई का पात्र है कि उसने इसको लेकर जागरूकता के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी।

इस लोकसभा चुनाव में  भले ही कोई हारे या कोई जीते लेकिन पिछले एक पखवाड़े में ग्वालियर ने जो कुछ देखा ,सुना और महसूस किया उसने कई बार उन लोगों की आत्मा को बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर दिया जो ग्वालियर की तहजीब तमीज और गौरवशाली चुनावी परंपरा पर गर्व करते रहे हैं।
भाषा के निम्नतर स्तर पर जातिगत टिप्पणियां हों या फिर पढ़े लिखे की गर्वोक्ति के बीच अनपढ़ या कम पढ़े लिखे समाज को निम्न निरूपित करने की नासमझ से शहर का सभ्य समाज घायल होता नजर आया।
चुनाव तो निपट गए लेकिन अब जातिवाद और अमर्यादित भाषा का  जो जहर ग्वालियर की स्वस्थ्य हवा में घोल दिया गया है उसे समाप्त करने की चुनौती बहुत कठिन कही जा सकती है।
दुख इस बात का है कि जब चुनाव में एक पक्ष जातिगत विद्वेष फैला रहा था तो दूसरा पक्ष उसे नजर अंदाज करने के बजाय उसके नाम पर आग भड़काने की मुहिम में जुटा था। इतना ही नहीं समाजों के कुछ कथित ठेकेदार इसको मुद्दा बनाकर गंगाजली तक उठवाने के काम में लगे दिखाई दिए। निःसंदेह यह परेशान कर देने वाला घटनाक्रम लंबे समय तक हमे सालता रहेगा।
तमाम खट्टी मीठी यादों के बीच चुनाव तो निपट गए अच्छी बात यह है कि यह शांतिपूर्ण रहे और मतदान प्रतिशत बढ़ा बावजूद इसके इसमें बहुत कुछ ऐसा घटित हुआ जो हमारे लोकतंत्र को दूसरे शब्दों में कहें तो हमारे समाज को कमजोर करता है। चुनाव में परस्पर प्रतिद्वंदी प्रत्याशियों और उनके समर्थकों को सदैव यह याद रखना चाहिए कि चुनाव तो आते जाते रहेंगे लेकिन हम हमारे बीच सद्भावना नहीं टूटना चाहिए क्यों कि हम सभी को इसी ग्वालियर में रहना है।
इस मौके पर मुझे 31 मई 1996 का एक वाकया याद आता है . उस समय संसद में अटल सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्‍ताव लाया गया था और उस पर चर्चा हो रही थी. इस दौरान जब पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की बारी आई तो उन्‍होंने बहुत शानदार भाषण दिया; जिसका उल्‍लेख बार-बार होता रहा है.अटल जी ने कहा था- देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिएअटल जी ने कहा था कि ‘ सत्‍ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी, मगर ये देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए.
शायद इस चुनाव में हमारे नेताओं ने अपने ग्वालियर के ही सपूत अटलजी के इस सोच को पलीता लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और आश्चर्य की बात यह है  कि चुनाव समाप्त होने के बाद भी इसी आधार पर बड़ी बेशर्मी से जीत हार के दावे प्रतिदावे किए जा रहे हैं।
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