त्वरित टिप्पणी: प्रवीण दुबे
देश में गो हत्या बंद करने और गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग किए जाने को लेकर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद की जितनी तारीफ की जाए वह कम है लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि इसके लिए क्या केवल सरकारी तंत्र का मुंह ताकना सही है ? गो हत्या जैसे संवेदनशील विषय पर क्या विराट बहुसंख्यक हिंदू समाज की कोई जिम्मेदारी नहीं है ?
बड़े अफसोस का विषय है कि ऐसे महत्वपूर्ण संवेदनशील विषय को लेकर भी हमारे धर्माचार्य समाज जागरण की जगह सरकारों को दोषी ठहराने का काम करते हैं।
यह सच है कि कठोर कानून और उसका सख्ती से पालन कराए जाने की जिम्मेदारी सरकारों की है लेकिन उतना ही कड़वा सच यह भी है कि किसी भी सामाजिक धार्मिक कुरीति का सर्वनाश तब तक संभव नहीं हो सकता जबतक इसके प्रति समाज जागरूक नहीं होगा ।
कालांतर से लेकर अभी तक हमने ऐसे बहुत सारे विषय देखे हैं जहां सरकार ने कानून तो बना दिया लेकिन वह कुप्रथा आज भी समाप्त नहीं हुईं हैं।
धार्मिक क्षेत्र की ही बात करें तो करोड़ों का गंगा सफाई अभियान चलाया गया,गंदगी रोकने नियम कानून भी बने लेकिन कुछ धार्मिक स्थानों को छोड़ दिया जाए तो गंगा आज भी मैली दिखाई देती है,बाल विवाह आज भी होते हैं, ऐसी और भी तमाम कुरीतियां हैं जो केवल इस कारण जीवित हैं क्यों कि समाज उन्हें छोड़ने को तैयार नहीं ।
धार्मिक क्षेत्र के अलावा सामाजिक परिदृश्य तो और ज्यादा प्रदूषित दिखाई देता है फांसी की सजा के बावजूद अपराध जारी हैं,बेटियों की सुरक्षा कठोर कानून के बावजूद नहीं हो पा रही। इन सबके पीछे मुख्य कारण यही है कि इन कुरीतियों को हमारा समाज ओढ़े हुए है ।
सरकार कितने ही कानून बना दे लेकिन समाज के जनजागरण के बिना किसी भी बुराई को रोकना संभव नहीं है।
बड़े अफसोस का विषय है कि उच्च धार्मिक पीठों पर विराजमान हमारे धर्माचार्य भी ऐसे सामाजिक धार्मिक विषयों के उन्मूलन के लिए सरकार को का मुंह देखते या उसपर दोषारोपण करते दिखाई देते हैं।
ऐसे विषयों के प्रति समाज जागरण का भाव उनमें नजर नहीं आता।
गो वंश की सुरक्षा संरक्षण संवर्धन की ही बात करें तो आज गो वंश की दुर्दशा के लिए सबसे ज्यादा अगर कोई जिम्मेदार है तो वह बहुसंख्यक हिन्दू समाज है। एक पुरानी कहावत है “माल न राखे आपना चोरन गाली देय”
यदि हिन्दू समाज गो माता के प्रति जागृत होता तो उसे कटने के लिए यूं लावारिस सड़कों पर नहीं छोड़ता, आज कितने घर ऐसे हैं जहां गाय की रोटी सबसे पहले निकालने की धार्मिक परंपरा का निर्वाहन किया जाता है।
कालांतर में हमारा समाज गायों के प्रति माता का भाव रखकर उनकी सेवा देखरेख करता रहा यही वजह है कि इस देश में दूध दही की नदियां बहती थीं,हमारे अवतारी आराध्य तक ने समाज जागरण को दृष्टिगत रखकर ही गोपालन का धार्मिक संदेश दिया था।
आखिर कहां खो गईं हैं वो धार्मिक सामाजिक परमपराएं इनके लुप्त होने के लिए आखिर कौन है जिम्मेदार ?
कसाई खाने खुलते रहे और हमारे धर्माचार्य अपने सामाजिक जनजागरण के कार्य को विस्मृत करके मठाधीश की पदवियों से खुद को अलंकृत कराते रहे।
आज गोवंश सुरक्षा के लिए सरकार पर आश्रित रहने से अधिक जरूरी समाज जागरण है और यह काम हमारे धर्माचार्यों विशेषकर शंकराचार्यों से बेहतर कोई नहीं कर सकता।
राजनीतिज्ञों की तरह बयानबाजी करना किसी भी धर्माचार्य के लिए ठीक नहीं है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज शंकराचार्य जैसी सर्वोच्च पीठ पर विराजित हैं उन्हें गोवंश की सुरक्षा की लेकर इस देश के करोड़ों हिंदुओं को गो माता के प्रति उनकी गौरवशाली परंपरा का स्मरण कराने के लिए बड़ा जनजागरण अभियान प्रारंभ करने की घोषणा करना चाहिए ।समाज यदि उठ खड़ा हुआ तो सरकार अपने आप वो सब करेगी जो समाज चाहेगा।