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शिवराज सिंधिया या प्रहलाद क्या बीस साल पुरानी ओबीसी मुख्यमंत्री की परंपरा रहेगी कायम ?

 -प्रवीण दुबे-

मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री कौन होगा इसके चयन के लिए दिल्ली ने तीन पर्यवेक्षकों को तैनात कर दिया खबर है रविवार की शाम या सोमवार की सुबह तक सीएम का नाम तय हो जाएगा। उधर दूसरी ओर यह चर्चा सरगर्म है कि प्रदेश में मुख्यमंत्री की कमान किसी ओबीसी नेता को ही सौंपी जा सकती है।

तमाम राजनीतिक विश्लेषकों  का मानना  कि मध्य प्रदेश में बीजेपी ओबीसी चेहरे पर ही दांव खेलेगी, ऐसा इसलिए क्योंकि लोकसभा चुनाव में अब केवल छह माह का ही समय शेष है ऐसे  समय ओबीसी श्रेणी से आने वाले शिवराज सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाकर किसी अन्य जाति के सिर मध्यप्रदेश की सत्ता का ताज सुशोभित करना बीजेपी के लिए भारी पड़ सकता है।

ऐसा इसलिए क्यों कि मध्यप्रदेश में ओबीसी के मतदाताओं का प्रतिशत 50 के लगभग है। इन परिस्थितियों में भाजपा नेतृत्व यदि शिवराज को हटाता है तो उनकी जगह इसी श्रेणी के मुख्यमंत्री को लाया जाएगा।

पूर्व में भी बीते बीस वर्षों में उमा भारती, बाबूलाल गौर से लेकर शिवराज सिंह चौहान तक सब ओबीसी समुदाय से ही आते रहे हैं और इस बात की प्रबल संभावना है की भाजपा आगे भी इसी परम्परा को जारी रखेगी।

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि पार्टी नेतृत्व किस ओबीसी चेहरे पर दांव लगा सकता है  इसमें सबसे प्रमुखता के साथ प्रहलाद पटेल का नाम लिया जा सकता है। वे दमोह से सांसद और केंद्रीय मंत्री हैं अटलजी के समय से केंद्र की राजनीति में सक्रीय होने के साथ एक ऊर्जावान नेता के रूप में स्थापित हैं ,प्रह्लाद पटेल का नाम संघ लाइन पर भी फिट बैठता है क्योंकि उन्होंने छात्र राजनीति की शुरुआत आरएसएस के छात्र संगठन एबीवीपी से की और वो संघ के भी क़रीब रहे हैं. बीजेपी ने महाकौशल-विंध्य पर पूरा ध्यान लगाते हुए वहां से प्रह्लाद पटेल को उतारा था और महाकौशल क्षेत्र हिंदुत्व की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है।

अगर प्रहलाद पटेल की जगह अन्य कोई नाम सामने आता है तो वह ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी हो सकता है। वो ख़ुद को ओबीसी नेता बताते हैं हालांकि वो महाराज हैं. अगर ओबीसी कार्ड खेलना होगा तो बीजेपी सिंधिया के नाम पर भी खेल सकती है.

कांग्रेस का दामन छोड़कर जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी का दामन थामा तो मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार भी गिर गई क्योंकि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के उनके समर्थक विधायक भी बीजेपी के पाले में आ गए.

इस बार के चुनाव में ग्वालियर-चंबल संभाग में बीजेपी को 34 में से 18 सीटों पर जीत मिली है जबकि 2018 में महज़ सात सीटों पर जीत मिली थी. यानी इस बार बीजेपी को 11 सीटों का फ़ायदा हुआ है.

वहीं सिंधिया के कांग्रेस में रहते हुए 2018 के विधानसभा चुनाव में इन 34 में से 26 सीटों पर जीत मिली थी.

मध्य प्रदेश में बीजेपी के पास सिंधिया भी एक चेहरा हैं जिसका प्रदेश में एक  जनाधार है.

 सिंधिया जब पार्टी में आए तो उनकी बीजेपी से क्या डील हुई इसके बारे में अब तक साफ़ नहीं है लेकिन हाल में उनकी पीएम मोदी और अमित शाह से जिस तरह से नज़दीकी बढ़ी है, उससे उनके नाम की चर्चा काफ़ी है ।

वो कहते हैं कि चुनाव के दौरान ग्वालियर के महल से बीजेपी के शीर्ष नेताओं की नज़दीकी रही, अमित शाह महल में खाना खाने गए और पीएम मोदी सिंधिया के स्कूल के कार्यक्रम में भी गए और वहां अपने संबोधन में उन्होंने सिंधिया के प्रति अपनी lसहद्रुता

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