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श्रद्धांजलि : भूले नहीं भूलती आदरणीय रंगाहरि जी के सानिध्य में गुजारी वो सुखद अनुभूतियां

प्रवीण दुबे

जीवन में कई बार सहसा कुछ ऐसे प्रसंग घटित हो जाते हैं जिनकी सुखद अनुभूतियां उम्र भर हमें प्रेरणा देती रहती हैं। ऐसा ही एक प्रसंग कल उस वक्त दिमाग पर तरो ताजा हो उठा जब यह दुखद समाचार प्राप्त हुआ कि महान विचारक,लेखक व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख वरिष्ठ प्रचारक रंगाहरि जी नहीं रहे।

बात लगभग 25 वर्ष पुरानी अर्थात 1998 की है। मैं अपने पिताजी और माता जी के साथ दक्षिण भारत के तीर्थाटन पर गया था। चूंकि बचपन से संघ का स्वयंसेवक था अतः मैने उस समय के ग्वालियर विभाग प्रचारक स्व सुधीरजी शिरढोनकर को यह बताया कि मैं अपने माता पिता के साथ दक्षिण जा रहा हूं अतः वहां के कुछ संघ कार्यालय की जानकारी मुझे मिल जाए तो अच्छा होगा।
आदरणीय सुधीर जी ने इसके लिए तत्कालीन विभाग प्रचारक श्री अरूण जी जैन से आग्रह करने की सलाह दी और इसके बाद अरुण जी ने मुझे एक पत्र दिया और जरूरत व सहयोग के लिए उस पत्र के उपयोग की सलाह दी। यात्रा के दौरान जब हम मद्रास पहुंचे तो संघ कार्यालय भी जाना हुआ उस समय वहां स्थित संघ कार्यालय में हुए आतंकी बम विस्फोट की सर्वत्र चर्चा थी। माता जी पिता जी के साथ हम यहां पहुंचे तो कार्यालय में उपस्थित वरिष्ठजनों से मिलना हुआ मैने अपना परिचय दिया और पत्र दिया। उसी दौरान सौम्य धीर गंभीर व्यक्तित्व से ओतप्रोत आदरणीय रंगाहरि जी से परिचय हुआ। माता पिता के साथ उनसे बातचीत में ऐसा लगा जैसे घर का कोई बेहद निकट का परिवारजन बात कर रहा है। कहां रूके हो ,खाना खाया कि नहीं,आगे का क्या कार्यक्रम है,संघ कार्यालय का भ्रमण किया ? आदि आदि । लगभग एक घंटा हमलोग वहां रुके और आदरणीय रंगाहरि जी के साथ जो बातचीत हुई उसने ऐसा अपनत्व का बोध कराया कि वहां से विदा लेने का मन ही नहीं किया।

बात यहीं समाप्त नहीं हुई कहते हैं न कि प्रभु को जब श्रेष्ठजन का सानिध्य दिलवाना होता है तो संयोग भी स्वतः बनवा देते हैं। योजनानुसार हम अगले दिन तिरुपति बाला जी दर्शन करने गए। दर्शन के लिए बहुत लंबी लाइन थी पिताजी को घुटनों में बहुत तकलीफ थी अतः मैने उन्हे बाहर बिठाया और इस जुगाड़ में कि किसी तरह शॉर्ट कट में दर्शन हो जाएं जानकारी लेने निकला तभी क्या देखता हूं आदरणीय रंगाहरि जी भी वहां दर्शन को आए हुए हैं नमस्ते किया तमाम शुभचिंतकों से घिरे होने के बावजूद उन्होंने मुझसे मुस्कराते हुए पूछा सब ठीक है दर्शन कर लिए तभी मैने अपनी समस्या से उन्हें अवगत कराया।
तभी वे बोले नहीं दर्शन के लिए शॉर्ट कट कैसा जिस प्रभु ने उन्हें यहां तक बुलाया है वही उनको दर्शन की शक्ति भी देंगे। जाओ पिताजी को लाइन में ही खड़ा करो देखना कितनी आसानी से वे दर्शन कर लेंगे। मैने वैसा ही किया और आश्चर्यचकित रह गया पिताजी को देख वे लगभग एक घंटे तक बिना सहारे बिना थके लाइन में लगे रहे और श्रद्धापूर्वक दर्शन किए।
कल जब रंगाहरि जी के जाने का समाचार प्राप्त हुआ तो 25 वर्ष पुरानी उनसे जुड़ी यह स्मृतियां दिमाग में सहसा कौंध गईं ऐसा लगता है अपनेपन से भरा उनका सहज सरल व्यक्तित्व यहीं कहीं हमारे आस पास है। उन्हे श्रद्धानवत सादर श्रद्धांजलि।
Praveen dubey @ shabd shakti news.in

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