प्रवीण दुबे
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक डॉ मोहन भागवत और संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य तथा वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश जी के हाल ही में आए दो बयानों के बाद यह कहा जा रहा है कि संघ और भाजपा के बीच तनाव बढ़ गया है। देश का मेन स्ट्रीम मीडिया और उससे जुड़े तमाम बड़े पत्रकार तथा राजनीतिक विश्लेषक इस प्रसंग को लेकर तरह तरह की बातें करते दिखाई दे रहे हैं।
विडंबना इस बात की है कि जिन्होंने संघ को कभी नजदीक से नहीं देखा और उसकी तमाम रीतियों नीतियों का भी उन्हें भान नहीं है ऐसे लोग संघ के क्रिया कलापों पर चर्चा करते दिखाई दे रहे हैं उन्हें यह भी ठीक से नहीं मालूम की संघ कैसे काम करता है और समाज में काम करने के पीछे उसका उद्देश्य हमेशा गैर राजनीतिक ही रहा है।
संघ की स्थापना से लेकर वर्तमान तक संघ के बारे में जो कुछ कहा जाता रहा है या उसको लेकर जो कुछ प्रचारित होता रहा उसमें कितनी सच्चाई और कितना झूठ होता। है यह अनेक बार समाज के सामने आ चुका है।
इससे जुड़े कुछ प्रसंग ऐसे हैं जिनका जिक्र इस समय करना बेहद सामयिक लगता है। 1934 में महात्मा गांधी
संघ के वर्धा शिविर में गए थे.महात्मा गांधी संघ के भोज में सभी वर्ग के लोगों के एक साथ भोजन करने के कार्यक्रम से बेहद प्रभावित हुए थे बाद में गांधी ने कहा मैं वर्धा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक शिविर में गया था. उस समय इसके संस्थापक श्री हेडगेवार जीवित थे. स्व. श्री जमनालाल बजाज मुझे शिविर में ले गये थे और वहां मैं उन लोगों का कड़ा अनुशासन, सादगी और छुआछूत की पूर्ण समाप्ति देखकर अत्यन्त प्रभावित हुआ था.संघ एक सुसंगठित, अनुशासित संस्था है.” वहां के समरसता और परस्पर परिवार भाव ने मुझे बहुत प्रभावित किया।
साफ है संघ को लेकर जो कुछ प्रचारित किया गया था गांधी जी का वह मिथक उस समय ही टूटा जब उन्होंने संघ को उसके निकट जाकर देखा और समझा ,महात्मा गांधी के अलावा पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन, जयप्रकाश नारायण और सेना के पूर्व जनरल करियप्पा पूर्व राष्ट्रपति प्रो अब्दुल कलाम प्रणव मुखर्जी भी संघ में गए और बेहद प्रभावित भी हुए।
इन प्रसंगों का उल्लेख करने के पीछे यही अभिप्राय है कि वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर सर संघचालक मोहन भागवत और वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार के बयान का विश्लेषण तभी संभव है जब संघ को निकट से समझा जाए यह सच है कि अपनी विराटता और अदभुत कार्यशैली के कारण आज संघ मीडिया की चर्चा के केन्द्र में रहता है लेकिन यह समझना बेहद आवश्यक है कि संघ परिवार के अन्य घटकों के प्रति संघ का भाव पिता के समान ही रहा है। जिस प्रकार घर का मुखिया समय समय पर कुटुंब प्रबोधन करता है उसी तर्ज पर संघ के बयान को देखे जाने की जरूरत है। वहां टकराव या झगड़े को कोई स्थान नहीं है और जो लोग ऐसा प्रचारित करते दिख रहे हैं वह उनकी नासमझी है। जहां तक संघ के दो महानुभावों के बयानों को लेकर हो हल्ला मचाया जा रहा है वह बयान बिना किसी लाग लपेट द्वेष को लेकर दिए गए हैं जो राजनीति की वर्तमान देश काल परिस्थिति के अनुसार पूर्णतः सही है मीडिया या राजनीतिक विश्लेषक इन बयानों को लेकर भले ही कुछ भी अर्थ निकालें लेकिन उन बयानों में छुपी सीख और प्रेरक भाव को समझने की आवश्यकता है। सरसंघचालक डॉ भागवत ने इसमें किसी को भी टारगेट न करते हुए संघ के समग्रता पूर्ण भाव को महत्वत्ता दी है साफ है उन्होंने हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों, राजनीति और राजनीतिक दलों के रवैये पर अपनी राय रखी थी.
बाद में संघ भी साफ कर दिया कि संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान सरकार पर टिप्पणी नहीं थी. इसका अलग मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए. इसमें साफ तौर पर स्पष्ट कर दिया गया कि सरसंघचालक ने
नागपुर में संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग के समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए लोकसभा चुनावों, सेवाभाव, मानवता और अन्य मुद्दों पर अपनी राय रखी थी. RSS की ओर से कहा गया कि संघ प्रमुख के भाषण का 3 मिनट का एडिटेड हिस्सा चलाया गया. जिसमें ये कहा गया कि जो सेवक होते हैं, उनमें अहंकार नहीं होना चाहिए. अहंकार बात को ही सरकार से जोड़ दिया गया.संघ ने इसी बयान को गलत बताया संघ ने साफ किया कि मोहन भागवत की टिप्पणी किसी व्यक्ति विशेष या सरकार पर नहीं थी. उधर इंद्रेश जी का बयान भी भगवान राम द्वारा सभी को एक भाव से देखने की ओर इंगित करता है । इन बयानों पर हो हल्ला मचाने वालों को पहले संघ और उसके दृष्टिकोण को समझने की आवश्यकता है जहां केवल राष्ट्रहित को ही सर्वोपरि मानकर कार्य किया जाता है वहां व्यक्तिनिष्ठा को कोई स्थान नहीं है । जो बयान सामने आए हैं वह सभी के लिए प्रेरक कहे जा सकते हैं