Homeमनोरंजनसिर्फ़ यादों में रह जाएगी 'शोले' की ये लोकेशन?

सिर्फ़ यादों में रह जाएगी ‘शोले’ की ये लोकेशन?

जिसने भी बॉलीवुड की मशहूर फ़िल्म शोले देखी है, वो उस सीन को नहीं भूल सकते जिसमें बसंती (हेमा मालिनी) भगवान शिव से अच्छे पति के लिए प्रार्थना कर रही हैं और वीरू (धर्मेंद्र) मूर्ति के पीछे छिपकर भगवान शिव की आवाज़ निकालते हुए बसंती को जवाब दे रहे हैं.

उस सीन को एक बार फिर से देखने की ज़रूरत इसलिए है, क्योंकि जहां मंदिर का वो सेट बनाया गया था, वो जगह ‘विकास’ की भेंट चढ़ने वाली है.

गिद्द संरक्षण पार्क, कर्नाटकइमेजKARNATAKA VULTURE CONSERVATION TRUST

दरअसल राष्ट्रीय राजमार्ग 275, जिसे बेंगलुरु-मैसूर हाइवे कहा जाता है, उसके लिए बाइपास बनाया जाना है, जो रामनगर के नज़दीक होगा.

कर्नाटक का वो रामनगर, जिसके चट्टानी इलाके में प्रोड्यूसर रमेश सिप्पी ने अपनी ब्लॉक बस्टर रही फ़िल्म शोले की शूटिंग की थी और फ़िल्म की स्टार कास्ट में संजीव कुमार, अमिताभ बच्चन, अमजद ख़ान और जया बच्चन भी शामिल थे.

कौन भूल सकता है कि ये वही फ़िल्म है जिससे गब्बर सिंह के रोल में अमजद ख़ान एक विलेन होकर भी हीरो की तरह उभरे

इतना सन्नाटा क्यों है भाई

शोले में आपको सलीम-जावेद की जोड़ी का लिखा रहीम चाचा (ए के हंगल) का वो लोकप्रिय डायलॉग भी याद होगा- “इतना सन्नाटा क्यों है भाई.”

इस डायलॉग को भी याद करने की ज़रूरत इसलिए है, क्योंकि उस इलाके में भी ‘सन्नाटा’ पसर सकता है, क्योंकि डर ये है कि अब वहां लंबे-पंखों वाले गिद्ध, हिमालयन ग्रिफ़िन और मिस्र के गिद्ध आना बंद कर दें.

नेस्टिंग सीज़न में ये पक्षी दूर के इलाकों से यहां मौजूद रामदेवरा बेट्टा गिद्ध अभयारण्य में अंडे देते हैं. जो एक इको सेंसिटिव ज़ोन है.

कर्नाटक वल्चर ट्रस्ट के शशिकुमार बी ने बीबीसी हिंदी से कहा, “आम तौर पर ये पक्षी नवंबर और मार्च के बीच यहां आकर अपने घोसले बनाते हैं. पिछले कुछ सालों में, विभिन्न कारणों से इस दौरान पक्षियों का यहां आना वैसे भी कम हो गया है. अगर सड़क बनाने के लिए विस्फोट किए जाते हैं तो वो पक्षी यहां आकर घोसले नहीं बनाएंगे.”

शोलेइमेजYOUTUBE GRAB

एक वन अधिकारी ने पुष्टि की कि क्षेत्रीय इको सेंसिटिव ज़ोन ने बाइपास रोड बनाने के लिए चट्टानों के विस्फोट पर रोक लगा दी है.

रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर ए एल दालेश कहते हैं, “यहां कोई विस्फोट नहीं हो रहे हैं. कॉन्ट्रेक्टर हाइवे बनाने के लिए ख़ास उपकरणों से चट्टाने काट रहे हैं. इस इलाके में विस्फोट करने पर पूरी तरह से पाबंदी है.”

लेकिन जहां सड़क बन रही है, उसके ठीक पास एक बोर्ड लगा है, जिसमें स्थानीय लोगों के लिए चेतावनी लिखी है कि हो सकता है कि पास ही विस्फोट हो रहा हो. और कुछ स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि यहां विस्फोट किए जा रहे हैं.

पहचान न ज़ाहिर करने की शर्त पर रामनगर ज़िले के एक पूर्व अधिकारी ने कहा, “लोगों के बीच इस चीज़ को लेकर भ्रम है कि विस्फोट कहां किया जा सकता है. हुआ ये है कि इस साल केंद्रीय क़ानून में संशोधन किया गया है कि किसी भी इको सेंसिटिव ज़ोन के एक किलोमीटर के दायरे में विस्फोट करने पर प्रतिबंध होगा. इससे पहले ये दायरा 10 किलोमीटर था. और राज्य सरकार इसका कुछ नहीं कर सकती है.”

अजीब बात ये है कि साल 2000 तक रामदेवरा बेट्टा गिद्ध अभयारण्य के आस-पास के इलाके को इको सेंसेटिव ज़ोन घोषित नहीं किया गया था.

तब तक कर्नाटक के और देश के दूसरे हिस्सों के कई पर्यटक उस तीन एकड़ हिस्से में आते थे, जहां फ़िल्म

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कुछ लोग तो वहां जाकर गब्बर सिंह की तरह चलते थे और उनकी मिमिक्री करते थे.

पर्यावरण सपोर्ट ग्रुप के ट्रस्टी सिंह सलदान्हा बताते हैं, “रामदेवरा बेट्टा गिद्ध अभयारण्य को साल 2000 में एक सुरक्षित इलाका घोषित किया गया, क्योंकि सरकार ने अंडीकुंडी को स्लॉथ बियर सेंचुरी बनाने पर सहमति दी थी. बेंगलुरु से मैसूर जाते वक्त अंडीकुडी हाइवे के बाईं तरफ पड़ता है. रामदेवरा बेट्टा दाईं ओर है.”

वो कहते हैं, “लेकिन इस साल की शुरुआत में, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने 10 किलोमीटर के दायरे वाले नियम को एक किलोमीटर कर दिया. इसके बाद से ही लुप्तप्राय वन्यजीव प्रजातियों के लिए ख़तरा पैदा हो गया. वन्यजीव एकदम अभयारण्य की चार दीवारी में नहीं रहते हैं.”

सुनने में अजीब लग सकता है कि वन विभाग ने पिछली राज्य सरकारों को रामगढ़ में थीम पार्क बनाने से रोका था. फ़िल्म में रामनगर का नाम रामगढ़ बताया गया है.

गिद्द संरक्षण पार्कइमेजKARNATAKA VULTURE CONSERVATION TRUST

पहचान न ज़ाहिर करने की शर्त पर एक पूर्व ज़िला अधिकारी कहते हैं, “ये अभयारण्य के नज़दीक नहीं बनना था. ये 10 किलोमीटर दूर बनना था और हम चाहते थे कि पर्यटकों को शोले के कुछ लोकप्रिय सीन का थ्री डी प्रेजेंटेशन दिखाने के बाद अभयारण्य ले जाया जाता.”

वन्यजीव इलाकों की सुरक्षा का संघर्ष, शोले की यादें और गिद्धों की बात क्या आपको बलदेव सिंह और उनके सहयोगियों वीरू और जय की गब्बर सिंह से लड़ाई की याद नहीं दिलाती?

रामनगर की सबसे दिलचस्प बात ये है कि फ़िल्म की शूटिंग के 44 साल बाद भी बेंगलुरु-मैसूर हाइवे से गुज़रने वाले लोग की यादों में शामिल है.

शोले और सिनेमाप्रेमियों के बीच का ये जुड़ाव कुछ ऐसा है कि “ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे.”

बीबीसी से साभार

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