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हमास ने भी माना मारा गया उनका प्रमुख इस्माइल हनिया,तेहरान में इजरायल के मिसाइल हमले में उड़े थे परखच्चे

अब हमास ने भी उसके शीर्ष नेता इस्माइल हनिया ईरान की राजधानी तेहरान में मारे जाने की पुष्टि की 1है हमास ने कहा है कि उसके शीर्ष नेता इस्माइल हनिया ईरान की राजधानी तेहरान में मारे गए हैं.बुधवार को हमास ने बयान जारी कर कहा कि तेहरान स्थित हनिया के आवास पर इसराइल ने हमला किया और इस हमले में वह मारे गए.

इस हमले की अब तक किसी ने ज़िम्मेदारी नहीं ली है.

इस बारे में अभी तक इसराइल सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है, मगर वहां से एक इसराइली मंत्री की प्रतिक्रिया देखने को मिली है.

इसराइल के हेरिटेज मंत्री अमिचय एलियाहू ने कहा- ”दुनिया से गंदगी साफ़ करने का ये सही तरीक़ा है. अब कोई काल्पनिक शांति, सरेंडर समझौता नहीं.”

वो बोले- हनिया की मौत से दुनिया कुछ बेहतर बनी है.

इसराइली डिफेंस फोर्स ने भी हनिया की मौत पर कोई टिप्पणी नहीं की है.

अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने हनिया की मौत पर कोई टिप्पणी नहीं की. उन्होंने कहा कि इस बारे में उनके पास कोई अतिरिक्त जानकारी नहीं है.

ऑस्टिन ने इससे पहले कहा- मुझे नहीं लगता कि मध्य-पूर्व में युद्ध की ज़रूरत है. मुझे लगता है कि डिप्लोमैसी की संभावनाएं हमेशा रहती हैं.

सऊदी अरब की न्यूज़ वेबसाइट अल हदथ ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि हनिया के निजी आवास पर मिसाइल से हमला किया गया था.

तेहरान में क्या कर रहे थे हनिया

हमास के मुताबिक़, हनिया ईरान के नए राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान के पद भार ग्रहण करने के समारोह में शामिल होने तेहरान आए थे.

हनिया क़तर में रहते थे.

हमास के एक वरिष्ठ अधिकारी मूसा अबु मरज़ोक ने इस हमले को कायराना हरकत बताते हुए बदला लेने की बात कही है.

ईरान के विदेश मंत्रालय की ओर से बयान जारी कर कहा- ”हनिया का बलिदान बेकार नहीं जाएगा.”

ईरान के इस्लामिक रिवॉल्युशनरी गार्ड कोर यानी आईआरजीसी के मुताबिक़- हनिया के साथ उनका एक सुरक्षाकर्मी भी मारा गया है.

आईआरजीसी ने कहा कि इस ‘घटना’ का कारण तुरंत पता नहीं चल पाया है लेकिन जांच की जा रही है.

अक्तूबर 2023 में हमास ने इसराइल पर हमला किया था. इस हमले में इसराइल के क़रीब 1200 लोग मारे गए थे.

जवाब में इसराइल ने ग़ज़ा पर सैन्य कार्रवाई शुरू की जो अब तक जारी है. इस कार्रवाई में अब तक 38 हज़ार से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं.

अप्रैल 2024 में इसराइल ने ग़ज़ा के कैंप में एक गाड़ी पर तीन मिसाइलें दाग़ी थीं. इस हमले में इस्माइल हनिया के तीन बेटे, तीन पोते-पोती और एक ड्राइवर की मौत हुई थी

कौन थे हनिया

इस्माइल हनिया हमास के पॉलिटिकल ब्यूरो के प्रमुख थे. वे फ़लस्तीनी प्राधिकरण की दसवीं सरकार के प्रधानमंत्री थे.

हनिया का उपनाम अबू-अल-अब्द है. उनका जन्म फलस्तीनी शरणार्थी शिविर में हुआ था.

इसराइल ने हनिया को 1989 में तीन साल के लिए क़ैद कर लिया था. इसके बाद उन्हें हमास के कई नेताओं के साथ मार्ज-अल-ज़ुहुर निर्वासित कर दिया गया था. यह इसराइल और लेबनान के बीच एक नो-मेंस लैंड हैं. वहां वे एक साल तक रहे थे.

निर्वासन पूरा होने के बाद हनिया ग़ज़ा लौट आए. उन्हें 1997 में हमास आंदोलन के आध्यात्मिक नेता शेख़ अहमद यासीन के कार्यालय का प्रमुख नियुक्त किया गया. इससे उनकी हैसियत बढ़ गई.

हमास ने 16 फ़रवरी 2006 में हनिया को फ़लस्तीनी प्राधिकरण का प्रधानमंत्री नामित किया था.

उन्हें उसी साल 20 फ़रवरी को नियुक्त भी कर दिया गया था. लेकिन एक साल बाद ही फ़लस्तीनी नेशनल अथॉरिटी के प्रमुख महमूद अब्बास ने उन्हें उनके पद से बर्खास्त कर दिया.

ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि इज़-अल-दीन अल-क़ासम ब्रिगेड ने ग़ज़ा पट्टी पर कब्जा कर लिया था. उसने अब्बास के फतह आंदोलन के प्रतिनिधियों को निकाल दिया था. एक हफ्ते तक चली लड़ाई में कई लोग मारे गए थे.

हनिया ने अपनी बर्खास्तगी को असंवैधानिक बताते हुए ख़ारिज कर दिया था.

उनका कहना था कि उनकी सरकार अपने कर्तव्यों को जारी रखेगी और फ़लस्तीनी लोगों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को नहीं छोड़ेगी.

हनिया को छह मई 2017 को हमास के पॉलिटिकल ब्यूरो का प्रमुख चुना गया था. अमेरिका के विदेश विभाग ने 2018 में हनिया को आतंकवादी घोषित किया था.

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हमास का इस्लामिक दुनिया से संबंध

हमास एक सुन्नी इस्लामिक संगठन है जबकि ईरान शिया मुस्लिम देश लेकिन दोनों की क़रीबी इस्लामिक राजनीति की वजह से है. अहमद कहते हैं कि ईरान के क़रीब होने के बावजूद इससे हमास को कोई फ़ायदा नहीं होता है.

ईरान से क़रीबी के कारण सऊदी अरब से हमास की दूरी बढ़ना लाज़िम था क्योंकि सऊदी अरब और ईरान के बीच दुश्मनी है. ऐसे में हमास किसी एक का ही क़रीबी रह सकता है.

इसराइल का जितना खुला विरोध ईरान करता है, उतना मध्य-पूर्व में कोई नहीं करता है. ऐसे में हमास और ईरान की क़रीबी स्वाभाविक हो जाती है.

2007 में फ़लस्तीनी प्रशासन के चुनाव में हमास की जीत हुई और इस जीत के बाद उसकी प्रासंगिकता और बढ़ गई थी.

लेकिन हमास और सऊदी अरब के रिश्ते भी स्थिर नहीं रहे. जब 2011 में अरब स्प्रिंग या अरब क्रांति शुरू हुई तो सीरिया में भी बशर अल-असद के ख़िलाफ़ लोग सड़क पर उतरे. ईरान बशर अल-असद के साथ खड़ा था और हमास के लिए यह असहज करने वाला था.

इस स्थिति में ईरान और हमास के रिश्ते में दरार आई. लेकिन अरब क्रांति को लेकर सऊदी अरब का रुख़ मिस्र को लेकर जो रहा, वो भी हमास को रास नहीं आया.

सऊदी अरब मिस्र में चुनी हुई सरकार का विरोध कर रहा था. ऐसे में फिर से हमास की तेहरान से करीबी बढ़ी.

2019 के जुलाई में हमास का प्रतिनिधिमंडल ईरान पहुँचा और उसकी मुलाक़ात ईरान के सर्वोच्च नेता अयतोल्लाह अली ख़ामेनेई से हुई थी. सऊदी अरब में हमास के नेताओं को मुस्लिम ब्रदरहुड से भी जोड़ा जाता है.

इसराइल और हमास के बीच अभी हिंसक संघर्ष चल रहा है और इसमें अब तक हज़ारों लोगों की मौत हुई है, जिनमें सैकड़ों महिलाएं और बच्चे हैं. हमास चाहता है कि मध्य-पूर्व के प्रतिद्वंद्वी देश ईरान और सऊदी से एकता बनी रहे.

हमास के एक प्रवक्ता ने न्यूज़वीक से कहा था, ”इसराइल ने अल अक़्सा मस्जिद का अपमान किया है. इसलिए हम रॉकेट दाग रहे हैं. वे पूर्वी यरुशलम से फ़लस्तीनी परिवारों को निकालना चाह रहे हैं. अल अक़्सा मुस्लिम जगत के लिए तीसरी सबसे पवित्र जगह है और फ़लस्तीन के लिए सबसे पवित्र जगह. हमें उम्मीद है कि सऊदी अरब और ईरान आपसी मतभेद भुला देंगे. अगर ऐसा होता है तो फ़लस्तीनियों के लिए बहुत अच्छा होगा.”

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