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Big Breaking : वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 के समर्थन में 12 मुस्लिम नेताओं द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में हस्तक्षेप याचिकाएं दायर

नई दिल्ली /एक महत्वपूर्ण कानूनी और राजनीतिक घटनाक्रम में, भारत के विभिन्न हिस्सों से बारह प्रमुख मुस्लिम व्यक्तियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के समर्थन में सर्वोच्च न्यायालय में हस्तक्षेप याचिकाएं दायर की हैं। ये याचिकाएं हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी, जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी और अन्य द्वारा दायर संविधानिक चुनौतियों के जवाब में आई हैं।
इन याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वक्फ बोर्ड धार्मिक संस्थाएं नहीं बल्कि वैधानिक सार्वजनिक संस्था जो वक़्फ़ जायदाद का प्रबंध करती हैं और इसलिए उनमें पारदर्शिता, जवाबदेही और दुरुपयोग को रोकने के लिए सुधार आवश्यक हैं।
संशोधन का समर्थन करने वाले याचिकाकर्ता:
• 1. मौलाना कोकब मुजतबा – उत्तर प्रदेश के इस्लामी विद्वान, पारदर्शी वक्फ प्रबंधन के पक्षधर।
• 2. इरफान अली पीरज़ादा – मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय संयोजक, मुंबई।
• 3. मोहम्मद फैज़ान – अमरोहा के युवा सामाजिक कार्यकर्ता।
• 4. कैसर अंसारी – हैदराबाद के युवा नेता, स्थानीय वक्फ प्रबंधन के समर्थक।
• 5. मोहम्मद अफ़ज़ल – मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय संयोजक।
• 6. मज़ाहिर खान – मुरादाबाद के संपत्ति अधिकार कार्यकर्ता।
• 7. इकबाल अहमद – बेंगलुरु के नागरिक अधिकार कार्यकर्ता।
• 8. नज़ीर मीर – श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ सामाजिक नेता।
• 9. ताहिर खान – भोपाल के पारदर्शिता और जीआईएस मानचित्रण के पक्षधर।
• 10. फैज़ अहमद फैज़ – विश्व शांति परिषद के अध्यक्ष, दिल्ली।
• 11. शालिनी अली- उत्तराखण्ड की महिला अधिकार कार्यकर्ता।
• 12. मोहम्मद फैज़ खान – छत्तीसगढ़ के गौसेवक और साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रचारक।
कानूनी प्रतिनिधित्व:
• • शिराज़ कुरैशी, एलएलएम, अधिवक्ता
• • सैफ कुरैशी, अधिवक्ता
• • कबीर कुरैशी, अधिवक्ता
• • जावेद खान सैफ, अधिवक्ता
• • दीवान सैफुल्लाह, अधिवक्ता
प्रकरण की पृष्ठभूमि:
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को वक्फ प्रशासन में अतिक्रमण, भ्रष्टाचार और राजनीतिकरण की समस्याओं को दूर करने के उद्देश्य से लाया गया था। इसमें रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण, स्वतंत्र ऑडिट और विकेन्द्रीकरण जैसे सुधार शामिल हैं। हालाँकि, इस अधिनियम को धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी गई है।
हस्तक्षेप याचिकाएं यह स्पष्ट करती हैं कि वक्फ बोर्ड भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25-30 के अंतर्गत धार्मिक संस्थाएं नहीं हैं, बल्कि सार्वजनिक न्यास हैं जिन्हें पारदर्शी तरीके से संचालित किया जाना चाहिए।

यह एक ऐतिहासिक क्षण

अधिवक्ता शिराज़ कुरैशी ने कहा, “यह एक ऐतिहासिक क्षण है जब भारतीय मुसलमानों ने स्वच्छ और जवाबदेह वक्फ शासन की मांग की है। इन याचिकाओं में उन अनुभवों को दर्शाया गया है जो वर्षों से अनदेखे रहे हैं। यह संशोधन वास्तविक सुधार की आशा है।”

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