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इस कारण आरएसएस महान है

 

इस कारण संघ महान है। इतना बड़ा ओर व्यापक परिवर्तन लेकिन न कोई विरोधाभासी बयान न कोई नाराजी सब कुछ सर्वसम्मति से । जरा सोचिए आज के परिवेश में गली मोहल्ले तक सीमित संगठनों में भी यदि पदों पर आसीन किसी पदाधिकारी को बदला जाता है तो ऐसा करना

कितना कठिन और डरावना होता है। कईबार मान मर्यादा सब तार तार होते दिखाई देती है संगठन का अस्तित्व तक खतरे में पड़ जाता है। क्या नहीं बदला ,कहा जाता है आरएसएस में पूज्य सरसंघचालक के बाद संगठनात्मक कार्य का सबसे

बड़ा पद सरकार्यवाह का होता है।  सरकार्यवाह अर्थात समस्त संघकार्य की चिंता करने वाला। इस पद पर परिवर्तन की सुगबुगाहट पहले से ही थी संघ संविधान के मुताबिक इस पद पर परिवर्तन के लिए अखिल भारतीय प्रतिनिधिसभा में निर्वाचन का प्रावधान है। निर्धारित प्रतिनिधि हर तीन वर्ष में सरकार्यवाह का निर्वाचन करते हैं। समुद्र जैसे

विशाल संगठन में उच्च पद पर परिवर्तन वह भी पूर्व निर्धारित योजनानुसार अर्थात यदि कोई चुनाव में चुनौती देना चाहे तो दे सकता है। लेकिन चंद मिनटों में यह परिवर्तन पूर्ण सहमति से कर लिया गया न कोई चुनौती न कोई निर्वाचन। इसकी आवश्यकता तो तब होती जब कोई अन्य नाम सामने आता। संगठन ने केवल एक नाम सामने रखा और सबने उसे सहमति प्रदान कर दी। आश्चर्यचकित कर देने वाला दृश्य । कृतिरुप में चरितार्थ हो उठी संघ शाखाओं पर गाये जाने वाले गीत की पक्तियां

 “पथ का अंतिम लक्ष्य नहीं है

सिहांसन चढ़ते जाना”
बात यहीं समाप्त नहीं होती सरकार्यवाह का चुनाव सर्वसम्मति से और उसके बाद।
पूर्व के पांच सह सरकार्यवाह में से दो प्रभावित हुए। अरुण कुमार और राम दत्त को नया सह-सरकार्यवाह बनाया गया , जबकि सुरेश सोनी को सह-सरकार्यवाह की जिम्मेदारी से मुक्त कर अखिल भारतीय कार्यकारिणी में जगह दी गई है। नए सह-सरकार्यवाह बने अरुण कुमार अभी तक अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख की जिम्मेदारी देख रहे थे। इससे पहले वे संघ के थिंकटैंक जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र के निदेशक भी रहे।

वहीं, रामलाल को अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख का जिम्मा सौंपा गया । रामलाल इससे पहले 13 साल तक भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रहे। 2020 में नड्‌डा के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद उन्हें हटाकर बीएल संतोष को उनके पद पर लाया गया। इसके अलावा आलोक अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख, जबकि सुनील आंबेडकर को अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख बनाया गया । यह सबकुछ भी सर्वसम्मति से हुआ ।  इस अखिल भारतीय परिवर्तन के अलावा देश के विविध प्रांतों से सम्बंधित क्षेत्रों में भी परिवर्तन किए गए ।  यहां से भी कोई विरोध प्रतिरोध या परसनतापी प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली। सभी ने परिवर्तन को पूर्ण सहमति के साथ खुशी खुशी स्वीकार किया।

संघ की यही कार्यपद्धति उसे पूरी दुनिया में सबसे अनुशासित संगठन बनाती है। यहां व्यक्तिनिष्ठा को कोई स्थान नहीं है केवल और केवल तत्व निष्ठा । यहां “मैं” की जगह “हम” की भवना को लेकर लाखो लाख  स्वयंसेवक रात दिन मातृभूमि की सेवा के संकल्प के साथ सर्वस्व समर्पण करने को तत्पर रहते हैं।

 

देशप्रेम की इसी भावना को लेकर 97 वर्ष पूर्व डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने संघ की स्थापना की थी। डॉ साहब  चाहते तो खुद को गुरु रूप में पूजित करने की परंपरा प्रारम्भ कर सकते थे। लेकिन उन्होंने कभी व्यक्तिनिष्ठा को महत्व नहीं दिया और सत्य सनातन परम्पराओं का प्रतीक परम् पवित्र भगवा ध्वज को गुरु रूप में  पूजित करने की परंपरा प्रारम्भ की जो आज तक कायम है।

संघ में पद तो केवल प्रतीकात्मक संकेत है यहां दायित्व और व्यवस्था  का मूलमंत्र लेकर  स्वयंसेवक कार्य करते हैं यही वजह है यहां प्रतिस्पर्धा है न पद की लालसा यहां तो एकमात्र भाव है।

तेरा वैभव अमर रहे मां 

हम दिन चार रहे न रहें”

बेंगलुरु में सम्पन्न हुई संघ की सबसे बड़ी संगठनात्मक संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने यही संदेश देकर एकबार पुनः आरएसएस की महान गौरवशाली परंपरा को जीवंतता प्रदान की है। यहां से एकबार फिर तपोनिष्ठ कार्यकर्ताओं ने सन्देश दिया है।

तन समर्पित मन समर्पित

और यह जीवन समर्पित

है मातृभूमि चाहता हूँ

मैं तुझे कुछ और भी दूं

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