प्रवीण दुबे
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत बीती रात ग्वालियर पहुंचे वे यहां चल रहे संघ के स्वर साधक संगम अर्थात घोष वर्ग में मार्गदर्शन हेतु यहां आए हैं और 28 नवम्बर तक यहां रहेंगे। लिखने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि वर्तमान समय में आरएसएस ने अपनी विशिष्ट समाजोन्मुखी कार्यशैली से देश के समस्त समाज जीवन को बेहद प्रभावित किया है और इसका सम्पूर्ण श्रेय संघ के वर्तमान सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत जी को दिया जाना चाहिए।
यूं तो आरएसएस ने सदैव देशहित को सर्वोपरि मानकर कार्य किया लेकिन उसने कभी भी इसके लिए रूढ़िवादिता या दकियानूसी पन को स्वीकार नहीं किया राष्ट्र सर्वोपरि के भाव को केंद्र में रखकर संघ ने देश काल परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन को भी महत्व दिया जो लोग संघ को समझते हैं वह भली प्रकार से यह जानते हैं कि प्रथम सरसंघचालक डॉ हेडगेवार जी से लेकर गुरुजी,देवरसजी,रज्जू भइआ ,सुदर्शनजी ओर अब भागवतजी ने राष्ट्रहित में कुछ न कुछ नया अवश्य किया। यहां तक कि संघ की प्रार्थना,आज्ञा,गणवेश आदि को लेकर भी संघ ने लीक पर न चलते हुए परिवर्तनकारी दृष्टिकोण को स्थान दिया।
वर्तमान में भी संघ के तत्कालीन सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत जी भी इसी परंपरा का निर्वहन बखूबी करते दिखाई दे रहे हैं। देश के अल्पसंख्यक समुदाय हो या फिर आरक्षण का मामला हो अथवा भारत विभाजन से जुड़े तमाम विषय हो ,राजनीति का क्षेत्र हो ,समरसता ,सदभावना का विषय अथवा कुटुम्ब प्रबोधन हो डॉ मोहन भागवत के विचारों की खूब चर्चा होती दिखती है।
तमाम राजनीतिक, सामाजिक लोग खासकर मीडिया में इसके तमाम अर्थ निकालकर विश्लेषण होता दिखता है। कई बार संघ विरोधी खासकर वामपंथी विचारक इसको लेकर समाज को भटकाने का प्रयास भी करते हैं लेकिन कुछ समय के बाद उनका यह अभियान फुस्स हो जाता है।
कारण स्पष्ट है कि डॉ भागवत जो भी बोलते हैं उसके मूल में देशहित प्रमुख होने के साथ गहरा अध्ययन व चिंतन निहित होता है। यही वजह है कि आज पूरे देश में बड़ी संख्या में विविध क्षेत्रों से जुड़े लोग शिक्षा, कला ,साहित्य,स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों की तमाम नामचीन शख्सियत संघ से जुड़ी हैं।
देश में संघ विरोधियों के कुप्रचार को देश ने अस्वीकार कर दिया है। आज देश में आरएसएस व उसके प्रमुख मोहन भागवत को एक व्यावहारिक नेता के रूप में देखा जाता है। उन्होंने हिंदुत्व के विचार को आधुनिकता के साथ आगे ले जाने की बात कही है। उन्होंने बदलते समय के साथ चलने पर बल दिया है। लेकिन इसके साथ ही संगठन का आधार समृद्ध और प्राचीन भारतीय मूल्यों में दृढ़ बनाए रखा है। वे कहते हैं कि इस प्रचलित धारणा के विपरीत कि संघ पुराने विचारों और मान्यताओं से चिपका रहता है, इसने आधुनिकीकरण को स्वीकार किया है और इसके साथ ही यह देश के लोगों को सही दिशा भी दे रहा है।
सितंबर 2018 में, मोहन भागवत जी ने कहा कि आरएसएस ने माधव सदाशिवराव गोलवरकर गुरुजी के “बंच ऑफ़ थॉट्स” के कुछ हिस्सों को छोड़ दिया है जो वर्तमान परिस्थितियों के लिए प्रासंगिक नहीं हैं।
हिन्दू समाज में जातीय असमानताओं के सवाल पर, भागवत ने कहा है कि अस्पृश्यता के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अनेकता में एकता के सिद्धान्त के आधार पर स्थापित हिन्दू समाज को अपने ही समुदाय के लोगों के विरुद्ध होने वाले भेदभाव के स्वाभाविक दोषों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
केवल यही नहीं अपितु इस समुदाय के लोगों को समाज में प्रचलित इस तरह के भेदभावपूर्ण रवैये को दूर करने का प्रयास भी करना चाहिए तथा इसकी शुरुआत प्रत्येक हिन्दू के घर से होनी चाहिए।
स्पष्ट है कि सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने स्वयं को विशिष्ट से सामान्य व्यक्तित्व की ओर क्रमश: अग्रसर किया। संघ और समाज एकरूप हो, यह बात संघ में प्राय: कही जाती है। सरसंघचालक जी ने अपने व्यवहार से इसे सिद्ध कर दिखाया है।