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भाजपा में ताजा बदलाव : क्यों हटाया शिवराज और गडकरी को ? क्या कहते हैं अखबार

बीजेपी ने संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति का फिर से गठन किया है. गुरुवार को प्रकाशित अख़बारों ने इस ख़बर को विस्तार से अपने पन्नों पर जगह दी है.

बीजेपी ने बुधवार को संसदीय बोर्ड से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को हटा दिया है. कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को नए संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया है.

संसदीय बोर्ड बीजेपी में नीति निर्धारण करने वाली सर्वोच्च इकाई है. मुख्यमंत्रियों, राज्य पार्टी प्रमुख और दूसरी अहम जिम्मेदारियों पर कौन रहेगा, इसका फैसला संसदीय बोर्ड ही करता है.

नए संसदीय बोर्ड में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत 11 लोग हैं, जिसमें नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, अमित शाह, बीएस येदियुरप्पा, सर्बानंद सोनोवाल, के लक्ष्मण, इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव, सत्यनारायण जटिया और बीएल संतोष शामिल हैं.

बीजेपी ने इसके अलावा केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्यों का भी एलान कर दिया है. संसदीय बोर्ड के सभी 11 चेहरे 15 सदस्यों की इस टीम में शामिल हैं. चार अन्य सदस्यों में भूपेन्द्र यादव, देवेन्द्र फडणवीस, ओम माथुर और वनथी श्रीनिवास हैं.

अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू के अनुसार, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और अनंत कुमार के निधन होने, वेंकैया नायडू के उपराष्ट्रपति बनने और थावर चंद गहलोत के राज्यपाल बनने के बाद संसदीय बोर्ड में पांच सीटें खाली हो गई थीं.

ताज़ा बदलाव में केंद्रीय मंत्री और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी के साथ मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान को दोनों ही टीमों में जगह नहीं मिली है. इससे पहले 2014 में लालकृष्ण आडवाणी को संसदीय बोर्ड से बाहर किया गया था.

उधर इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि बीजेपी ने छह नए चेहरों को संसदीय बोर्ड में जगह दी है. इनमें पूर्व आईपीएस अफसर इक़बाल सिंह लालपुरा भी शामिल हैं.

लालपुरा के शामिल किए जाने पर अख़बार लिखता है कि पार्टी के इतिहास में किसी सिख को पहली बार संसदीय बोर्ड में जगह मिली है.

वहीं टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, सुधा यादव और के लक्ष्मण का संसदीय बोर्ड में पहली बार चयन, तेलंगाना में बीजेपी की मजबूती के लिए काफी अहम है. ये दोनों ही तेलंगाना के ही रहने वाले हैं.

सुधा यादव इस संस्था की अकेली महिला सदस्य होंगी, वहीं के लक्ष्मण फ़िलहाल पार्टी के ओबीसी मोर्चा के प्रमुख हैं.

कर्नाटक के पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा, पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यनारायण जटिया और असम के पूर्व सीएम केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल को भी पहली बार संसदीय बोर्ड में जगह मिली है.

द हिंदू के अनुसार, बीएस येदियुरप्पा को संसदीय बोर्ड में शामिल करने का फैसला 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों को देखते हुए लिया गया लगता है. येदियुरप्पा राज्य में प्रभावी माने जाने वाले लिंगायत समुदाय से आते हैं.

टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, सोनोवाल भारत के उत्तर पूर्वी राज्य के एसटी समुदाय से के ऐसे पहले नेता बन गए हैं, जिन्हें पार्टी के संसदीय बोर्ड में जगह मिली हो. वहीं सत्यनारायण जटिया इस सर्वोच्च नीति इकाई के दलित चेहरा होंगे.

अख़बार के अनुसार बीजेपी का यह फैसला समाज के सभी वर्गों के बीच तालमेल बिठाने का प्रयास है.

शाह को नंबर दो पर ले जाने की कोशिश

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, बीजेपी के सर्वोच्च स्तर पर हुआ ताज़ा बदलाव लगभग डेढ़ साल बाद होने वाले लोकसभा चुनावों को देखते हुए किया गया है.

वहीं टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार पार्टी में हुआ ये बदलाव पीएम मोदी के बाद नंबर दो पर अमित शाह को ले जाने की कोशिश है.

अख़बार का कहना है कि ताज़ा फैसले से संकेत मिलता है कि बीजेपी और आरएसएस, पार्टी और सरकार दोनों जगहों पर अमित शाह को धीरे धीरे नंबर दो तक ले जा रहे हैं.

डकरी और चौहान की विदाई के मायने

पार्टी की इन दोनों सर्वोच्च संस्थाओं से नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान को बाहर किए जाने को लेकर काफ़ी चर्चा हो रही है.

टाइम्स ऑफ इंडिया लिखता है कि गडकरी का बाहर किया जाना इसलिए अचरज की बात है कि वे आरएसएस के काफी करीब माने जाते हैं और केंद्रीय मंत्री के तौर पर उनका कामकाज भी शानदार माना जाता है.

अख़बार के अनुसार, इसके बावजूद पार्टी के दोनों ही सर्वोच्च संस्थाओं से उन्हें बाहर किया जाना और केंद्रीय चुनाव समिति में उन्हीं के राज्य और ब्राह्मण जाति के ही देवेंद्र फड़नवीस का शामिल किया जाना कई संकेत देता है.

अख़बार लिखता है कि इससे पता चलता है कि पार्टी अमित शाह को आगे ले जाने का प्रयास कर रही है और यह भी पता चलता है कि पार्टी गडकरी के बयानों से नाराज़ है.

गडकरी लंबे समय से पार्टी और सरकार के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ काफी मुखर रहे हैं, जिसके चलते विपक्ष को भी पार्टी की आलोचना करने का मौका मिलता है.

वहीं शिवराज सिंह चौहान को बाहर किए जाने पर टाइम्स ऑफ इंडिया कहता है कि वे पार्टी के प्रमुख ओबीसी चेहरा रहे हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि 2018 के विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद पार्टी में उनका असर कम हो गया है.

अख़बार के अनुसार, मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान का बाहर होना और उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के शामिल न होने से उनके प्रशंसकों को निराशा हुई होगी, लेकिन कहीं न कहीं ये फैसला अमित शाह को आगे बढ़ाने से भी जुड़ा है।

साभार

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