विधानसभा चुनाव में ग्वालियर अंचल की 34 में से 26 विधानसभा सीटें हारने के बाद अब एकबार पुनः यहां भाजपा को सक्रिय करने की कवायद शुरू हो गई है। इस काम में वह नेता सर्वाधिक सक्रिय दिखाई दे रहे हैं जिसकी कार्यशैली को लेकर विधानसभा चुनाव के दौरान और परिणाम आने के बाद सर्वाधिक अंगुली उठीं थीं, यह नेता हैं ग्वालियर के सांसद और नरेन्द्र मोदी केबीनेट के वजनदार मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर। पिछले एक सप्ताह की बात करें तो नरेन्द्र तोमर ने न केवल ग्वालियर बल्कि पूरे अंचल में ताबड़तोड़ बैठकें करके राजनीतिक माहौल में नई बहस को जन्म दे दिया है। यह बहस इस बात को लेकर है कि क्या तोमर एकबार पुनः ग्वालियर से लोकसभा चुनाव में उतरने का मन बना रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव में श्री तोमर के सबसे प्रभाव वाले लोकसभा क्षेत्रों की बात की जाए तो इनमें मुरैना और ग्वालियर का नाम प्रमुखता से शामिल था। मुरैना से श्री तोमर सांसद रह चुके थे और ग्वालियर से वे वर्तमान में सांसद हैं। चुनाव परिणाम इस बात के साक्षी हैं कि भाजपा को ग्वालियर अंचल में सर्वाधिक बड़ा झटका इन्हीं दो जगह पर लगा यहां की कुल 11 विधानसभा सीटों में से 10 पर भाजपा को मुंह की खानी पड़ी,केवल एक सीट ही भाजपा अपने नाम कर पाई।
इससे भी बड़ी बात यह है कि विधानसभा चुनाव के दौरान और चुनाव के बाद नरेन्द्र सिंह तोमर की कार्यशैली को लेकर प्रत्याशियों, पार्टी नेताओं और यहां तक कि कार्यकर्तओं के बीच तमाम तरह की चर्चाओं का बाजार सरगर्म रहा,यहां तक की कुछ शिकायतें पार्टी हाईकमान तक भी पहुंची।
चूंकि लोकसभा चुनाव सर पर हैं इन सारे घटनाक्रम से यह चर्चा भी जोर पकड़ गई कि अपने चुनाव क्षेत्र ग्वालियर में विपरीत माहौल के मद्देनजर पार्टी उन्हें कहीं ऒर सुरक्षित लोकसभा सीट से मैदान में उतारेगी। यह भी चर्चा चली की श्री तोमर विदिशा अथवा भोपाल से चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं।
हालांकि इसको लेकर न तो पार्टी और न ही श्री तोमर ने कभी कुछ भी खुलकर नहीं बोला। हां इतना जरूर हुआ कि शिवराज सिंह को पार्टी ने उपाध्यक्ष बना दिया जिससे विदिशा से उनके खुद लोकसभा में उतरने की सम्भावना प्रबल हो गई । लेकिन पिछले एक सप्ताह के भीतर श्री तोमर ग्वालियर में जिस प्रकार से सक्रिय दिखाई दे रहे हैं उसने उनके खिलाफ अंगुली उठाने वालों के भीतर बेचैनी जरूर पैदा कर दी है।
श्री तोमर ने योजनाबद्ध ढंग से जहां विधानसभावार बैठकों का दौर शुरू कर दिया हैं वहीं केन्द्र की योजनाओं को लेकर सार्वजनिक शासकीय उपक्रमों में भी सरकारी अमले से पूछताछ करने पहुंच रहे हैं। उनके द्वारा प्रतिवर्ष कराई जाने वाली रामकथा में भी व्यस्थाओं को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं को महत्व दिया जा रहा है। इतना ही नहीं संगठनात्मक पकड़ रखने वाले संघ पृष्ठभूमि से आने वाले कुछ खास भाजपा नेता भी मंच पर दिखाई दे रहे हैं। सूत्रों की मानें तो ऐसे नेताओं और कार्यकर्ताओं को नरेन्द्र तोमर के इशारे पर ही विशेष मानमन्नववल के साथ घर से बाहर निकालने की रणनीति पर काम किया जा रहा है।
इतना सब होने के बावजूद आने वाले लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी को लेकर भाजपा के भीतर सबकुछ ठीक दिखाई नहीं दे रहा है। एक तरफ केंद्रीय मंत्री पूरे जोश खरोश के साथ मैदान में उतर जरूर आए हैं लेकिन पार्टी में बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो इस बात से सहमत दिखाई नहीं देता की ग्वालियर में लोकसभा चुनाव की पूरी कमान श्री तोमर को सौंपी जाए, इसके साथ ही पिछले कुछ दिनों में जो सक्रीयता तोमर ने दिखाई है वैसी अन्य पार्टी नेताओं खासकर उन नेताओं ने जो विधानसभा चुनाव में उतरे थे दिखाई नहीं दी है। निःसन्देह यह चिंता का विषय है पार्टी हाईकमान को इसका हल खोजना ही होगा।