प्रवीण दुबे
जब किसी बड़े पद पर लंबे समय से विराजमान कोई चेहरा बदलता है तो नीतियां भी बदलती हैं । मध्यप्रदेश में लगभग 18 साल तक मुख्यमंत्री पद पर काबिज रहे शिवराज सिंह की विदाई के बाद कुछ ऐसा ही नजारा है।
पहले बीआरसीटीएस प्रोजेक्ट को रोकना फिर सार्वजनिक रूप से अधिकारियों के बीच मध्यप्रदेश गान के समय खड़े होने को मना करके मुख्यमंत्री ने सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचा है।
अब कुछ लोग इसे सही बता रहे हैं तो कुछ लोग इसके राजनीतिक निहितार्थ भी निकाल रहे हैं।
खैर जो भी हो लेकिन इतना तो तय है कि नया व्यक्ति भले ही उसी विचारधारा का क्यों न हो जब व्यवस्था बदली है तो मर्जी ना मर्जी भी नए चेहरे की ही चलेगी और इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होना चाहिए ।
रही बात राजनीतिक निहितार्थ की तो राजनीति में राजनीतिक निहितार्थ नहीं निकाले जाएं तो फिर राजनीति कैसी। और राजनीति में कोई भी उच्च पद तभी प्राप्त होता है जब आपका राजनीतिक ओरा प्रभावित करने वाला हो।
मामा अर्थात पदच्युत किए गए शिवराज सिंह का ओरा इतना बड़ा था तभी वे 18 साल तक एक ही पद पर टिके रहे।
और जब ओरा इतना विशाल था तो उनके समर्थकों की फौज कितनी बड़ी होगी इस बात का अंदाजा भी स्वतः ही लगाया जा सकता है।
चूंकि मामा को पदच्युत किए जाने का निर्णय पार्टी हाईकमान का था अतः जैसे भी हो समर्थकों को चुपचाप रहकर इसे स्वीकार करना ही था लेकिन कोई कुछ भी करे और समर्थक मुंह बंद किए बैठे रहें यह कैसे संभव है।
अब कहा जा रहा है कि नए मुख्यमंत्री द्वारा सार्वजनिक रूप से शिवराज के निर्णयों को अस्वीकार करना वह भी अधिकारियों के सामने ही सरासर गलत है।
बात यह भी कही जा रही है कि पर्दे के पीछे रहकर भी मध्यप्रदेश गान पर खड़े होने की परंपरा को समाप्त करवाया जा सकता था।
हो सकता है कि ऐसा कहने वाले लोगों की बात कुछ सही हो लेकिन परदे के पीछे ही से सही शिवराज के द्वारा शुरू की गई परम्परा तो उसमें भी समाप्त ही होना थी ।
जहां तक बीआरसीटीएस
पुल को तोड़ने की बात है तो इसके पीछे जनहित का जुड़े होना बताया जा रहा है समझ से परे है कि मामा को इसमें जनहित क्यों नजर नहीं आया वैसे यही बात धार्मिक स्थलों पर तेज आवाज में स्पीकर बजाना,सार्वजनिक स्थानों पर खुले में मांस की बिक्री पर रोक को लेकर भी यही सवाल उठ रहा है।
एक दिलचस्प चर्चा कुछ बड़े और रसूखदार अधिकारियों के पर कतरे जाने को लेकर भी हो रही है। इसमें एक नाम मामा के एक नजदीकी रिश्तेदार अधिकारी का भी लिया जा रहा है कहा जा रहा है कि मामा इनके माध्यम से प्रदेश के मीडिया कर्मियों की किस्मत पर कलम चलवाने का काम करते थे। जिनकी किस्मत पर लाल लाइन चली वे अब बहुत खुश बताए जा रहे हैं और जो कलम से कृतार्थ हुए वे परेशान हैं और मामा की उसी राजनीतिक ओरा वाली जमात में शामिल होकर नए मुख्यमंत्री के नए नवेले निर्णयों पर राजनीतिक निहितार्थ निकालने को हवा देने में लगे हैं।